सईद बिन अली बिन वहफ अल-क़हतानी - लेख
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- हिन्दी लेखक : सईद बिन अली बिन वहफ अल-क़हतानी अनुवाद : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह प्रकाशक : इस्लामी आमन्त्रण एंव निर्देश कार्यालय रब्वा, रियाज़, सऊदी अरब
हज्ज और उम्रा की फज़ीलतः हज्ज इस्लाम का एक महान स्तम्भ है जिसकी प्रतिष्ठा महान, जिसका अज्र व सवाब बहुत अधिक और मक़्बूल हज्ज का बदला तो केवल जन्नत ही है। इस लेख में सहीह हदीसों में वर्णित उन फज़ाइल और अज्र व सवाब का उल्लेख किया गया जो एक हज्ज और उम्रा करने वाले को प्राप्त होते हैं, इस शर्त के साथ कि उसके अन्दर उसकी स्वीकृति की शर्तें पूरी हों अर्थात् अल्लाह के लिए इख़्लास और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण।
- हिन्दी लेखक : सईद बिन अली बिन वहफ अल-क़हतानी अनुवाद : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह प्रकाशक : इस्लामी आमन्त्रण एंव निर्देश कार्यालय रब्वा, रियाज़, सऊदी अरब
हज्ज में प्रतिनिधित्वः या किसी अन्य की ओर से हज्ज करना, उन मसाइल में से है जिस के बारे में बाहुल्य रूप से प्रश्न किया जाता है। यह एक शरई हुक्म है जिसके कुछ शुरूत हैं जिनकी पूर्ति करना, और कुछ नियम हैं जिनका पालन करना और कुछ आदाब –शिष्टाचार- हैं जिन से सुसज्जित होना आवश्यक है। इस लेख में उक्त तत्वों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
- हिन्दी लेखक : सईद बिन अली बिन वहफ अल-क़हतानी अनुवाद : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह प्रकाशक : इस्लामी आमन्त्रण एंव निर्देश कार्यालय रब्वा, रियाज़, सऊदी अरब
हज्ज और उम्रा की अनिवार्यता की शर्तेः इस लेख में उन शर्तों का उल्लेख किया गया है जिन के कारण हज्ज और उम्रा अनिवार्य हो जाता है, ये पाँच शर्तें हैः इस्लाम, बुद्धि, व्यस्कता़, सम्पूर्णतः आज़ादी और सामर्थ्य, तथा महिला के लिए एक अन्य विशिष्ठ शर्त उसके साथ महरम का होना है। जब ये सभी शर्तें किसी व्यक्ति के अन्दर पाई जाएं तो उस पर तुरन्त हज्ज करना अनिवार्य हो जाता है। यदि वह किसी स्थायी बीमारी, या शारीरिक विकलांगता के कारण स्वयं हज्ज करने से असमर्थ है, तो किसी अन्य व्यक्ति को, जो पहले अपना हज्ज कर चुका हो, अपनी ओर से हज्ज करने के लिए प्रतिनिधि बनाए गा।
- हिन्दी लेखक : सईद बिन अली बिन वहफ अल-क़हतानी अनुवाद : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह प्रकाशक : इस्लामी आमन्त्रण एंव निर्देश कार्यालय रब्वा, रियाज़, सऊदी अरब
हज्ज और उम्रा की अनिवार्यताः हज्ज एक महान इबादत है जिसे अल्लाह तआला ने अनिवार्य किया है और उसे उन पाँच स्तम्भों में से एक स्तम्भ क़रार दिया है जिन पर इस्लाम धर्म का आधार है। इस लेख में क़ुर्आन व हदीस की दलीलों और इज्माअ की रौशनी में यह उल्लेख किया गया है कि हज्ज और उम्रा समर्थ व्यक्ति पर जीवन में एक बार अनिवार्य है।