(1) विनाश है डंडी मारने वालों का।
(2) जो लोगों से नाप कर लें,, तो पूरा लेते हैं।
(3) और जब उन्हें नाप या तोल कर देते हैं, तो कम देते हैं।
(4) क्या वे नहीं सोचते कि फिर जीवित किये जायेंगे?
(5) एक भीषण दिन के लिए।
(6) जिस दिन सभी, विश्व के पालनहार के सामने खड़े होंगे।[1]
1. (1-6) इस सूरह की प्रथम छः आयतों में इसी व्यवसायिक विश्वास घात पर पकड़ की गई है कि न्याय तो यह है कि अपने लिये अन्याय नहीं चाहते तो दूसरों के साथ न्याय करो। और इस रोग का निवारण अल्लाह के भय तथा परलोक पर विश्वास ही से हो सकता है। क्योंकि इस स्थिति में निक्षेप (अमानतदारी) एक नीति ही नहीं बल्कि धार्मिक कर्तव्य होगा औ इस पर स्थित रहना लाभ तथा हानि पर निर्भर नहीं रहेगा।
(7) कदापि ऐसा न करो, निश्चय बुरों का कर्म पत्र "सिज्जीन" में है।
(8) और तुम क्या जानो कि "सिज्जीन" क्या है?
(9) वह लिखित महान पुस्तक है।
(10) उस दिन झुठलाने वालों के लिए विनाश है।
(11) जो प्रतिकार (बदले) के दिन को झुठलाते हैं।
(12) तथा उसे वही झुठलाता है, जो महा अत्याचारी और पापी है।
(13) जब उनके सामने हमारी आयतों का अध्ययन किया जाता है, तो कहते हैं: पूर्वजों की कल्पित कथायें हैं।
(14) सुनो! उनके दिलों पर कुकर्मों के कारण लोहमल लग गया है।
(15) निश्चय वे उस दिन अपने पालनहार (के दर्शन) से रोक दिये जायेंगे।
(16) फिर वे नरक में जायेंगे।
(17) फिर कहा जायेगा कि यही है, जिसे तुम मिथ्या मानते थे।[1]
1. (7-17) इन आयतों में कुकर्मियों के दुषपरिणाम का विवरण दिया गया है। तथा यह बताया गया है कि उन के कुकर्म पहले ही से अपराध पत्रों में अंकित किये जा रहे हैं। तथा वे परलोक में कड़ी यातना का सामना करेंगे। और नरक में झोंक दिये जायेंगे। "सिज्जीन" से अभिप्राय, एक जगह है जहाँ पर काफ़िरों, अत्याचारियों और मुश्रिकों के कुकर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किये जाते हैं। दिलों का लोहमल, पापों की कालिमा को कहा गया है। पाप अन्तरात्मा को अन्धकार बना देते हैं तो सत्य को स्वीकार करने की स्वभाविक योग्यता खो देते हैं।
(18) सच ये है कि सदाचारियों के कर्म पत्र "इल्लिय्यीन" में हैं।
(19) और तुम क्या जानो कि "इल्लिय्यीन" क्या है?
(20) एक अंकित पुस्तक है।
(21) जिसके पास समीपवर्ती (फरिश्ते) उपस्थित रहते हैं।
(22) निशचय, सदाचारी आनन्द में होंगे।
(23) सिंहासनों के ऊपर बैठकर सब कुछ देख रहे होंगे।
(24) तुम उनके मुखों से आनंद के चिन्ह अनुभव करोगे।
(25) उन्हें मुहर लगी शुध्द मदिरा पिलाई जायेगी।
(26) ये मुहर कस्तूरी की होगी। तो इसकी अभिलाषा करने वालों को इसकी अभिलाषा करनी चाहिये।
(27) उसमें तसनीम मिली होगी।
(28) वह एक स्रोत है, जिससे अल्लाह के समीपवर्ती पियेंगे।[1]
1. (18-28) इन आयतों में बताया गया है कि सदाचारियों के कर्म ऊँचे पत्रों में अंकित किये जा रहे हैं जो फ़रिश्तों के पास सुरक्षित हैं। और वे स्वर्ग में सुख के साथ रहेंगे। "इल्लिय्यीन" से अभिप्राय, जन्नत में एक जगह है। जहाँ पर नेक लोगों के कर्म पत्र तथा प्राण एकत्र किये जाते हैं। वहाँ पर समीपवर्ती फ़रिश्ते उपस्थित रहते हैं।
(29) पापी (संसार में) ईमान लाने वालों पर हंसते थे।
(30) और जब उनके पास से गुज़रते, तो आँखें मिचकाते थे।
(31) और जब अपने परिवार में वापस जाते, तो आनंद लेते हुए वापस होते थे।
(32) और जब उन्हें (मोमिनों को) देखते, तो कहते थेः यही भटके हुए लोग हैं।
(33) जबकि वे उनके निरीक्षक बनाकर नहीं भेजे गये थे।
(34) तो जो ईमान लाये, आज काफ़िरों पर हंस रहे हैं।
(35) सिंहासनों के ऊपर से उन्हें देख रहे हैं।
(36) क्या काफ़िरों (विश्वास हीनों) को उनका बदला दे दिया गया?[1]
1. (29-36) इन आयतों में बताया गया है कि परलोक में कर्मों का फल दिया जायेगा तो संसारिक परिस्थितियाँ बदल जायेंगी। संसार में तो सब के लिये अल्लाह की दया है, परन्तु न्याय के दिन जो अपने सुख सुविधा पर गर्व करते थे और जिन निर्धन मुसलमानों को देख कर आँखें मारते थे, वहाँ पर वही उन के दुष्परिणाम को देख कर प्रसन्न होंगे। अंतिम आयत में विश्वास हीनों के दुष्परिणाम को उन का कर्म कहा गया है। जिस में यह संकेत है कि सुफल और कुफल स्वयं इन्सान के अपने कर्मों का स्वभाविक प्रभाव होगा।