الصلاة الصلاة!
بسم اللہ الرحمن الرحیم
ربِّ يسر وأعن
الحمد لله رب العالمین، والصلاة والسلام على أشرف الأنبياء والمرسلين، سيدنا محمد وعلى آله وأصحابه
أجمعين، أما بعد
1शहादतैन के बाद नमाज़ ही वह प्रथम प्रार्थना है जिसे अल्लाह तआ़ला ने वाजिब किया है,वह इस्लाम का द्वितीय स्तंभ है, अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है उन्हों ने फरमाया:मैं ने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुनाइस्लाम पाँच चीज़ों पर आधारित हैइस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य परमेश्वर नहीं और यह कि मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और नमाज़ पढ़ना,ज़कात देना, ह़ज करना और रमज़ान के रोज़े रखना
शहादतैन के बाद नमाज़ को यह स्थान देना इस बात का प्रमाण है कि बंदा काआस्था सही है,और उसके हृदय में शहादतैन का अर्थ जम चुका है जिसे वहनमाज़ के द्वारासत्य सिद्ध कर रहा है
2पैगंबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के हिजरत से पहले मक्का में तीन बेसते नबवी को नमाज़ उस समय फर्ज़ हुई जब इसरा व मेराज के अवसर पर आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को आकाश पर ले जाया गया,अत: सातवें आकाश पे उपर अल्लाह ने अपने नबी मोह़म्मद पर बिना किसी देवदूत के माध्यम के प्रत्यक्ष रूप में नमाज़ फर्ज़ किया, जबकि अन्य प्रार्थनाएं अप्रत्यक्ष रूप में फर्ज़ की गईं
3इस से पता चलता है कि नमाज़ हर वयस्क और स्वस्थ बुद्धि वाले मुसलमान पर फर्ज़ है,चाहे पुरूष हो या महिला
4इस्लाम में नमाज़ की जा स्थान प्राप्त है वह किसी अन्य प्रार्थना को नहीं,अतनमाज़ इस्लाम धर्म का स्तंभ है जिस के बिनाउसका भवन खड़ा नहीं हो सकता,मोआ़ज़ बिन जबल रज़अल्लाहु अंहु से वर्णित ह़दीस में आया है,वह फरमाते हैं ने मोआ़ज़ से फरमायातुम्हें धर्म मूल,उसका स्तंभ और उसकी चोटी न बतादूं मोआ़ज़ ने कहाक्यों नहींअल्लाह के रसूलअवश्य बताइयआप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाधर्म का मूल इस्लाम है और उसका स्तंभ नमाज़ है और उसकी चोटी जिहाद है
5नमाज़ बंदा और उसके रब की बीच कानाफूसी का एक माध्यम है, क्यों कि इस में अल्लाह तआ़ला से प्रार्थना, उसकी प्रशंसा, क़ुरान का सस्वर पाठ,तस्बीह़ व तह़मीद, तक्बीर और शरीर के अंगों का विनम्रता एवं विनयशीलता भी शामिल है, जैसे रूकू व सजदा करना और अल्लाह के समक्ष विनम्रता एवं विनयशीलता, विनम्रता एवं नज़र को झुकाके खड़ा होना,शैख अ़ब्दुर्रह़मान बिन सादी रहिमहुल्लाहु ने अल्लाह के इस कथन की व्याख्या में फरमाया {إِنَّ الصَّلاَةَ تَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاء وَالْمُنكَرِ وَلَذِكْرُ اللَّهِ أَكْبَرُ}[العنكبوت:45]
अर्थातवास्तव में नमाज़ रोकती है निर्लज्जा तथा दुराचार से और अल्लाह का स्मरण ही सर्व महान है
नमाज़ में इस से भी बढ़ कर एक और महान एवं महत्वपूर्ण उद्देश्य छिपा हुआ है, वह यह है कि नमाज़ हृदय, जीभ और पूरे शरीर से अल्लाह का जि़क्र करने का नाम है, क्यों कि अल्लाह तआ़ला ने बंदों को अपनी पूजा के लिये पैदा किया, और सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना नमाज़ ही है,इसके अंदर शारीरिक अंगों की एतनी पार्थनाएं शामिल हैं जो अन्य प्रार्थनाओं में नहीं, इसी लिये अल्लाह ने फरमायानिसंदेह अल्लाह का जिक्र बहुत बड़ी चीज़ हैसमाप्त
6नमाज़ के अंदर अनेक ऐसी विशेषताएं पाई जाती हैं जो अन्य प्राथनाओं में नहीं पाई जातीं,उन में से महत्वपूर्ण विशेषताएं ये हैं
· इसके लिए आवाज लगाई जाती है जिसे अज़ान कहा जाता है
· इसे अदा करने के लिए तिहारतपवित्रताअनिवार्य है
7यात्रा में एवं घर में,भय में व शांति में और स्वास्थ एवं रोग हर स्थिति में नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है,केवल यह कि ऐसा रोग हो जिस के कारण बुद्धि जाती रहे
8नमाज़ की महानता एवं महत्व ही है कि आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मरणसेज पर भी यह परामर्श किया कि नमाज़ का विशेष ध्यान रखा जाए,अतउम्मे सल्मा रज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णित है कि जिस रोग में आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की मृत्यु हुई,उस समय आप फरमाया करत थेनमाज़की रक्षा करोऔर उन दासी,दासों कीजो तुम्हारे अधीन आते हैंआप ने इन शब्दों को बार बार दोहराया यहां तक कि आपकी ज़बान रुक गई
अह़मद की एक रिवायत में आया हैयहां तक कि अल्लाह के नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम इन शब्दों को अपने हृदय में दोहराते रहे और आप की ज़बान से साफ साफ शब्द नहीं निकल रहे थे
आपके फरमानजो तुम्हारे अधीन हैंका अर्थ हैदासी एवं दास,जिन के साथ सुन्दर व्यवहार रखने की आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने परामर्श फरमाई
ह़दीस में ما يفيض بها لسانهके शब्द आए हैंअर्थआपकी ज़बान रुक गईउस वसीयत के अतिरिक्त आपकी ज़बान पर कोई और बात नहीं आ रही थीजैसे कि हम कहते हैं استفاض على ألسنۃ الناس کذا وکذا अर्थलोगों की ज़बान पे यह और यह बात प्रचलित हो गई, अन्य रिवायत मेंيُفيصके शब्द आए हैं,अर्थातआप साफ साफ नहीं बोल सकते थे, إفاصۃ का अर्थ होता है स्पष्ट करना,इस प्रकार दोनों शब्द के अर्थ एक ही है, वह यह कि पैगंबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ की रक्षा और उसको पढ़ने की वसीयत फरमा रहे हैं यहां तक कि रोग के बढ़ने के कारण आप स्पष्ट रूप से बोल नही सक पा रहे थे
9यह नमाज़ की महानता एवं महत्ता ही है कि क़्यातम के दिन सबसे पहले बंदा से जिस प्रार्थना के प्रति हिसाब लिया जाएगा वह नमाज़ होगी,अतअबू होरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाक़्यामत के दिन लोगों से जिस अ़मल के प्रति सबसे पहले हिसाब लिया जाएगा वह नमाज़ है, फरमायाहमारा र्स्वश्रेष्ठ अल्लाह देवदूतों से फरमाएगा जबकि वह पूर्व से हीसब जानने वाला हैमेरे बन्दे की नमाज़ देखोक्या उसने उसको पूरा किया है या उसमे कोई कमी हैअतवह यदि पूरी हुई तो पूरी की पूरी लिख दी जाएगी और यदि उसमें कोई कमी हुई तो फरमाएगा कि देखोक्या मेरे बन्दे के कुछ नवाफिल भी है?यदि नवाफिल हुए तो वह फरमाएगा कि मेरे बन्दे के फर्ज़ों को उसके नफिलों से पूरा कर दोफिर इसी प्रकार अन्य आ़माल लिए जाएंगे|[4]
10इसकी महानता एवं महत्ता का एक प्रमाण यह भी है कि अंत काल में इस्लाम धर्म का जो भाग सबसे अंतिम मेंलोगों के अंदर से समाप्त हो जाएगावह नमाज़ होगी,यदि नमाज़ नष्ट हो गई तो पूरा धर्म जाता रहेगा और धर्म का कोई भागउसके अंदरबाकी नहीं रहेगा,इसका प्रमाण आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह ह़दीस हैइस्लाम के सार बंधन एक एक करके टूट जाएंगे, जब भी कोई बंधन टूटेगा, लोग उसके बाद लावे बंधन से चिमट जाएंगे,सबसे प्रथम टूटने वाला बंधन शासन है और सबसे अंतिम में टूटने वाला बंधन नमाज़ है
ह़दीस में عرى الإسلامके शब्द आए हैं,इसका अर्थ है इस्लाम के फराएज़ व अह़काम व कानून,अर्थात लोग इन फराएज़ व अह़काम पर अ़मल करना छोड़ देंगे,जिस के फलस्वरूप धर्म की अजनबियत और बढ़ जाएगी यहां तक कि लोग नमाज़ से भी दूर हो जाएंगे, और सबसे अंतिम में नमाज़ ही छोड़ेंगे, जो कि अंतिम काल में होगा
· अल्लाह का कथन है { إِنَّ الصَّلاَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا} [6]
अर्थातनिसंदेह नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर अनिवार्य की गई है
· अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है, उन्हों ने फरमायामैं ने सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुनाइस्लाम पाँच चीज़ों पर आधारित हैइस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य परमेश्वर नहीं और यह कि ह़ज़रत मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं और नमाज़ पढ़ना,ज़कात देना, ह़ज करना और रमज़ान के रोज़े रखना
· अनस बिन मालिक रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है, उन्हों ने कहारसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाजो व्यक्ति हमारे जैसी नमाज़ पढ़े और हमारे क्बि़ले की ओर मँह करे और हमारा ज़बीहाहमारे हाथ का ज़बह किया हुआ जानवरखाए तो वह मुसलमान है जिसे अल्लाह और उसके रसूल का जि़म्मा [8] प्राप्त है, अततुम अल्लाह के जि़म्म्ो में ख्यानतवादे का हननन करो
· मोआ़ज़ रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है, वह फरमाते हैंमुझे रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दस बातों की वसीयत की, उन में से आप ने यह भी कहा जान बूझ कर कोई फर्ज़ नमाज़ न छोड़ा करो,क्यों कि जो व्यक्ति जान बूझ कर कोई फर्ज़ नमाज़ छोड़ता है वह अल्लाह के जि़म्म्ोरक्षासे निकल जाता है
· अल्लाह तआ़ला का कथन है {حَافِظُواْ عَلَى الصَّلَوَاتِ والصَّلاَةِ الْوُسْطَى}
अर्थातनमाज़ों का, विशेष रूप से माध्यमिक नमाज़ का ध्यान रखो
الصلاۃ الوسطى बीच वाली नमाज़,का अर्थ अ़सर की नमाज़ है
· अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र रज़ीअल्लाहु अंहुमा नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से वर्णन करते हैं कि आप ने एक दिन नमाज़ का उल्लेख किया तो फरमायाजो व्यक्ति नमाज़ की रक्षा करता है उस के लिए वर क़्यामत के दिन नूर,आलोकप्रमाण और नजात होगी,और जो व्यक्ति इसकी रक्षा नहीं करता उसके लिए न नूर होगा,न बुरहानप्रमाणऔर न नजात, और वह क़्यामत के दिन क़ारून व फिरऔ़न और हारून और ओबैय बिन ख़ल्फ के साथ होगा
इब्नुल क़य्यिम रहीमहुल्लाहु[12]फरमाते हैंइन चार व्यक्तियों का उल्लेख विशेष रूप से इस लिए किया गया है कि ये सारे काफिरों के सरदार थे, इस में एक बारीक बिंदु भी है, वह यह कि जो व्यक्ति नमाज़ की रक्षा नहीं करता वह या तो धन एवं संपत्ति में व्यस्त रहता है,या अपने शासन में, या अपने राज्य व सरदारी में या अपनी व्यापार में व्यस्त रहता है, अतजिस व्यक्ति को उसका धन नमाज़ से दूर एवं व्यस्त करदे वह क़ारून के साथ होगा, जिसे उसका शासन नमाज़ से व्यस्त करदे वह फिरऔ़न के साथ होगा,जिसे उसका राज्य व सरदारीजैसे मंत्रालय अथवा इस जैसा कोई अन्य पदनमाज़ से दूर कर दे वर हामान के साथ होगा और जिसे उसका व्यापार नमाज़ से फेर दे वह ओबैय पुत्र खल्फ के साथ होगा
· ओ़बादह पुत्र सामित रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है, वर फरमाते हैंमैं ने रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुनापाँच नमाज़ें हैं जो अल्लाह तआ़ला ने बंदों पर फर्ज़ की हैं,जो व्यक्ति उन्हें पढ़े, उनमें से किसी को कम महत्वपूर्ण समझ कर न छोड़दे[14]तो अल्लाह तआ़ला के यहॅा उस के लिए वादा हो चुका है कि वह उसे स्वर्ग में प्रवेश प्रदान करेगाऔर जो व्यक्त्िा उन को न पढ़े तो अल्लाह तआ़ला के यहॅा उस के लिए कोई वादा नहीं, चाहे उसे यातना दे, चाहे स्वर्ग में प्रवेश करे
· अबू होरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाक़्यामत के दिन लोगों से जिस अ़मल का सबसे पहले हिसाब लिया जाएगा वर नमाज़ है, फरमायाहमारा र्स्वश्रेष्ठ परवरदिगार देवदूतों से फरमाएगा जबकि वहपूर्व से हीसब जानने वाला हैमेरे बंदे की नमाज़ देखोक्या उसने इसको पूरा किया है या इसमें कोई कमी हैअतवह यदि पूरी हुई तो पूरी लिख दी जाएगी और यदि इसमें कोई कमी हुई तो फरमाएगा कि देखोक्या मेरे बंदे के कुछ नवाफिल भी हैंयदि नवाफिल हुए तो वर फरमाएगा कि मेरे बंदे के फर्ज़ों को उसके नफलों से पूरा करदोफिर इसी प्रकार से अन्य आ़माल लिए जाएंगे
· नमाज़ के महत्व को देखते हुए ही नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मौत के रोग में भी इसकी वसीयत की, अतउम्म्ो सल्मा रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है कि जिस रोग में आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का निधन हुआ, उसमें आप फरमाया करते थेनमाज़की रक्षा करोऔर उनदासी,दासों कीजो तुम्हारे अधीन हैंआप ने यह शब्द बार बार फरमाए यहॉ तक कि आप की ज़बान रुक गई
· नमाज़ र्स्वश्रेष्ठ अ़मल है, अतसौ़बान रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है, अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायासीधे मार्ग पर स्थिर रहो और तुम पूर्ण रूप सेस्थिर नहीं रह सकोगे, और तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि तुम्हारा र्स्वश्रेष्ठ अ़मल नमाज़ है और वुज़ू की रक्षा मोमिन ही करता है
· नमाज़ स्वर्ग में प्रवेश होने का एक महान कारण है,क़ुरान पाक की अनेक आयतों में अल्लाह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वर्गवासी अपने जिन महत्वपूर्ण अ़मलों के कारण स्वर्ग के पात्र होंगे, उन में नमाज़ पढ़ना और ज़कात देना भी उल्लेखनीय हैं,उदाहरण स्वरूप अल्लाह तआ़ला का यह कथन देखें
{إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلاَةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلاَنِيَةً يَرْجُونَ تِجَارَةً لَّن تَبُور لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِ إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُور}[فاطر: 29-30]
अर्थातवास्तव में जो पढ़ते हैं अल्लाह की पुस्तककुर्आन,तथा उन्होंने स्थापना की नमाज़ की, एवं दान किया उस में से जो हम ने उन्हें प्रदान किया है खुले तथा छुपे तो वही आशा रखते हैं ऐसे व्यापार की जो कदापि हानिकर नहीं होगाताकि अल्लाह प्रदान करे उन्हें भरपूर उन का प्रतिफल,तथा उन्हें अधिक दे अपने अनुग्रह से, वास्तव में वह अति क्षमी आदर करने वाला है
· बकर पुत्र अबी मूसा अपने पिता से वर्णन करते हैं कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाजिसने दो ठंडे समय की नमाज़ों कोनियमित रूप सेअदा किया,वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा
ठंडे समय का मतलब फजर और अ़सर की नमाज़ है,ऐसा नाम देने का कारण यह है कि इन दो नमाज़ों के समय ऋतुसामान्य रूप सेठंडा होता है
· नमाज़ की पाबंदी एवं रक्षा करना नरक में प्रवेश से रोकने वाले कार्यों में से हैअतज़ोहैर पुत्र अ़म्मारा अपने पिता रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित करते हैं, उन्हों ने कहामैं ने रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुनावह व्यक्ति कभी भी अग्नि में प्रवेश नहीं होगा जो सूर्य निकलने और उसके अस्त होने से पहले नमाज़ पढ़ता हैअर्थात फजर और अ़सर की नमाज़ें
· नमाज़ पापों के क्षमा का माध्यम है,[21]अतइब्ने मसउूद रज़ीअल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि एक व्यक्त्िा ने किसी अजनबी महिला का चुंबन लेलिया, उसके बाद वह रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सेवा में उपस्थित हुआ और अपना पाप बताया तो उस समय यह आयत उतरी
{وَأَقِمِ الصَّلاَةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِّنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّـيِّئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَى لِلذَّاكِرِين}[هود:114]
अर्थाततथा आप नमाज़ की स्थापना करें,दिन के सीरों पर और कुछ रात बीतने पर, वास्तव में सदाचार दुराचारों को दूर कर देते हैं यह एक शिक्षा है शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिये
उस व्यक्ति ने आप से पूछाक्या ये केवल मेरे लिये हैआप ने फरमायानहीं, बल्कि मेरी उम्मत में से जो भी इस पर अ़मल करे यह सब के लिए है
पापों को दूर करती हैंअर्थातउन्हें मिटा देती हैं
· अबू होरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु फरमाते हैं कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायापाँचों नमाज़ें और हरशुक्रवारदूसरेशुक्रवार तक बीच के काल के पापों का कफ्फाराउनको मिटाने वालेहैं,जब तक कबीराबड़ेपापों को न किया जाए
· अबू होरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से मरवी है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायातुम क्या समझते हो यदि तुम में से किसी के घर के सामने नहर हो जिससे वह हर दिन पाँच बार नहाता हो, क्या उस के शरीरका कोई कोई मैल कुचेल बाकी रहेगा,आप ने फरमाया यही पाँच नमाज़ों का उदाहरण है, अल्लाह तआ़ला उनके माध्यम से पापों को साफ कर देता है
· फजर और अ़सर की नमाज़ें नियमित रुप से पढ़ने का सवाब यह है कि आखिरत में अल्लाह के दर्शन का सौभाग्य होगा जो कि सोवर्गवासियों के लिये सबसे बड़ा उपकार होगा,इसका प्रमाण जरीर बिन अ़ब्दुल्लाह बिजली रज़ीअल्लाहु अंहु की यह ह़दीस है,फरमाते हैंहम एक रात नबी रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ बैठे हुए थेआपने चौध्वीं रात के चाँद की ओर देखा तो फरमायानिसंदेह तुम अपने रब को देखोगे जिस प्रकार तुम इस चाँद को देख रहे हो,उसे देखने में तुम्हें कोई कठिनाई नहीं हेागी,इस लिये यदि तुम्हारे लिए संभंव हो तो सूर्य उगने और सूर्य अस्त होने से पहले नमाज़ न छोडो़फिर आप ने यह आयत पढ़ी
{وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوب}[ق:39]
अर्थात तथा पवित्रता का वर्णन करें अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ सूर्य के निकलने से पहले तथा डूबने से पहले
ह़दीस मे (لا تَضامُّون ) का शब्द आया है जिस का अर्थ हैअल्लाह को देखते समय आपस में तुम्हारे बीच मुठभेड़ नहीं होगी
(لا تُضامُون) تا के पेश और میم के सुकून के साथ भी आया है,इसका अर्थ हैअल्लाह को देखते समय तुम्हारे उूपर अन्याय नहीं होगा कि तुम में से कोई देखे और कोई न देखे
यह अर्थ भी हो सकता है कि अल्लाह को देखते हुए अल्लाह के नूर के कारण तुम्हारी आंखें नहीं चोंध्याएगी,क्यों कि मनुष्य अल्लाह के नूर को झेल नहीं सकता,किन्तु आखिरत में मोमिनों को इतनी शक्ति प्रदान की जाएगी कि वर उस नूर को झेल सके,उसके बाद अल्लाह तआ़ला के दर्शन का सौभाग्य प्रदान होगा
और सारे अर्थ सही हैं
· अल्लाह तआ़ला का कथन है {إِنَّ الصَّلاَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا}
अर्थातनिसंदेह नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर अनिवार्य की गई है
इब्ने मस्उूद रज़ीअल्लाहु अंहु का कथन हैनमाज़ का निर्धारित समय है जिस प्रकार ह़ज का निर्धारित समय है
· अबु अलमलीह़ फरमाते हैंहम अबु आलूद दिन में ह़ज़रत बुरीदा रज़ीअल्लाह़ अंहु के साथ एक युद्ध में थे, उन्हों ने फरमायाअ़सर की नमाज़ जल्दी पढ़ लो क्यों कि नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का कथन हैजिस व्यक्ति ने अ़सर की नमाज़ छोड़ दी, उसका अ़मल नष्ट हो गया
· निर्धारित समय पर नमाज़ पढ़ना र्स्वश्रेष्ठ कार्येां में से है, अतअ़ब्दुल्लाह पुत्र मस्उू़द रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैंमैंने नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछाअल्लाह तआ़ला को कोनसा अ़मल सबसे अधिक पसंद हैआपने फरमायानमाज़ को समय पर पढ़ना,उन्हों ने पूछाफिर कोनसाआपने फरमायामातापिता के साथ सुन्दर व्यवहार करना,उन्होंने पूछाफिर कोनसाआपने फरमायाअल्लाह के मार्ग में जिहाद करना, ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मस्उ़ूद रज़ीअल्लाहु अंहु कहते हैंरसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे इसी प्रकार उल्ल्ोख किया,यदि मैं और पूछता तो आप और कहते
अध्याय नमाज़ को उसके निर्धारित समय से विलम करने के कठोर निवारण का उल्लेख
· अल्लाह का कथन है
{فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينالَّذِينَ هُمْ عَن صَلاَتِهِمْ سَاهُون}
अर्थातविनाश है उन नमाजि़यों के लिये जो अपनी नमाज़ से अचेत हैं
सअ़द पुत्र अबी वक्का़स रज़ीअल्लाहु अंहु फरमाते हैंयह वे लोग हैं जो नमाज़ को उसके निर्धारित समय से विलम करते हैु, यही कथन मसरूक़ बिन अलइजदा और अबू अलज़ोह़ा का भी है
· मसअ़ब पुत्र अबी साद पुत्र अबी वक़्कास फरमाते हैंमैंने अपने पिता से कहाए पिता जीअल्लाह तआ़ला के इस कथन के विषय में आपकी क्या राय है {فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّين الَّذِينَ هُمْ عَن صَلاَتِهِمْ سَاهُون} हम में से कोन है जिससे भूल चूक नहीं होतीहम में से कोन है जिसकी नमाज़ मेंविचार नहीं आतेउन्होंने फरमायाइसका मतलब यह नहीं है, बक्लि इसका अर्थ है नमाज़ के निर्धारित समय को खराब करना वह इस प्रकार कि खेल कूद में मगन रहे यहां तक कि नमाज़ का समय निकल जाए
· इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु इस आयत की व्याख्या में लिखते हैंआयत में سہو का अर्थ नमाज़ छोड़ना है, यदि यह अर्थ न होता तो उन्हें नमाज़ी नहीं कहा जाता, बलिक इसका अर्थ नमाज़ की अनिवार्यता से लापरवाही करना है, या तो इसके निर्धारित समय से,जैसा कि इब्ने मस्उ़ूद आदि का कथन है, या विनम्रता व विनयशीलता से लापरवाही करना है
सही यह है कि इससे दोनों प्रकार की लापरवाही है, क्यों कि अल्लाह तआ़ला ने ऐसे लोगों के लिए नमाज़ पढ़ने का जि़क्र तो किया है, साथ ही उनकी यह विशेषता बताई है कि वे इसमे लापरवाही करते हैं,जिसका अर्थ इसके अनिवार्य निर्धारित समय से लापरवाही करना,अथवा अनिवार्य सत्यनिष्ठा और अनिवार्य विनयशीलता से लापरवाही करना है
· इब्ने उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाजिस व्यक्ति की अ़सर की नमाज़ छूट गई, मानो उसके सारे संतान और धन लुट गए
मानो उसके सारे संतान और धन लुट गएअर्थातवे सब छीन लिए गए और वह परिवार व संतान एवं धन से वंचित हो गया
· अबूल अलमलीह़ फरमाते हैंहम अबू आलूद दिन में ह़ज़रत बुरीदा रज़ीअल्लाहु अंहु के साथ एक युद्ध में थे, उन्होंने फरमायाअ़सर की नमाज़ जल्दी पढ़लो क्यों कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान हैजिसने अ़सर की नमाज़ छोड़दी, उसका अ़मल नष्ट होगया
· सुमरा बिन जुनदुब रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है,उन्हों ने कहारसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम बारबार सह़ाबा से फरमाया करते थेक्या तुम में से किसी ने कोई सपना देखा हैजिसने देखा होता वह अल्लाह की तौफीक़ से आपको बताता, आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम एक सुबह फरमायाआज रात मेरे पास दो आने वाले आए, उन्हों ने मुझे उठाया और मुझसे कहामेरे साथचलो, मैं उनके साथ चल दिया,अतहम एक व्यक्ति के पास आए जो लेटा हुआ था और दूसरा व्यक्ति उसके पास एक पत्थर लिए खड़ा था, अचानक वह उसके सर पर पत्थर मारता तो उसका सर तोड़ देता और पत्थर लुढ़क कर दूर चला जाता, वर पत्थर के पीछे जाता और उसे उठा लाता,उसके वापस आने से पहले पहले दूसरे का सर सही हो जाता जैसा कि पहले था, खडा़ हुआ व्यक्ति फिर इसी प्रकार मारता और ऐसा ही होता जैसे पहले हुआ
आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायामैंने दोनों से कहा سبحان اللہ! क्या बात हैयह दोनों व्यक्ति कोन हैं
उन्हों ने कहा आगे चलो, आगे चलो
· अबू होरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब मनुष्य रातरात के समयसो जाता है तो शैतान उसके मगज[38]पर तीन गिरहें लगादेता है, प्रत्येक गिरह पर यह फूंक देता है कि अभी तो बहुत रात बाकी है सोजाओ, फिर यदि मनुष्य जाग गया हो और अल्लाह का स्मरण किया तो एक गिरह खुल जाती है, यदि उसने वज़ू कर लिया तो दूसरी गिरह भी खुल जाती है,उसके बाद अगर उसने नमाज़ नमाज़ पढ़ी तो तीसरी गिरह भी खुल जाती है,फिर सुबह को वह प्रसन्न लगता है,अन्यथा सुबह के समय उदास और थका हुआ जागता है
· अ़ब्दुल्लाह बिन मस्उ़द रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है, उन्हों ने कहा कि पैगंबर रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक ऐसे व्यक्ति के विषय में बात की गई जो रात से ले कर सुबह तक सोया रहा, आप ने फरमायायह ऐसा व्यक्ति है जिस के दोनों या एक कान में शैतान ने पैशाब कर दिया है
· उ़मर पुत्र अ़ब्दुलअ़ज़ीज़ ने अपने वालियोंअर्थात अनेक नगरों के राज्यपालोंको लिख भेजा कि नमाज़ के समय व्यस्त रहने से बचो,क्यों कि जो व्यक्ति नमाज़ को नष्ट करदे, वह इस्लाम के अन्य अह़काम को अधिक नष्ट कर देता है
· अबूहोरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है, उन्होंने कहा रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायामनुष्य का मजाअ़त के साथसामूहिक रूप मेंनमाज़ पढ़ना उसके अपने घर और अपने बाज़ार में नमाज़ पढ़ने से पचीस गुणा अधिक पूण्य का कारण है और यह इस प्रकार कि जब वह उत्तम रूप से वज़ू करके मस्जिद की ओर जाए और केवल नमाज़ के लिये चले तो जो पैर भी उठाएगा उसके बदले उसका एक स्थान उच्च होगा और एक पाप भी ख्तम होगा, फिर जब वह नमाज़ अदा करलेगा तो जब तक अपने नमाज़ के स्थान पे होगा,देवदूत उसके लिये दुआ़ करते रहेंगे कि हे अल्लाह तू इस प्र क़पा व दया फरमा, और जब तक तुम में से कोई नमाज़ का प्रतिक्षा करता है तो वह मानो नमाज़ ही के अवस्था में होता है
· अ़ब्दुल्लाह पुत्र मस्उ़ूद रज़ीअल्लाहु अंहु फरमाते हैंजो यह चाहे कि कलक़्यामत के दिनअल्लाह तआ़ला से मुसलमान के रूप में मिले तो वह जहां से उननमाज़ोंके लिये बोलाया जाए,उन नमाज़ों को पूरी करेवहां मस्जिद में जा कर सही ढंग से उन्हें अदा करेक्योंकि अल्लाह तआ़ला ने मुम्हारे पैगंबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिये हिदायत के मार्गों को निश्चय कर दिया है और यह मस्जिदों में सामूहिक नमाज़ेंभी उन्हीं तरीकों में से हैंक्योंकि यदि तुम नमाज़ें अपने घरों में पढ़ोंगे तो तुम, जैसे यह समूह से पीछे रहने वाला, अपने घर में पढ़ता है तो तुम अपने नबी के मार्ग को छोड़ दोगे और यदि तुम अपने नबी के मार्ग को छोड़ दोगे तो गुमराह हो जाओगेकोई व्यक्ति जो पवित्रता प्राप्त करता हैवज़ू करता हैऔर अच्छे से वज़ू करता है, फिर इन मस्जिदों में से किसी एक में जाता है तो अल्लाह तआ़ला उसके प्रत्येक पग के बदले,जो वह उठाता है,एक नेकी लिखता है,और उसके कारण उसका एक स्थान उच्च कर देता है और उसका एक पाप मिटा देता है, और मैंने देखा कि हम में से कोईभीनमाज़ सामुहिक रूप से पढ़ने से पीछे न रहता था, सिवाए ऐसे मोनाफिकपाखंडीके जिसका निफाकपाखंडसबको मालूम होताबल्कि कभी कभी ऐसा होता किएक व्यक्ति को इस प्रकार लाया जाता किदुर्बलता और निर्बलता के कारणउसे दो व्यक्तियों के बीच सहारा दिया गया होता,फिर उसे सफ में खड़ा किया जाता
· मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वाले व्यक्ति को क़्यामत के दिन अल्लाह तआ़ला अपने साये के नीचे स्थान देगा, जिस दिन सूर्य मनुष्य से एक मील की दूरी पर हागा,अतअबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है वह पैगंबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमायासात लोग ऐसे हैं जिन्हें अल्लाह तआ़ला क़्यामत के दिन अपने साये के नीचे स्थान प्रदान करेगा,उस दिन उसके साये[44] के अतिरिक्त और कोई साया नहीं होगा,निष्पक्ष शासक,वह यूवा जो अल्लाह की पूजा करते हुए लपा बढ़ा हो, जिसने अकेले में अल्लाह को याद किया और उसकी आंखों से आंसू बह पड़े,वह व्यक्ति जिसका हृदय मस्जिद में लगा रहता है... الحدیث
· मुस्लिम की एक वर्णन में आया हैवह व्यक्ति जब मस्जिद से निकलता है तो उसी के साथ मोअ़ल्क़लटका हुआरहता है यहां तक कि उसमें लौट आए... الحدیث,[45]
· अबूहोरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु पैगंबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत करते हैं कि आपने फरमायाजो व्यक्ति दिन के पहले भाग में या दिन के दूसरे भाग में मस्जिद की ओर गया अल्लाह तआ़लाहर बार आने परउसके लिये स्वर्ग में (النُّزل) सत्कार का प्रबंध फरमाता है, जब भी वहआएसुबह को आये अथवा शाम को आए
النُّزلसत्कार का अर्थ वह स्थान है जो अतिथि के लिये तैयार किया जाता है
· प्रथम जमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़ने की अनिवार्यता का एक प्रमाण यह है कि अल्लाह तआ़ला ने युद्ध के अवस्था में भी सामूहिक नमाज़ को अनिवार्य कर दिया है जो कि सबसे कठिन समय होता है, यह नमाज़ صلاۃ الخوف भय वाली नमाज़से जानी जाती है, अल्लाह तआ़ला का कथन है
{وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ الصَّلاَةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌ مِّنْهُم مَّعَكَ} الآية
अर्थाततथाहे नबीजब आप पणक्षेत्र मेंउपस्थित हों,और उन के लिये नमाज़ की स्थापना करें तो उन का एक गिरोह आप के साथ खड़ा हो जाये
· अल्लाह तआ़ला का कथन है {وَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ وَآتُواْ الزَّكَاةَ وَارْكَعُواْ مَعَ الرَّاكِعِين}
अर्थाततथा नमाज़ की स्थापना करो,और ज़कात दो तथा झुकने वालों के साथ झुकोरुकू करो
इस आयत में रुकू करने वालों का अर्थ मस्जिद की जमाअ़त है
· अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाउस हस्ती का शपथ जिस के हाथ में मेरा प्राण हैमेरा इरादा हुआ कि मैं ईंधन इकट्ठा करनेका आदेश दूं,फिर मैं उन लोगों के पास जाउूंजो समूह में शरीक नहीं होतेऔर उन्हें उनके घरों समेत जलादूं, शपथ है उस हस्ती की जिस के हाथ में मेरा प्राण हैतुम में से किसी को यदि आशा हो कि वहां मस्जिद में से मोटी हड्डी अथवा अच्छे पाए मिलेंगे तो वह अवश्य इशा में भी उपस्थित हो
सह़ी मुस्लिम की रिवायत में हैफिर मैं कुछ लोगों को साथ लेकर,जिन के पास लकडि़यों के गट्ठे हों, उन लोगों की ओर जाउूं जो नमाज़ में उपस्थित नहीं होते,फिर उन्हें उनके घरों समेत जलादूं
· इब्ने अ़ब्बास रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है कि नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाजो व्यक्ति अज़ान सुन करनमाज़ के लिये मस्जिम मेंनहीं आता,उसकी कोई नमाज़ नहीं,सिवाए किसी असुविधा की स्थिति में.
· अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है,वह फरमाते हैं नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सेवा में एक अंधा आया और पूछाऐ अल्लाह के रसूलमेरे पास कोई लाने वाला नहीं जोहाथ से पकड़ करमुझे मस्जिद में ले आए,उसने नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से अनुरोध किया कि उसे अनुमति दी जाए कि वह अपने घर में नमाज़ पढ़ले,आपने उसे अनुमति देदी, जब वह वापस हुआ तो आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे बलाया और फरमायाक्या तुम नमाज़ का बोलावाअज़ानसुनते होउसने कहाजी हां,आपने फरमायातो उस पर लब्बेक कहो
· निष्कर्ष यह कि समूह में मस्जिद में नमाज़ अदा करना अनिवार्य है,हां कि कोई खेद हो जैसे भय,वर्षा,अथवा भीषण आंधी,समूह का अर्थ प्रर्थम जमाअ़त,जिस के लिये अज़ान दी जाती और इक़ामत कही जाती है,कुछ लोग प्रथम जमाअ़त से पीछे रह जाते हैं,अल्लाह उन्हें हिदायत दे,जिसके कारण हम देखते हैं कि नमाज़ी कई समूहों में बट जाते हैं और कोई एक जमाअ़त नहीं रह पाती,अल्लाह ही हिदायत देने वाला है
अध्याय शुक्रवार की नमाज़ छोड़ने के निवारण का उल्लेख
· इब्ने उ़मर और अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिंबर की सीढि़यों पर खड़े हो कर फरमायालोग जुमा की नमाज़ छोड़ने से रुक जाएं वरना अल्लाह तआ़ला उनके हृदयों पर मोहर लगा देगा और वह निश्चय रूप से ग़ाफिलों में से हो जाएंगे
जुमा की नमाज़ के लिये जल्दी जाने और प्रथम पंक्ति में बैठने के महत्व की व्याख्या
· अबूहोरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायापुरूषों की र्स्वोत्तम पंक्ति प्रथम और बदतर पंक्ति अंतिम पंक्ति है
· अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायायदि तुम जानलो,अथवा लोग जानलें कि प्रथम पंक्ति का क्या महत्व है तो इसके लिये शलाका हो
· अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाअगर लोगों को मालूम हो जाए कि अज़ान और प्रथम पंक्ति में किया पुण्य है,फिर वह अपने लिये मतदान करने के अतिरिक्त कोई उपाय न पाएं तो अवश्य मतदान करेंऔर लोगों को ज्ञात हो जाए कि ज़ोहर की नमाज़ के लिये जलदी आने का कितना पुण्य है तो अवश्य स्पर्था करेंगेऔर अगर वह जान लें कि इशा और फजर की नमाज़ समूह में पढ़ने में कितना पुण्य है तो इन दोनोंकी जमाअ़तमें अवश्य आएंगे यद्यपि उन्हें चूतड़ों के सहारे चल कर आना पड़े
· बरा बिन आ़जि़ब रज़ीअल्लाहु अंहु फरमाते हैं कि सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाया करते थेअल्लाह तआ़ला प्रथम पंक्तियों में आने वालों पर कृपा नाजि़ल करता है और देवदूत उनके लिये दुआ़ऐं करते हैं
इब्ने हि़ब्बान ने अपनी सह़ी में इन शब्दों के साथ यह ह़दीस रिवायत किया हैअल्लाह तआ़ला प्रथम पंक्तिमें आने वालोंपर रह़मतकृपाउतारता है और देवदूत उनके लिए दुआ़एं करते हैं
· अ़रबाज़ पुत्र सारिया रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अगली पंक्ति वालों के लिये तीन बार क्षमा की दुआ़ फरमाते थे और दूसरी पंक्ति के लिये एक बार
निसाई में यह शब्द आए हैंप्रथम पंक्ति वालों के लिये तीन बार दुआ़ फरमाते थे और दूसरी पंक्ति के लिये एक बार
· अबूसई़द खुदरी रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने कुछसह़ाबा में यह बात देखी कि वे पीछे रहते हैं,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाजो लोग पीछे रहने को आदत बना लेते हैं उन का अंताम यह होगा कि अल्लाह तआ़ला उन्हें पीछे करदेगा
अर्थात अपने अपार कृपा,दया एवं उच्च स्थान से पीछे करदेगा
· आयशा रज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णित है कि आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाजो लोग प्रथम पंक्ति से पीछे रहतेऔर इसे अपनी आदत बना लेतेहैं अल्लाह उन्हें भी पीछे करदेगा
· इब्राहीम पुत्र यज़ीद नख्ई़[60] फरमाते हैंजिस व्यक्ति को तुम देखो कि वह तकबीरे उूलाप्रथम तकबीर को पकड़ने में सुस्ती करता है,उससे अपने हाथ धोलो
· अबूहोरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि एक बार रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में आए,एतने में एक व्यक्ति आया और उसने नमाज़ पढ़ी फिर उसने आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाम कियाआपनेसलाम का उत्तर देने के बादफरमायावापस जाओ और नमाज़ पढ़ो तुमने नमाज़ नहीं पढ़ीवह व्यक्ति वापस गया और उसी प्रकार नमाज़ पढ़ी जिसे उसनेपहलेपढ़ी थी,फिर उसने आकर नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाम किया,आपनेसलाम का उत्तर देने के बादफरमायावापस जाओ और नमाज़ पढ़ो तुम ने नमाज़ नहीं पढ़ी,फिर इसी प्रकार तीनों बार हुआ अंत उसने कहाशपथ है उस अल्लाह की जिसने आपको सत्य के साथ भेजा हैमैं इससे अच्छी नमाज़ नहीं पढ़ सकता,अतआप मुझे बता दीजियेआपने फरमायाअच्छा जब तुम नमाज़ के लिये खड़े हो तो अल्लाहु अकबर कहो,फिर क़ुरान से जो तुम्हें याद हो पढ़ो,उसके बाद आराम से रुकू करो,फिर सर उठाओ और सीधे खड़े होजाओ,इसी प्रकार अपनी पूरी नमाज़ पूरी करो
यह ह़दीस विद्वानों के बीच حدیث المسیء صلاتہ के नाम से प्रसिद्ध है,इस ह़दीस से ज्ञात होता है कि क़्याम और रुकू व सुजूद जैसे नमाज़ के समस्त अंगों को पूरा करने में स़तुष्टि एक स्तंभ का स्थान रखता है
· जैद बिन वहब से वर्णित है,वह फरमाते हैंहम होज़ैफा रज़ीअल्लाहु अंहु के साथ मस्जिद में बैठे थे कि एक व्यक्ति ابواب کِندہ द्वार का नाम से प्रवेश किया और नमाज़ पढ़ने लग,किन्तु नमाज़ में रुकू व सुजूद पूर्णता से अदा नहीं किये,जब वह नमाज़ पढ़ चुके तो हो़ज़ैफा रज़ीअल्लाहु अंहु ने पूछातुम कितने वर्ष से इस प्रकार नमाज़ पढ़ रहे हो?उसने उत्तर दियाचालीस वषों से,ह़ोज़ैफा रज़ीअल्लाहु अंहु ने कहातुमने चालीस वर्षों से नमाज़ नहीं पढ़ी,यदि इसी प्रकार नमाज़ पढ़ते हुए तुम्हारा निधन होगया तो तुम इस फित़रतप्रकृति के अतिरिक्तकिसी और फित़रत फित़रत परमरोगे जिस पर मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ था
· अ़ब्दुर रह़मान पुत्र शिब्ल रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन चीजों से मना फरमायाकौव्वे के जैसा ठोंगे मारने से,दरिंदे के जेसे बांह बिछाने से और व्यक्ति नमाज़ के लिये एक ही स्थान निश्चित करले,जैसे उूंटबैठने के लियेएक स्थान निश्चत करलेता है
· कैव्वे के जैसे ठोंगें मारने से रोका,इसमें हलका सजदा करने और सजदे में असंतुष्टि से रोका है,यही कारण है कि विद्वानों ने धीरता को नमाज़ के स्तंभों में से एक स्तंभ माना है,जिसके बिना नमाज़ सही नहीं होती,और छोड़ देने से नमाज़ खराब होजाती है,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पूरी तरह से रुकू और सजदा किया करते थे,अतरुकू करते तो पूरी धीरता के साथ रुकू में रहते,सजदा करते तो पूरी धीरता से सजदा में रहते और मासूर दुआ़एं पढ़ते, इस लिये आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का अनुगमन अनिवार्य है,पैगंबर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह भी बताया है कि व्यक्ति की लंबी नमाज़ उसकी बौधिक्ता व अंतर्दृष्टि का प्रमाण है
· इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु फरमाते हैंअल्लाह तआ़ला ने फरमाया {وَأَقِيمُواْ الصَّلاَةَ}
अर्थाततथा नमाज़ की स्थापना करो
अतअल्लाह ने हमें नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया,जिस का मतलब है इसे सह़ी और पूरे रूप में क़्याम,रुकू व सजूद और जिर्कों और दुआ़ओं के साथ अदा किया जाए,अल्लाह तआ़ला ने सफलता को नमाज़ में नमाज़ी के विनम्रता एवं विनयशीलता पर निर्भर माना हैख,अतजिस व्यक्ति की नमाज़ में विनम्रता एवं विनयशीलता ने हो वह सफल लोगों में से नहीं है,यह असंभव है कि जल्द बाजी में ठोंगे मारते हुए जो नमाज़ पढ़ी जाए,उस में विनम्रता एवं विनयशीलता हो,बल्कि शांति के बिना विनम्रता एवं विनयशीलता का संकल्प ही नहीं किया जा सकता है,नमाज़ जितना शांतिपूर्ण होगी उतना ही उसमें विनम्रता एवं विनयशीलता भी होगा,और विनम्रता एवं विनयशीलता जितनी कम होगी उतना ही जल्दबाजी बढ़ेगी,यहां तक कि उसके शरीर की गति उस बेकार गति के जैसा होजएगी जिसमें न तो विनम्रता एवं विनयशीलता होता है,न बंदगी का भाव,और न बंदगी का ज्ञान
अध्याय नमाज़ छोड़ने वाले का हुकुम
शहादतैन के बाद इस्लाम का सबसे बड़ा स्तंभ नमाज़ ही है,जिस ने इसकी अनिवार्यता का इंकार करते ह़ए इसे छोड़ दिया तो वह आम सहमति से काफिर है,और जो व्यक्ति सुस्ती में इसे छोड़दे,उसके प्रति प्राचीन काल एवं आधुनिक काल के विद्वानों दो पक्ष हैं,[67]इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु अपनी पुस्तक "کتاب الصلاۃ وحکم تارکھا" के आरंभ में लिखते हैं:
इस विषय में मुसलमानों के बीच कोई तमभेद नहीं है कि जान बूझ कर फर्ज़ नमाज़ को छोड़ना र्स्वश्रेष्ठ पापों में से है,जिसका पाप अल्लाह के यहां हत्या,डाका डालना,बलातकार,चोरी और शराब पीन से बढ़ कर है,और ऐसा व्यक्ति दुनया एवं आखिरत में अल्लाह की यातना,उसकी नाराजगी और रुसवाई का पात्र होता हैसमाप्त
· सुस्ती में नमाज़ छोड़ने वाला काफिर है,इसका एक प्रमाण सूरह मरयम में अल्लाह तआ़ला का यह कथन है:
{فَخَلَفَ مِن بَعْدِهِمْ خَلْفٌ أَضَاعُوا الصَّلاَةَ وَاتَّبَعُوا الشَّهَوَاتِ فَسَوْفَ يَلْقَوْنَ غَيًّا* إِلاَّ مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُوْلَئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَلاَ يُظْلَمُونَ شَيْئًا}
अर्थात:फिर इन के पश्चात ऐसे कपूत पैदा हुये,जिन्हों ने गँवा दिया नमाज़ को तथा अनुसरण किया मनोकांक्षावों का,तो वह शीघ्र ही कुपथके परिणामका सामना करेंगेपरन्तु जिन्होंने क्षमा माँग ली,तथा ईमान लाये और सदाचार किये तो वही स्वर्ग में प्रवेश पायेंगे और उन पर तनिक अत्याचार नहीं किया जाएगा
तर्क यह है कि अल्लाह तआ़ला ने नमाज़ों को छोड़ने और मन की सुनने वालों के प्रति फरमाया:सिवाए उनके जो तौबा करले और ईमान लेआएं,जो इस बात का प्रमाण है कि नमाज़ छोड़ने और मन की बात मानने की स्थिति में वह मोमिन नहीं थे
· अल्लाह का कथन है:
{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لاَ تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَلاَ أَوْلاَدُكُمْ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُون}
अर्थात:हे ईमान वालोतुम्हें अचेत न करें तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतान अल्लाह के स्मरण से और जो ऐसा केरेंगे वही क्षति ग्रस्त हैं
इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु इस आयत की व्याख्या में लिखते हैं:तर्क यह है कि इस आयत में पूर्णतया हानि का आदेश उस व्यक्ति पर लगाया जो अपने धन एवं संतान में व्यस्त होने के कारण नमाज़ से लापरवा हो गया और पूर्णतया हानि केवल काफिरों के लिये होता है,और यदि मुसलमान को अपने पाप एवं नाफरमानी के कारण हानि हो जाए तो उसे आखिरत में लाभ मिल जाएगा
· अल्लाह तआ़ला ने सूरह अलतौबा में मुशरिकों के विषय में फरमाया: {فَإِن تَابُواْ وَأَقَامُواْ الصَّلاَةَ وَآتَوُاْ الزَّكَاةَ فَإِخْوَانُكُمْ فِي الدِّينِ}
अर्थात:तो यदि वह शिर्क सेतौबा कर लें और नमाज़ की स्थापना करें,और ज़कात दें तो तुम्हारे धर्म-बंधु हैं
इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु फरमाते हैं:मोमिनों का भाईचारा केवल नमाज़ को पढ़ने के आधार पर है,जब वह नमाज़ न पढ़ेंगे तो वह मोमिनों के भीई न होंगे,क्योंकि वह मोमिन नहीं,क्योंकि अल्लाह का आदेश है إنما المؤمنون إخوة समस्त मोमिन आपस में भीई हैं
नमाज़ छोड़ने वाले के काफिर होने का प्रमाण ह़दीसों में बहुत आई है,जिनमें से कुछ ये हैं:
· बरीदह बनि अलह़सीब रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है,रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:हमारे और उनकाफिरोंके बीच अंतर नमाज़ से है,जिसने इसे छोड़ दिया उसने कुफ्र किया
· जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहु अंहुमा ने फरमाया कि मैं ने रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना:नि:संदेह मनुष्य और शिर्क व कुफ्र के मध्यअंतर मिटाने वाला कार्यनमाज़ का छोड़ना है
· सौबान रज़ीअल्लहु अंहु से वर्णित है कि मैंने रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना:बंदा व ईमान व कुफ्र के बीचफैसला करने वाली चीजनमाज़ है,जिसने नमाज़ छोड़ दिया उसने शिर्क किया
· जहां तक सह़ाबा के फत्वों की बात है तो जुमहूरअधिकांशसह़ाबा नमाज़ छोड़ने वाले को काफिर मानते हैं,बल्कि कई विद्वानों ने नमाज़ छोड़ने वाले के काफिर होने पर सहा़बा की आम सहमती बतलाई है जैसा कि आरहा है,उदाहरण स्वरूप उ़मर पुत्र खत्ताब रज़ीअल्लाहु अंहु ने मौत के रोग में फरमाया:नमाज़ छोड़ने वाले का इस्लाम में कोई भाग नहीं है
· शोरैक ने अ़ब्दुल मलिक बिन ओ़मैर से और उन्होंने अबूल मलीह़ से वर्णित किया है,वह फरमाते हैं:मैंने उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहु को फरमाते हुए सुना:नमाज़ छोड़ने वाले का कोई इस्लाम नहीं,शोरैक से पूछा गया:क्या मिंबर पर उन्होंने ऐसा कहाउन्होंने कहा:जी हां
· अ़ली बिन अबी त़ालिब रज़ीअल्लाहु अंहु से बेनमाज़ी महिला के विषय में पूछा गया तो उन्होंने फरमाया:जो व्यक्ति नमाज़ न पढ़े वह काफिर है
· आपने और फरमाया:जिस व्यक्त्िा ने जानबूझ कर एक समय की नमाज़ छोड़ दी,वह अल्लाह से बरीमुक्तहै और अल्लाह उससे मुक्त है
· जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहु अंहुमा से पूछा गया:क्या आपसह़ाबाअपने बीच पाप करने को कुफ्र मानते हैंतो उन्होंने कहा:नहीं,बंदा और कुफ्र के बीच दूरी खत्म करने वाली चीज नमाज़ का छोड़ना है
· आपसे अधिक पूछा गया:रसूलूल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के युग में आपसह़ाबाके नजदीक कौनसा अ़मल कुफ्र और ईमान के बीच अंतर करता थातो आपने फरमाया:नमाज़
· इब्ने मस्उ़ूद रज़ीअल्लाहु अंहु नमाज़ के विषय में फरमाते हैं:हमारी राय है कि नमाज़ न छोड़ी जाए क्योंकि नमाज़ छोड़ना कुफ्र है
· आपने अधिक फरमाया:जो व्यक्ति नमाज़ नहीं पढ़ता उसका दीन से कोई संबंध नहीं
· अबू दरदा रज़ीअल्लाहु अंहु फरमाते हैं:जो व्यक्ति नमाज़ नहीं पढ़ता उसके अंदर ईमान नहीं और जिसका वुज़ू न हो उसकी नमाज़ नहीं
· अ़ब्दुल्लाह बिन शक़ीक़ जो कि महान ताबई़ हैं,वह फरमाते हैं:मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सह़ाबा किसी भी अ़मल के छोड़ने को कुफ्र नहीं मानते थे सिवाए नमाज़ के
· जहां तक नमाज़ छोड़ने वाले के काफिर होने के विषय में ताबई़न के फत्वों की बात है तो ईमाम लालकाई रहि़महुल्लाहु ने "شرح أصول اعتقاد أھل السنۃ والجماعۃ" में लिखा है:
ह़सन से वर्णित है कि:मुझे पहुंचा है कि रसूलुल्लह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सह़ाबा कहा करते थे:बंदा और शिर्क के बीच ऐसा अंतर जिसके कारण बंदा काफिर होजाता है,यह है कि बिना किसी वैध बहाने के नमाज़ छोड़दे
ताबई़न में ऐसी राय रखने वाले:मोजाहिद,सई़द बिन जोबैर,जाबिर बिन ज़ैद,अ़म्र बिन दीनार,इब्राहीम बिन नख्ई़ और अलक़ासिम बिन मुख़ीरा हैं
जबकि फोक़ीहों में से:मालिक,औज़ाई़,शाफई़,शोरैक बिन अ़ब्दुल्लाह नखई़,अह़मद,इस्ह़ाक़,अबूसौर और अबू ओ़बैद अलक़ासिम बिन सलाम भी इसी के पक्ष में हैं
· इस्ह़ाक़ बिन राहवैह का कथन है:रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से सिद्ध है कि नमाज़ छोड़ने वाला काफिर है,यही राय आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के युग से लेकर आज तक के विद्वानों की भी है कि जो व्यक्ति जानबूझ कर बिना किसी वैध बहाने के नमाज़ छोड़ता है यहां तक कि उसका समय निकल जाता है,तो वह काफिर है
· सई़द बिन जोबैर फरमाते हैं:जिसने जानबूझ कर नमाज़ छोड़ा उसने कुफ्र किया
· अय्यूब अलसख्तयानी ने फरमाया:नमाज़ को छोड़ना कुफ्र है,इसमें कोई मतभेद नहीं
· अ़ब्दुल्लाह बिन मोबारक फरमाते हैं:जिसने जानबूझ कर बिना किसी वैध बहाने के नमाज़ को विलंब किया यहां तक कि उसका समय निकल गया तो उसने कुफ्र किया
· ह़ाफिज़ अ़ब्दुल अ़ज़ीम मुनज़री ने फरमाया:सह़ाबा के एक समूह और उनके पश्चात के एक समूह भी इस पक्ष में हैं कि जो व्यक्ति जानबूझ कर नमाज़ छोड़दे यहां तक कि उसका पूरा समय निकल जाए तो वह काफिर है,उनमें उ़मर बिन खत्ताब,अ़ब्दुल्लाह बिन मस्उ़ूद,अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास,मोआ़ज़ बिन जबल,जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह और अबू दरदा रज़ीअल्लाहु अंहुम उल्लेखनीय हैंसह़ाबा के अतिरिक्त अह़मद बिन ह़ंबल,इस्ह़ाक़ बिन राहवैह,अ़ब्दुल्लाह बिन मोबारक,नखई़,ह़कम बिन ओ़तैबा,अय्यूब अलसख्तियानी,अबूदाउूद अल्तयालसी,अबूबकर बिन अबी शैबा और ज़ोहैर बिन ह़र्ब आदि रहि़महुमुल्लाहु भी इसके पक्ष में हैं
· इब्ने ह़ज़म रहि़महुल्लाहु फरमाते हैं:उ़मर,मोआ़ज़,अ़ब्दुर रह़मान बिन औ़फ और अबूहोरैरह आदि रज़ीअल्लाह़ अंहुम से वर्णित है कि जो व्यक्ति जानबूझ कर कोई फर्ज़ नमाज़ छोड़दे यहां तक कि उसका समय निकल जाए तो वह काफिर और मुर्तदधर्म त्यागी है
· मोह़म्मद बिन नसर मरवज़ी[88] फरमाते हैं:यह जमहूरबहुसंख्यक विद्वानों अहले ह़दीस का कथन है
· इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु फरमाते हैं:जो व्यक्त्िा अल्लाह के आदेश को मानता है तो वह नमाज़ छोड़ने पर क्यों जिद करता है,जबकि उसे ज्ञान है कि अल्लाह तआ़ला ने नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया है और यह बात स्वभाविक रूप से एवं आदतन असंभव है कि एव व्यक्त्िा दिन और रात की पाँच नमाज़ों को इलाही फर्ज़ भी मानता हो और फिर उन्हें छोड़ भी दे और फिर उसे छोड़े हुए नमाज़ की यातना का भी पूरा पूरा ज्ञान हो और फिर वह नमाज़ को छोड़दे,यह बहुत ही कठिन है,जो व्यक्ति नमाज़ को फर्ज़ जानाता है वह इसे कभी भी छोड़ नहीं सकता,क्योंकि ईमान मनुष्य को नमाज़ स्थापित करने का आदेश देता है और यदि उसका हृदय नमाज़ पर प्रोत्साहित नहीं करता तो वह बिल्कुल ईमान से वंचित है
· मुसलमानों के इमाम पर अनिवार्य है कि नमाज़ छोड़ने से तौबा कराए,यदि वह तौबा करले तो छोड़दे,अन्यथा उसके कुर्फ का पक्ष मानने वालों के अनुसार उसे मुर्तदधर्म त्यागीहोने के कारण उसकी हत्या करदी जाए,अथवा उसके फिस्क़दुराचार एवं अनैतिकताका पक्ष मानने वालों के अनुसार उसे तण्ड के रूप में उसकी हत्या करा दी जाए,क्योंकि अबूबकर रज़ीअल्लाहु अंहु ने ज़कात न देने वालों से युद्ध किया,जो लोग उसकी अनिवार्यता के इंकार कर रहे थे उनसे भी और जो उसकी अनिवार्यता को मानने के बावजूद अदा करने से इंकार कर रहे थे,उनसे भी,नमाज़ छोड़ने वाले की हत्या का कथन शाफेई़ और विद्वानों के एक समूह का है
अध्याय नमाज़ छोड़ने वाले पर लागू होने वाले दीनी एवं दुनयावी आदेशों की व्यख्या
· नमाज़ छोड़ने वाले के काफिर होने के कारण यह लागू होता है कि जो व्यक्ति नमाज़ छोड़ता हो वह किसी नमाज़ी मुसलमान महिला से विवाह न रचाए,यदि विवाह कर लिया हो तो उसके साथ वैवाहिक जीवन बसर करना उसके लिये मान्य नहीं, उससे संभोग करना उसके लिये अवैध है,क्योंकि वह महिला मुसलमान है और पुरूष काफिर है,अल्लाह का कथन है:
{ فَإِنْ عَلِمْتُمُوهُنَّ مُؤْمِنَاتٍ فَلاَ تَرْجِعُوهُنَّ إِلَى الْكُفَّارِ لاَ هُنَّ حِلٌّ لَّهُمْ وَلاَ هُمْ يَحِلُّونَ لَهُنَّ }
अर्थात:यदि तुम्हें यह ज्ञान हो जाये कि वह ईमान वालियॅा हैं तो उन्हें वापिस न करो काफिरों की ओर न वे औरतें हलालवैधहैं उन के लिये और न वे काफिर हलालवैधहैं उन औरतों के लिये
· इसी प्रकार यदि पुरूष नमाज़ पढ़ता हो और पत्नी नमाज़ न पढ़ती हो तो उसके लिये वैध नहीं कि उससे विवाह रचाए और न ही उसके साथ वैवाहिक जीवन बिताए,क्योंकि मुसलमान के लिये यह वैध नहीं कि किसी मुसलमान अथवा किताबी महिलायहूदी व ईसाईके अतिरिक्त किसी और से विवाह रचाए,किंतु धर्म त्यागी महिला से विवाह करना उसके लिये मान्य नहीं, واللہ المستعان
· नमाज़ छोड़ने वाले कि लिये वैध नहीं कि मक्का के ह़ुदूदे ह़रमनिश्चित पवित्र स्थानमें प्रवेश करे,जैसा कि अल्लाह का वर्णन है:
{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَلاَ يَقْرَبُواْ الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَـذَا}
अर्थात:हे ईमान वालोमुशरिकमिश्रणवादीमलीन है,अत: इस वर्ष के पश्चात वह सम्मानित मस्जिदकॉबाके समीप भी न आयें
· नमाज़ छोड़ने वाले का यदि निधन होजाए तो न उसको स्नान कराया जाए,न उसे कफन पहनाया जाए और न मुसलमानों के कबरिस्तान में उसे दफन किया जाए और न उसके लिये क्षमा की दुआ़ की जाए,क्योंकि स्नान देना,कफन पहनाना और मुसलमानों के कबरिस्तान में दफन करना ऐसे आदेश हैं जो मुसलमानों के साथ खास हैं,अत: जिस व्यक्ति का कोई नजदीकी संबंधि एवं परिजन हो जिसके बार में वह जानता हो कि वह नमाज़ नहीं पढ़ता तो उसके लिये यह मान्य नहीं कि दोखे में डाल कर लोगों को उसकी जनाज़े की नमाज़ पढ़ने पर मजबूर करदे,अल्लाह का कथन है:
{وَلاَ تُصَلِّ عَلَى أَحَدٍ مِّنْهُم مَّاتَ أَبَدًا وَلاَ تَقُمْ عَلَىَ قَبْرِهِ إِنَّهُمْ كَفَرُواْ بِاللّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُواْ وَهُمْ فَاسِقُون}
अर्थात:हे नबीआप उन में से कोई मर जाये तो उस के नमाज़ कभी न पढ़ें,और न उस की समाधिकब्रपर खड़े हों,क्योंकि उन्हों ने अल्लाह और उस के रसूल के साथ कुफ्र किया है,और अवज्ञाकारी रहते हुए मरे हैं
· नमाज़ छोड़ने वाले के साथ जो अह़काम विशेष हैं उनमें से यह भी है कि उसका ज़बह़ किया हुआ मवेशी[91] ह़राम है,क्योंकि ज़बह़ करने की शर्तों में से यह भी है कि ज़बह़ करने वाला मुसलमान अथवा किताबीयहूदी व ईसाईहो,किंतु धर्म त्यागी और मजूसी आदि का ज़बह़ किया हुआ जानवर ह़लाल नहीं है
· नमाज़ छोड़ने वाला अपने परिजनों का वारिस नहीं हो सकता,क्योंकि नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ह़दीस है:मुसलमान,काफिर का वारिस नहीं हो सकता और न काफिर,मुसलमान का
· रही बात नमाज़ छोड़ने वाले की आखिरत के जीवन की तो यह ज्ञात है कि काफिर की मौत जब कुर्फ की स्थिति में हो तो वह हमेशा नरक में रहेगा,जैसा कि अल्लाह ने फरमाया:
{إِنَّ اللَّهَ لَعَنَ الْكَافِرِينَ وَأَعَدَّ لَهُمْ سَعِيرًا* خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا لاَّ يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلاَ نَصِيرًا}
अर्थात:अल्लाह ने धिक्कार दिया है काफिरों को और तय्यार कर रखी है उन के लिये दहकती अगिनवे सदावासी होंगे उसमें,नहीं पाएंगे कोई रक्षक और न कोई सहायक
लाभ:नमाज़ आँख की ठंडक उस समय बनती है जब उस में छ विशेषताएं इकट्ठा हों
इब्नुल क़य्यिम रहि़महुल्लाहु ने उल्लेख किया है कि वह नमाज़ जिससे आँख को ठंडक और हृदय को शांति मिलती है,उसका अर्थ ऐसी नमाज़ है जिसमें छ विशेषताएं इकट्ठा हों:
प्रथम विशेषता:निष्ठा,इसका अर्थ यह है कि नमाज़ के लिये प्रोत्साहित करने वाली चीज यह हो कि बंदा के अंदर अल्लाह के चाह,उसका प्रेम,उसको प्रसन्न रकने की चाहत,उसकी निकटता व प्रेम की तलब और उसके आदेशों का पालन पाया जाए,वह इस प्रकार से कि नमाज़ के लिये प्रोत्साहित करने में किसी प्रकार का कोई दुनयावी उद्देश्य कदापि शामिल न हो,बल्कि उसका उद्देश्य केवल र्स्वोत्तम ईश्वर की प्रसन्नता की प्राप्ति,उसके प्रेम,उसकी यातना का भय और उसके क्षमा एवं पुण्य की आशा हो
द्वितीय विशेषता:सत्यता एवं सद्भावना,इसका अर्थ यह है कि अपने हृदय को पूर्णता से अल्लाह के लिये खाली करदे,पूरी शक्त्िा अल्लाह की ओर ध्यान लगाने में झोंकदे,नमाज़ में हृदय एवं बुद्धि को उपस्थित रखे,आंतरिक एवं बाह्य प्रत्येक प्रकार से उत्तम एवं पूर्ण रूप से नमाज़ पढ़े,क्योंकि नमाज़ के कुछ भाग आंतरिक एवं कुछ बाह्य हैं,अत: देखाई देने वाले आ़माल व गतिविधियां और सुने जाने वाले वचन आदि इसके आंतरिक भाग हैं,जबकि विनम्रता एवं विनयशीलता,बुद्धि तत्परता,अल्लाह की ओर हृदय को लगाए रखना और पूरे मन के साथ अल्लाह की ओर ध्यान लगाना,इस प्रकार कि उसका हृदय किसी और ओर न जाए,यह नमाज़ की आत्मा के समान है,और गतिविधियां उसके शरीर के समान हैं,यदि नमाज़ आत्मा से खाली होगई तो उस शरीर के जैसे होजएगी जिस में आत्मा न हो
क्या बंदा को शर्म नहीं आती कि इस प्रकार की आत्मा मुक्त नमाज़ के साथ अपने मालिक का सामना करे
यही कारण है कि ऐसी नमाज़ को पुराने कपड़े के जैसे लपेट कर उस नमाज़ी के चेहरे पे मार दिया जाएगा,और वह नमाज़ कहेगी:अल्लाह तुझे नाश करे जिस प्रकार तूने मुझे नष्ट कर दिया
वह नमाज़ जिसका आंतरिक एवं बाह्य उत्तम हो वह शिखर की ओर चढ़ती है और उसमें सूर्य के जैसे प्रकाश होता है,यहां तक कि वह अल्लाह के समक्ष होती है तो अल्लाह उससे प्रसन्न होता और उसे स्वीकार करता है,वह नमाज़ कहती है:अल्लाह तेरी रक्षा करे जिस प्रकार तूने मेरी रक्षा की
तृतीय विशेषता:आज्ञापालन एवं अनुगमन,इसका मतलब यह है कि नमाज़ी पूरा प्रयास करे कि अपनी नमाज़ नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुगमन में पढ़े,जैसे आप नमाज़ पढ़ते थे,उसी प्रकार पढ़े,लोगों ने नमाज़ में अपनी ओर से जो कमी बढ़ोतरी कर रखी है और जिन कार्यों एवं गतिविधियों का वृद्धि कर रखा है जो कि न नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से सिद्ध हैं और न किसी सह़ाबी से,उनसे बचता रहे,उन छूट चाहने वाले लोगों के कथनों पर अंमल न करे जो वोजूबअनिवार्यताके निम्नतम चरण पर बस करते हैं जबकि अन्य लोग उनका विरोध करते हैं और उनके निरस्त अह़काम को वाजिबअनिवार्यमानते हैं और नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की सह़ी ह़दीसें भी उनको बल पहुंचाती हैं,फिर भी छूट चाहने वाले लोग उन सुन्नतों की परवाह नहीं करते और यह कहते हैं कि:हम अमुक मज़हब के मोक़ल्लिदअनुयायीहैंइससे वह अल्लाह के समक्ष मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते और न सुन्नत को जानने के बाद उससे मुंह मोड़ने का कोई अनुचित बहाना है,क्योंकि अल्लाह तआ़ला ने केवल रसूल के अनुगमन और आज्ञापलन का आदेश दिया है,उनके अतिरिक्त किसी और के अनुपालन का आदेश नहीं दिया,बल्कि दूसरे का अनुपालन उसी समय किया जाए जब उसका आदेश रसूल के आदेश के अनुसार हो,रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के अतिरिक्त हर किसी का कथन स्वीकार भी किया जा सकता है और छोड़ा भी जा सकता है
अल्लाह तआ़ला ने अपनी हस्ती की शपथ खाकर फरमाया है कि हम उस समय तक मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि समस्त आपस के विवादों में आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को न्यायाधीश ने मान लें,आप के निर्णय को मानें और उसको स्वीकार करें,आपके अतिरिक्त किसी और का निर्णय और अनुगमन हमें लाभ नहीं दे सकता और न हमें अल्लाह की यातना से बचा सकता है,और हमारा यह उत्तर[93]उस समय कोई काम नहीं आएगा जब हम क़्यामत के दिन अल्लाह तआ़ला की यह पूकार सुनेंगे: { مَاذَا أَجَبْتُمُ الْمُرْسَلِين} तुमने पैगंबरों को क्या उत्तर दिया,अल्लाह तआ़ला हम से इस विषय में अवश्य प्रश्न करेगा और हम से उत्तर मांगेगा,अल्लाह का फरमान है:
{فَلَنَسْأَلَنَّ الَّذِينَ أُرْسِلَ إِلَيْهِمْ وَلَنَسْأَلَنَّ الْمُرْسَلِين}
अर्थात:तो हम उन से अवश्य प्रश्न करेंगे जिन के पास रसूलों को भेजा गया तथा रसूलों से भी अवश्य प्रश्न करेंगे
नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:मुझे वह़्य की गई है कि तुम्हें मेरे माध्यम से आजमाया जाएगा और मेरे बारे में प्रश्न किया जाएगाअर्थात क़ब्र में प्रश्न किया जाएगा
अत: जिस व्यक्ति को रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत का ज्ञान हो और किसी मनुष्य के वर्णन के कारण उसे छोड़दे तोउसे याद रखना चाहिये किक़्यामत के दिन वह हिसाब की परिस्थिति से गुजरेगा और अपनी गलती से अवगत होजाएगा
चौथी विशेषता:इह़सार की विशेषता,अर्थात अवलोकन की विशेषता,जिसका मतलब यह है कि वह इस प्रकार अल्लाह की पूजा करे मानो वह अल्लाह को देख रहा हो,यह विशेषता उस समय उतपन्न होती है जब अल्लाह पर और उसके अस्मा व सिफातनामों एवं गुणोंपर इस प्रकार पूर्ण ईमान हो कि वह मानो अल्लाह को आकाशों के उूपर,फर्श पर मुस्तवीस्थिर देख रहा हो,जो अपने आदेशों के माध्यम से वार्ता करता है,मखलूक के समस्त मामलों की रणनीति करता है,आदेश उसी के पास से उतरता है और उसी तक पहुंचता है,बंदों के आ़माल और उनके निधन के समय उनकी आत्माएं अल्लाह के पास प्रस्तुत की जाती हैं,वह इन समस्त दृश्यों को अपने हृदय से देख,अल्लाह के अस्मा व सिफात को देखे,जीवित और सबको थामने वालेपरवरदिगार,सुनने और देखने वालेरब,प्रभुत्व व नीति वालेपालनहारको देखे,जो प्रेम भी करता और नफरत भी करता है,राजी भी होता और गोस्सा भी होता है,जो चाहे करता है और जो चाहे आदेश देता है, वह अपने अ़र्श पर मुस्तवी है,बंदों का न कोई अ़मल उससे छुपा हुआ है,न कोई बात और न उनके आंतरिक स्थिति उससे छुपा है,बल्कि वह आँखों की खियानत को और सीनों की छुपी बातों को भी खूब जानता है
इह़सान एक ऐसी विशेषता है जिस पर समस्त हृदयी आ़माल निर्धारित है,इससे ह़या,मान-सम्मान,भय व प्रेम,तौबा व निकटता,तवक्कुल और अल्लाह तआ़ला के समक्ष विनम्रता अपनाने का भाव उतपन्न होता है,वसवसों और ख्यालों समाप्त होते हैं,और हृदय व बुद्धि और सोच विचार अल्लाह से जुड़ते हैं
बंदा को अल्लाह की निकटता उतना ही प्राप्त होता है जितना वह इह़सान को अपनाता है,उसे के अनुसार नमाज़ के श्रेणी निश्चिय होते हैं,यहां तक कि दो लोगों की नमाज़ के बीच आकाश व पृथ्वी का अंतर होता है,जबकि दोनों के क़्याम व रुकू व सुजूद एक जैसे होते हैं
पांचवी विशेषता:आभारी होने की विशेषता,अर्थात वह गवाही दे कि समस्त कृपा एवं उपकार अल्लाह तआ़ला की ओर से हैं,अल्लाह ने ही उसे इस स्थान पर लाखड़ा किया है,उसे इस योग्य बनाया,उसे यह तौफीक़ दी कि उसका हृदय और उसका शरीर अल्लाह की पूजा में लग सके,यदि अल्लाह तआ़ला न होता तो यह सब संभव न था,जैसा कि सह़ाबा नबी
सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने प्रशंसा करते हुए फरमाया करते थे:
والله لو لا الله ما اهتدينا | ولا تصدقنا ولا صلينا |
अर्थात:अल्लाह की क़समᣋ यदि अल्लाह न होता तो हमें हिदायत न मिलती और न हम दान करपाते और न नमाज़ पढ़ सकते
अल्लाह का कथन है:
{يَمُنُّونَ عَلَيْكَ أَنْ أَسْلَمُوا قُل لاَّ تَمُنُّوا عَلَيَّ إِسْلاَمَكُم بَلِ اللَّهُ يَمُنُّ عَلَيْكُمْ أَنْ هَدَاكُمْ لِلإِيمَانِ إِن كُنتُمْ صَادِقِين}
अर्थात:वे उपकार जता रहे हैं आप के उूपर कि वह इस्लाम लाये हैंआप कह दें कि उपकार न जाताओ मुझ पर अपने इस्लाम काबल्कि अल्लाह का उपकार है तुम पर कि उस ने राह दिखायी है तुम्हें ईमान की,यदि तुम सच्चे हो
अल्लाह पाक ने ही मुसलमान को मुसलमान और नमाज़ी को नमाज़ी बनाया,जैसा कि ख़लील अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
{رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ }
अर्थात:हे हमारे पालनहारहम दोनों को अपना आज्ञाकारी बनातथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बनादे जो तेरा आज्ञाकारी हो
अधिक फरमाया: {رَبِّ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّلاَةِ وَمِن ذُرِّيَّتِي }
अर्थात:हमारे पालनहारमुझे नमाज़ की स्थापना करने वाला बना दे,तथा मरी संतान को
इह़सानकृपाकेवल और केवल अल्लाह का है कि उसने अपने बंदह को प्रार्थना की तौफीक़ प्रदान की,बल्कि यह उसके महानतम उपकारों में से है,अल्लाह तआ़ला का फरमान है: {وَمَا بِكُم مِّن نِّعْمَةٍ فَمِنَ اللّهِ }
अर्थात:तुम्हें जो भी सुख-सुविध प्राप्त है वह अल्लाह ही की ओर से है
अल्लाह ने और फरमाया: {وَلَكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ الإِيمَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوقَ وَالْعِصْيَانَ أُوْلَئِكَ هُمُ الرَّاشِدُون}
अर्थात:परन्तु अल्लाह ने प्रिय बना दिया है तुम्हारे लिये ईमान को तथा सुशोभित कर दिया है उसे तुम्हारे दिलों में और अप्रिय बना दिया है तुम्हारे लिये कुफ्र तथा उल्लंघन और अवैज्ञ को,और यही लोग संमार्ग पर हैं
यह एक महानतम गुण है जो कि बंदा के लिये अति लाभदायक है,बंदा जितना तौह़ीदएकेश्वरवादपर स्थिर रहता है उतना ही उसके अंदर यह गुण भी उतपन्न होता है
इस गुण एवं विशेषता का लाभ यह है कि वह हृदय के बीच और अपने अ़मल पर स्वयं प्रशंसा का शिकार होने के बीच रोकावट होती है,क्योंकि बंदा जब गवाही देता है कि अल्लाह तआ़ला ही उसका परोपकारक है,उसी ने उसे तौफीक़ और निर्देश दिया है,यह गवाही उसे इस बात से उदासीन करदेगी कि वह अ़मल को देख कर स्वयं प्रशंसा का शिकार हो अथवा उसके माध्यम से लोगों पर प्रभुत्व जताए,अत: यह गुण उसके हृदय में उत्थान उतपन्न करती है,अत: वह स्वयं प्रशंसा का शिकार नहीं होता,उसकी जबान को सही मार्ग दिखाती है,अत:वह न उपकार जताता और न उस पर गर्व करता है,स्वीकृत एवं उच्च अ़मल का यही चिन्ह है
इसका लाभ यह भी है कि वह प्रशंसा को उसके पात्रपालनहारकी ओर संबंधित करता है,अत: स्वयं की प्रशंसा में लगा नहीं रहता,बल्कि अल्लाह की प्रशंसा करता है,इसी प्रकार समस्त उपकारों एवं आशीर्वादों को अल्लाह का कृपा मानता है,समस्त उपकार एवं दया को अल्लाह की ओर संबंधित करता है और यह स्वीकार करता है कि समस्त अच्छाई व भलाई अल्लाह ही के हाथ में है,यह तौह़ीदएकेश्वरवादकी पूर्णता का प्रमाण है,तौह़ीद के स्थान पे वह उसी समय स्थिर रह सकता है जब उसे असका ज्ञान होता और वह उसकी गवाही देता है,जब वह इस से अवगत होता है और इस स्थान पर जम जाता है तो यह उसकी विशेषता बन जाती है,और जब यह उसके हृदय की विशेषता बन जाती है तो उसके अंदर अल्लाह का प्रेम व स्नेह,उससे मिलने का आकांक्षा,उसके जि़क्र और उसकी आज्ञा का ऐसा भाव उतपन्न होता है कि उसका तुलना दुनया के किसी भी महानतम उपकार से नहीं किया जा सकता
मनुषय का हृदय यदि उससे वंचित हो और उसके लिये वहां तक पहुंचने का मार्ग बंद हो तो उसके जीवन में कोई भलाई नहीं है,बल्कि उसकी स्थिति ऐसी है जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने फरमाया:
{ذَرْهُمْ يَأْكُلُواْ وَيَتَمَتَّعُواْ وَيُلْهِهِمُ الأَمَلُ فَسَوْفَ يَعْلَمُون}
अर्थात:हे नबीआप उन्हें छोड़ दें,वह खाते,तथा आनन्द लेते रहें,और उन्हें आशा निश्चेत किये रहे,फिर शीघ्र ही वह जान लेंगे
छठी विशेषता:स्वयं को काहिल स्वीकारने की विशेषता,बंदा अल्लाह के आदेश को पूरा करने के लिये चाहे कठोर परिश्रम क्यों न करले और अपनी पूरी शक्ति क्यों न झोंकदे,वह स्वेद काहिल ही रहेगा,अल्लाह तआ़ला का अधिकार उससे अधिक महान है,जिसका तकाजा है कि उसकी आज्ञाकारी और बंदगी और सेवा उससे कहीं बढ़ कर किया जाए,अल्लाह तआ़ला की महानता व महिमा का तकाजा है कि उपयुक्त एवं शोभनीय रूप में उसकी प्रार्थना की जाए
यदि राजाओं के सेवक एवं नौकर उनकी सेवा करते हुए आदर व सम्मान,श्रद्धा व प्रतिष्ठा,लज्जा,भय और सद्भावना व विनयशीलता का पालन करते हैं,वह इस प्रकार से कि अपने हृदय और शारीरिक अंगों समेत उनकी ओर ध्यान लगाए रखते हैं,तो राजाओं का राजा और आकाश व धरती का मालिक इस बात का अधिक पात्र है कि उसके साथ इस प्रकार से बल्कि इससे कहीं बढ़ कर आदर व सम्मान किया जाए
बंदा जब अपने अंदर यह देखता है कि उसने पूरी तरह अपने परवरदिगार की बंदगी का हक बल्कि उसके हक का थोड़ा सा भी अदा नहीं किया,तो उसे अपनी काहिली का ज्ञात होजाता है,फिर उसके पास इसके अतिरिक्त कोई और उपाय नहीं रहता कि वह इस्तिग़फार करे,अपनी काहिली और कमी पर और इस बात पर क्षमा मांगे कि उसने अल्लाह का हक उस प्रकार से पूरा नहीं किया जिस प्रकार से करना चाहिये था,वह बंदा भक्ति का हक पूरा न करने पर क्षमा का जितना दरिद्र होता है,वह आवश्यक्ता इससे कहीं बढ़ कर होती है कि वह इस पर पूण्य की मांग करे,यदि वह उसका पूरा हक अदा कर भी दे तो भक्ति के रूप में उसपर यह अनिवार्य भी था,क्योंकि दास का अ़मल और अपने स्वामी का सेवा उसके दास और सेवक होने के कारण उस पर अनिवार्य है,यदि वह अपने स्वामी से अपने अ़मल और सेवा के बदले वेतन मांगे तो लोग उसे मूर्ख और बेवकूफ कहेंगे,जबकि वह उसका वास्तविक दास है भी नहीं,बल्कि वह सास्तव में प्रत्येक रूप से अल्लाह का दास है,अत: उसका अ़मल और सेवा करना उसके दास होने के कारण उसपर अनिवार्य है,यदि अल्लाह तआ़ला उसे उस पर पूण्य देता है तो यह केवल उसकी कृपा है,न कि बंदे का अधिकार,इसको सामने रखें तो हमारे लिये नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस ह़दीस को समझना आसान हो जाता है:तुम में से किसी व्यक्ति को उसका अ़मल मुक्ति नहीं दिला सकेगासह़ाबा ने पूछा:अल्लाह के रसूलआपको भी नहींआपने फरमाया:मुझे भी नहीं मगर यह कि मुझे अल्लाह तआ़ला अपने कृपा के साये में लेले
इस विशेषता के चार सिद्धांत हैं:सही नीयत,उच्च साहस,साथ ही इच्छा एवं आकांक्षा और डर व भय
ये चार चीजें इस विशेषता के सिद्धांत हैं,बंदा के ईमान व परिस्थितियां और आंतरिक एवं बाह्य कमी है,उसका कारण इन चार सिद्धांतों की कमी अथवा इनमेंसे कुछ की कमी होती है
बुद्धिमान व्यक्त्िा को इन चारों चीजों पर विचार करना चाहिए,उन्हें अपना जीवन शैली में परिवर्तण लाना चाहिए,उनपर ही अपने ज्ञान,आ़माल एवं कथनों और परिस्थितियों को आधारित करना चाहिए,जो लोग भी सालेहिय्यतधार्मिकताके उच्च स्थान पर पहुंचे,वह इनके आधार पर ही पहुंचे,और जो इससे पीछे रह गए वह इन चीजों के लुप्त होने के कारण पीछे रह गए
والله أعلم، والله المستعان وعليه التكلان، وإليه الرغبة، وهوالمسئول بأن يوفقنا وسائر إخواننا من أهل السنة لتحقيقها علما وعملا، إنه ولي ذلك والمان به، وهو حسبنا ونعم الوكيل[96]
नमाज़ रिज़्क़ लाने वाली,स्वास्थ की रक्षक,कठिनाइयों को दूर करने वाली और हृदय को सशक्त करने वाली है,तथा चेहरे को आलोकित करती और आत्मा को आनंदित करती है,आलस को दूर करके सारे अंगों में हलचल उतपन्न करती है,शक्ति को बढ़ाती है और हृदय को खोलती है,तथा आत्मा के लिए खुराक है,हृदय को आलोकित करती है,आशीर्वादों की रक्षक,यातना को दूर करने वाली,बरकत की प्राप्ति का माध्यम,शैतान से दूर करने वाली और रह़मान से निकट करने वाली है
संक्षेप में यह कि शारीर और हृदय के स्वास्थ और दोनों की शक्ति की रक्षा में और उनसे बुरा तत्व को दूर करने में नमाज़ का बड़ा प्रभाव है,दो व्यक्ति जब किसी संकट व आपदा,अथवा आजमाइश का शिकार होते हैं,तो उनमें से जो नमाज़ी होता है उसका संकट व आपदा दूसरे की तुलना में कम और उसका परिणाम अधिक सुरक्षित होता है
दुनियावी कठिनाइयों को दूर करने में नमाज़ का एक अद्भुत प्रभाव हे,विशेष रूप से उस समय जब कि उसके समस्त आंतरिक एवं बाह्य हकों को पूरा किया जाए,दुनिया व आखिरत की कठिनाइयों को दूर करने और दोनों संसार की अच्छाई व भलाई प्राप्त करने का कोई विधि नमाज़ के जैसा कारगर नहीं है
आप रहि़महुल्लाहु अधिक फरमाते हैं:इसका भेद यह है कि नमाज़ अल्लाह तआ़ला के साथ संबंध पैदा करती है और अल्लाह तआ़ला के साथ बंदे का जितना अधिक संबंध होगा उतना ही उसपे भलाई के दरवाजे खुलते जाएंगे और कठिनाई के दरवाजें बंद होते जाएंगे और उसके लिये रब की ओर से तौफीक,शांति और स्वास्थ,धन,सुकून व उपकार व प्रसन्नता के कारण उतपन्न होने लगते हैं और यह सारे उपकार उसके पैर चूमने लगते हैं
[1] इसे बोखारी8और मुस्लिम16ने रिवायत किया है और उपरोक्त शब्द मुस्लिम के हैं
[2] इस ह़दीस को तिरमिज़ी2616 ने वर्णित किया है और कहा है किह ह़दीस ह़सन सह़ी है
[3] इस ह़दीस को इब्ने माजा1625और अह़मद6)ने रिवायत किया है और अल्बानी ने الإرواء"7238सह़ी कहा है
[4] इस ह़दीस को अबू दाउूद864और अह़मद2425ने रिवायत किया है और उपरोक्त शब्द अबूदाउूद के हैं,और अल्बानी रहिमहुल्लाहु और المسند के शोधकर्ताओं ने इसे सह़ी कहा है
[5]इसे अह़मद5251और इब्ने हि़ब्बान6716ने अबू अमाम बाहिली रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णन किया है और المسند के शोधकर्ताओं ने इसकी सनद को जय्यिद कहा है
आपका कथन सबसे पहले टूटने वाला बंधन शासन हैअर्थातसबसे पहले जो बंधन टूटेगा वह यह कि शासन शैली एवं शासकों में बिगाड़ आजाएगी,मेरा कहना हैहमारे युग में हिंसा एवं बिगाड़ स्पष्ट है, अतमुस्लिम देशों में जो शासन प्रणाली प्रचलित है वह मानव निर्मित हैं, बहुत कम ही देश हैं जहाँ इस्लामी शासन प्रणाली लागू है
[6] [النساء:103] , इस आयत में {مَّوْقُوتًا} का मतलब हैजो यहां पर फर्ज़ और अनिवार्य के अर्थ में है,इस से अल्लाह तआ़ला का यह कथन भी है :{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُون} इस आयत की व्याख्या में यह इब्ने अ़ब्बास रज़ीअल्लाहु अंहुमा का कथन है जैसा कि इब्ने जरीर अत्त़बरी ने उनसे वर्णन किया है
[7] इसे बोखारी8और मुस्लिम16ने रिवायत किया है और उपरोक्त शब्द मुस्लिम के हैं, जैसा कि उूपर गुजर चुका है
[8] जि़म्मा का अर्थ रक्षा का वादा है, देखें "المعجم الوسیط"
[9] इसे बोखारी391ने वर्णित किया है
[10] इसे अह़मद5238ने वर्णित किया है और इसके शवाहिद के आधार पर अल्बानी ने इसे "إرواء الغلیل" में इसे सह़ी कहा है
[11] इसे अह़मद2169आदि ने रिवायत किया है और "المسند" के शोधकर्ताओं ने इसकी सनद को ह़सन कहा है
[12] आप का नाम हैः मुहम्मद पुत्र अबू बक्र पुत्र साद अल-ज़रई अल-दिमश्की, आप इब्ने क़ैय्यिम अल-जौज़ीय्या के नाम से प्रसिद्ध हैं, आप आठवीं शताब्दी के उलेमा में से हैं। आप अपने गुरू इब्ने तैमीय्या के सानिध्य में रहे यहाँ तक कि सन 728 हिजरी में उनका देहांत हो गया, आप उनके अति विशिष्ट शिष्य रहे हैं, और उनके देहांत के बाद आपने दावत एवं इल्मी जिहाद का बीड़ा उठाया यहाँ तक कि सन 751 हिजरी में आपकी मृत्यु हो गई, आप प्रकांड विद्वान तथा अकाट्य दलील पेश करने वाले एवं प्रमाणों से सूक्ष्मसेसूक्ष्मतम मसला समझने की क्षमता रखने वाले व्यक्तित्व के धनी एवं बहुतेरे पुस्तकों के लेखक हैं, आपकी पुस्तकों को लोगों ने हाथों हाथ लिया, और आपकी पुस्तकों को ऐसी स्वीकार्यता प्राप्त हुई कि आपके बाद आने वाले लोग मानो आपकी ही पुस्तकों पर आश्रित हैं, उन्होंने इस्लामी अक़ीदा को बड़े ज़ोरदार ढ़ंग से लोगों के समक्ष रखा व उसे फैलाया, और बिदअतियों (नवाचारियों) पर गद्य एवं पद्य दोनों रूप में प्रहार किया, विशेष रूप से दार्शनिकों (फलसफियों), क़ब्र पूजकों, तावील (शरई नुस़ूस़ व श्लोकों की मनमानी व्याख्या) करने वालों एवं सूफ़ियों पर कुठराघात किया, अल्लाह तआला की आप पर असीम कृपा हो, आपने तथा आपके गुरू ने अल्लाह के दीन को पूनर्जीवित करने का कार्य किया, संक्षेप में कहा जाए तो आप इस्लामी समुदाय में एक बड़े बदलाव का घोतक थे। आपकी जीवनी के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखें: इब्न अल-इमाद की “शज़रात अल-ज़हब” तथा इब्ने रजब की “ज़ैल त़बक़ात अल-ह़नाबिलह”, और आप की सबसे व्यापक एवं विस्तृत जीवनी लिखी है शैख़ बक्र बिन अब्दुल्लाह अबू ज़ैद रह़िमहुल्लाह ने एवं उनकी पुस्तक का नाम है “इब्ने क़ैय्यिम अल-जौज़ीय्या ह़यातुहू व आस़ारूहू”।
[13] کتاب الصلاۃ وحکم تارکھا पृष्ठ संख्या70, नमाज़ छोड़ने वाले को काफिर मानने वालों के प्रमाण के संदर्भ में इस कथन का उल्लेख है
[14] अर्थात उन नमाजो़ं में से किसी को पूर्ण रूप से न छोड़े
[15] इस ह़दीस को अबू दाउूद1420और अह़मद5315ने रिवायत किया है और अल्बानी और "المسند" के शोधकर्ताओं ने इसे सह़ी माना है
[16] इस ह़दीस को अबूदाउूद864और अह़मद2425ने वर्णित किया है और उपरोक्त शब्द अबूदाउूद के हैं,और अल्बानी रहि़महुल्लाहु और "المسند" के शोधकर्ताओं ने इसे सह़ी माना है, जैसा कि गुजर चुका है
[17] इस ह़दीस को इब्ने माजा1625और अह़मद 6/290ने वर्णित किया है और अल्बानी ने "الإرواء" 7/238में इसे सह़ी कहा है
[18] इस ह़दीस को इब्ने माजा277और अह़मर5277ने वर्णित किया है और अल्बानी ने "الإرواء" में ह़दीस संख्या412के अंतर्गत सही़ कहा है, इसी प्रकार "المسند" के शोधकर्ताओं ने भी
इसे सह़ी कहा है
[19]इसे बोखारी574और मुस्लिम635ने वर्णित किया है
[20] सह़ी मुस्लिम634
[21] अर्थात ऐसे पाप जिनका संबंध बंदा और उसके रब से है,जैसे शराब पीना अथवा अवैध गाना बजाना आदि, किन्तु वे पाप जिन का संबंध बंदों के अधिकार से है तो उसके क्षमा के लिए यह अनिवार्य है कि उससे क्षमा मांगी जाए,चाहे वह अधिकार धन से संबंधित हो अथवा मान व सम्मान से अथवा रक्त से
[22] इसे बोखारी4687और मुस्लिम2763ने रिवायत किया है और उपरोक्त शब्द बोखारी के हैं
[23] सही़ मुस्लिम233
[24] सह़ी मुस्लिम667
[25] इसे बोखारी4851और मुस्लिम633ने वर्णित किया है और उपरोक्त शब्द बोखारी के हैं
[26] देखें النہایۃ، مادۃ: ضمم
[27] इस कथन को इब्ने ह़जर अत्त़बरी ने उपरोक्त आयत की व्याख्या में वर्णित किया है
[28] इस ह़दीस को बोखारी553ने रिवायत किया है
[29] इस ह़दीस को बोखारी5970और मुस्लिम85ने वर्णित किया है और उपरोक्त शब्द बोखारी के है
[30] देखें تفسیر ابن کثیر، سورۃ الماعون
[31] इस असर को अबू याला704ने वर्णित किया है और इसकी सनद को मुनजि़री ने "الترغیب والترھیب" ، کتاب الصلاۃ، باب الترھیب من ترک الصلاۃ متعمدا में और अल्बानी ने "صحیح الترغیب والترھیب" 576में ह़सन कहा है
[32] देखें "مدارج السالکین" ، منزلۃ الخشوع
[33] इसे बोखारी552और मुस्लिम626ने वर्णित किया है
[34] एक व्यक्ति ने बयान किया कि वह एक बार अ़सर की नमाज़ के समय सो गया, तो सपने में देखा कि वह यात्रा में है और उसके पास एक नई कार है जिस में उसके परिवार भी सवार हैं,अतवह किसी काम से कार से उतरा और उसी समय एक चोर ने वह कार परिवार समेत चोरी करली, उनका कहना हैफिर मेरी आँख खुल गई तो मैं ने उस सपने को इसी ह़दीस से व्याख्या किया
· [35] इस ह़दीस को बोखारी ने वर्णित किया है
लाभ यह ज्ञात है कि पूर्णता से आ़माल को नष्ट करने वाला कार्य केवल कुफ्र अकबरबड़ा कुफ्रहै जो मनुष्य को इस्लाम से बाहर करदेता है, इसी आधार पर विद्वानों के एक समूह ने कहा है किजो व्यक्ति जान बूझ कर नमाज़ को उसके निर्धारित समय से विलंब करे वह कुफ्र का कार्य करता है,अल्लाह का शरण,इनका प्रमाण बुरीदा की उपरोक्त ह़दीस है, तथा यह ह़दीस भी उनका प्रमाण है किहमारे बीच और उनकाफिरोंके बीच जो अनुबंध है, वह नमाज़ है, जिसने इसे छोड़ दिया उसने कुफ्र किया, इस ह़दीस मेंहमारे बीच और उनके बीचका अर्थमुसलमानों और काफिरों के बीच है, र्स्वोत्तम कथन के अनुसार वह काफिर हो या नहीं,यह तो तय है कि उसके आ़माल नष्ट हो जाते हैं,चाहे वह अपने ईमान पर स्थिर ही क्यों न रहे,जो कि मामूली बात नहीं है,इस लिए उन लोगों को अल्लाह से डरना चाहिए जो काम काज में व्यस्त रहते हैं और फजर की नमाज़ के लिए नहीं जगते, अधिकतर लोगों की आदत बन चुकी है कि वह ड्यूटी टाइम के अनुसार अलार्म लगाते हैं,जो कि सामान्य रूप से फजर की नमाज़ और सूर्य उगने के बाद का समय होता है,और जब नीन्द से उठते हैं तो फजर को क़ज़ा करते हैं, जबकि उसकी क़ज़ा सही होगी या नहीं यह विद्वानों के बीच विवाद का विषय है, واللہ المستعان۔
[36] अर्थात वह इसके प्रति लापरवाह था, अतन इसके अह़काम सीखता और न इसके अनुसार अ़मल करता
[37] इस ह़दीस को बोखारी7047ने वर्णित किया है
[38] अर्थात उसके सर के पिछले भाग पर,इसका मलतब यह कि वह इतनी गहरी और लंबी नींद में चला जाता जाता है, मानो उसके सर पे तीन गिरह लगा दी गई हों,देखें النہایۃ
[39] इस ह़दीस को बोखारी1142और मुस्लिम776ने वर्णित किया है
[40] इस ह़दीस को बोखारी3270और मुस्लिम774ने रिवायत किया है
[41] इस कथन को अबू नई़म ने حلیۃ الأولیاء 7351में रिवायत किया है, प्रकाशक دار الکتب العلمیۃ , बैरूत
[42] इस ह़दीस को बोखारी647और मुस्लिम649ने इसका एक टुकड़ा वर्णित किया है
[43] इस ह़दीस को मुस्लिम654ने रिवायत किया है
[44] इस ह़दीस को बैहक़ी ने अपनी पुस्तक 793में अबूहोरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से इन शब्दों में रिवायत किया है:सात लोग ऐसे हैं जिन्हें अल्लाह तआ़ला क़्यामत के दिन अपने अ़र्श के साये के नीचे स्थान प्रदान करेगा,उस दिन उसके साये के अतिरिक्त और कोई साया नहीं होगा... الحدیث, इस रिवायत को पुस्तक के शोधकर्ता अ़ब्दुल्लाह अलह़ाशदी ने सह़ी कहा है
दोनों ह़दीसों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है, क्यों कि उपरोक्त साये को अर्श की ओेर भी मान्य है और अल्लाह की ओर भी मान्य है,स्वामित्व और सम्मान के अर्थ में
[45] इस ह़दीस को मुस्लिम6806और मुस्लिम1031ने रिवायत किया है
[46] इसे बोखारी662और मुस्लिम669ने वर्णित किया है और उपरोक्त शब्द मुस्लिम के हैं
[47] देखें "النہایۃ",इसी प्रकार देखें इब्ने ह़जर की "فتح الباری" में उपरोक्त ह़दीस की व्याख्या
[48] इस ह़दीस को बोखारी7224और मुस्लिम651ने वर्णित किया है
[49] इस ह़दीस को इब्ने माजा793आदि ने रिवायत किया है और अल्बानी ने "الإرواء" 2337में इसे सह़ी कहा है
[50] सही मुस्लिम653
[51] इस विषय पर अधिक ज्ञान के लिये देखें "أھمیۃ الصلاۃ فی ضوء النصوص وسیر الصالحین" लेखकफज़ल इलाही ज़हीर, प्रकाशक مؤسسۃ الجریسی रियाज़
[52] सह़ी मुस्लिम865
[53] सह़ी मुस्लिम440
[54] सहीं मुस्लिम439
[55] सह़ी बोखारी615और सही़ मुस्लिम437
[56] इस ह़दीस को अबूदाउूद 664ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे सही कहा है
[57] इसे निसाई816और इब्ने माजा996ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे सही कहा है
[58] सह़ी मुस्लिम438
[59] इस ह़दीस को अबूदाउूद 679ने रिवायत किया है और अल्बानी रहि़महुल्लाहु ने इसे सह़ी कहा है,चेतावनीह़दीस का अनुपूरक इस प्रकार है:अल्लाह उन्हें नरक में भी पीछे करदेगा,किन्तु शैख अल्बानी ने इस अनुपूरक को ज़ई़फ माना है,इस लिये मैंने इसका उल्लेख नहीं किया,देखें "السلسلۃ الضعیفۃ" 6442
[60]आप इमाम हा़फिज़ और फक़ीहुल इ़राक़ हैं,ह़दीस के वर्णनकर्ताओं में से हैं,आप का निधन सन 96 हिजरी में हुआ,आपकी जीवनी के लिये देखें4)
[61] इस कथन को ह़ाफिज़ अबू नई़म अलअसबहानी ने "حلیۃ الأولیاء" 5489में रिवायत किया है,शोधमुस्त़फा अ़ब्दुलक़ादिर,प्रकाशक دار الکتب العلمیۃबैरूत
[62]सही बोखारी757और सह़ी मुस्लिम397
[63] इस घटना का मोह़म्मद बिन नासिर मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ", अध्याय ذکر إکفار تارک الصلاۃ ,संख्या940में वर्णित किया है
[64] इस ह़दीस को इमाम निसाई1111और इब्ने माजाने वर्णित किया है और अल्बानी रहि़महुल्लाहु ने इसे ह़सन कहा है
दरिंदे के जैसे बांह फेलाने से मना कियाइसका अर्थ है कि सजदा की स्थिति में अपने बांह भूमि पर फैलादे,जबकि सह़ी तरीका यह है कि केवल हथेलियों को फैलाकर रखे और बाहों को भूमि से उठा रक रखे
[65] सही़ मुस्लिम869
[66] "کتاب الصلاۃ وحکم تارکھا" فصل: قول المطولین للصلاۃ पृष्ट संख्या339-340 थोड़े हेरे-फेर के साथ
[67] देखें: شرح النووی لصحیح مسلم، کتاب الإیمان‘ مقدمۃ باب "بیان إطلاق اسم الکفر على من ترک الصلاۃ"
[68] "کتاب الصلاۃ पृष्ठ संख्या 60 नमाज़ छोड़ने वाले को काफिर मानने वालों के प्रमाणों के अध्याय में
[69] उपरोक्त संदर्भ पृष्ट संख्या 59
[70] इस ह़दीस को तिरमिज़ी2621,निसाई462,इब्नेमाजा1079,इब्ने हि़ब्बान1454,अह़मद5346और लालकाई ने "شرح اصول اعتقاد اھل السنۃ" 1520में अध्याय الصلاۃ من الإیمان में रिवायत किया है,अल्बानी ने इब्ने अबी शैबा की पुस्तक "الإیمان" 46टिप्पणी में लिखा है कि इसकी सनद मुस्लिम की शर्त पर सह़ी है,और इब्नुल क़य्यिम ने भी "کتاب الصلاۃ" के अंदर यही हुकुम लिखा है,देखें:नमाज़ छोडंने वालों को काफिर मानने वालों के प्रमाण का संदर्भ,पृष्ठ संख्या 48,तथा इब्ने तैमिया ने भी "مجموع الفتاوی" 7513में इस ह़दीस को सह़ी कहा है
[71] इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम82ने रिवायत किया है,और इनके अतिरिक्त मोह़द्देसीन ने भी लगभग उपरोक्त शब्दों के साथ ही इस ह़दीस को रिवायत किया है,जैसे अबूदाउूद4678,तिरमिज़ी2618-2620,निसाई463,इब्ने माजा1078,अह़मद3370और लालकाई ने "شرح أصول اعتقاد أھل السنۃ" 1513-1517में अध्याय الصلاۃ من الإیمان के अंतर्गत रिवायत किया है,देखें: "صحیح الترغیب والترھیب"563
[72] इस ह़दीस को लालकानी ने "شرح أصول اعتقاد أھل السنۃ" में रिवायत किया है और फरमाया कि:इसकी सनद मुस्लिम की शर्त पर सह़ी है,और अल्बानी ने "صحیح الترغیب والترھیب" 566में इसका उल्लेख किया है
[73] इसे मालिक ने "الموطأ" के अंदर کتاب الطھارۃ ، باب العمل فیمن علیہ الدم من جرح أو رعاف में,लालकाई1528-1528ने और मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ" के अंदर 390में रिवायत किया है
[74] मरवज़ी ने इसे "تعظیم قدر الصلاۃ" में باب إکفار تارک الصلاۃ 930के अंतर्गत रिवायत किया है
[75] इस कथन को और इससे पूर्व के कथन को मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ" में باب ذکر إکفار تارک الصلاۃ 933,934के अंर्तगत रिवायत किया है
[76] इसे लालकाई 1537और मरवज़ी ने में के अंतर्गत वर्णित किया है
[77] इसे लालकाई 1537और मरवज़ी ने में के अंतर्गत वर्णित किया है
[78] इसे लालकाई1532 ने रिवायत किया है
[79] मरवज़ी ने इसे "تعظیم قدر الصلاۃ" में باب إکفار تارک الصلاۃ 936के अंतर्गत रिवायत किया है और इब्ने अबी शैबा ने کتاب "الإیمان" 48में रिवायत किया है और अल्बानी ने "صحیح الترغیب والترھیب" 574में इसकी सनद को ह़सन कहा है
[80] इसे लालकाई1536और इब्ने नसर मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ" में अध्याय ذکر إکفار تارک الصلاۃ 945के अंतर्गत रिवायत किया है किंतु उनके वर्णन में अंतिम वाक्य नहीं है और अल्बानी ने "صحیح الترغیب والترھیب" 575में इसकी सनद को सह़ी कहा है
[81] इसे इमाम तिरमिज़ी2622और मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ" में باب ذکر إکفار تارک الصلاۃ 948 के अंतर्गत रिवायत किया है और अल्बानी ने "صحیح الجامع" में इसे सह़ी कहा है,अधिक देखें:उनकी टिप्पणी: "صحیح الترغیب والترھیب" 565
[82] "شرح أصول اعتقاد أھل السنۃ والجماعۃ"1502,और देखें:1539
[83] इस कथन को मोह़म्मद बिन नसर मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ" अध्याय ذکر النھي عن قتل المصلین 990में और इब्ने अ़ब्दुलबर ने "التمھید" ,खंड صلاۃ الجماعۃ,अध्याय إعادۃ الصلاۃ مع الإمام में रिवायत किया है,तथा यह वृद्धि भी किया है कि:यदि उस क़ज़ाबाद में अदा करनेकरने से इंकार करे और कहे कि:मैं नमाज़ नहीं पढ़ूंगा
[84] इसे मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ" ,अध्याय ذکر إکفار تارک الصلاۃ 919में वर्णित किया है
[85] इस वर्णन को और इससे पूर्व के वर्णन को मरवज़ी ने "تعظیم قدر الصلاۃ", अध्याय النھي عن قتل المصلين978-979में वर्णित किया है
[86] "الترغیب والترھیب" ، کتاب الصلاۃ، ختام باب الترھیب من ترک الصلاۃ متعمدا.
[87] इब्ने ह़ज़म की "المحلى" 1152-153 مسئلہ 279
[88]आप इमाम,शैखुलइस्लाम,ह़ाफिज़ और शाफिई़ फक़ीह हैं,आपका निधन सन 294 हिजरी में हुआ,आपकी जीवनी के लिये देखें: "سیر أعلام النبلاء" 433
[89] "تعظیم قدر الصلاۃ، باب ذکر النهي عن قتل المسلمین وإباحۃ قتل من لم یصل ,असर संख्या1002के पश्चात
[90] "کتاب الصلاۃ وحکم تارکھا" पृष्ठ संख्या 63,नमाज़ छोड़ने वाले को काफिर मानने वालों की दसवें प्रमाण के पश्चात
[91] अर्थात जिस जानवर को वह अपने हाथ से ज़बह़ करे उसका खाना ह़राम है,चाहे उसपर अल्लाह का नाम ले अथवा न ले
[92] इस ह़दीस को बोखारी6764और मुस्लिमने ओसामा बिन ज़ैद रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित किया है,उपरोक्त शब्द मुस्लिम के हैं
[93] अर्थात यह उत्तर कि:हम अमुक मज़हब के अनुयायी हैं
[94] इस ह़दीस को खत्ताबी ने में आयशा रज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णित किया है,इसका अनुपूरूण इस प्रकार है:यदि वह नेक व्यक्ति होगा तो उसे क़ब्र में बैठाया जाएगा और उसे डर नहीं लगेगा
[95] इस ह़दीस को बोखारी6463और मुस्लिम2816ने अबूहोरैरा रज़ीअल्लाहु अंहु से उपरोक्त शब्दों ही के जैसा रिवायत किया है
[96] "رسالۃ ابن القیم إلى أحد إخوانہ" पृष्ठ संख्या:34-46, थोड़े हेर-फेर के साथ,प्राक्कथन:शैख बकर अबूज़ैद रहि़महुल्लाहु,शोध:अ़ब्दुल्लाह बिन मोह़म्मद अलमोदीफर
[97] लेखक-अल्लाह उनको क्षमा प्रदान करे-का कहना है:यही कारण है कि:नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को जब कोई गम होता तो आज नमाज़ पढ़ने लगते,इस ह़दीस को अबूदाउूद1319ने ह़ोज़ैफा बिन अलयमान नज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित किया है और अल्बानी ने इसे ह़सन कहा है
[98] "زاد المعاد" 4332