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खालिद बिन वलीद इस्लामी रिकॉर्डिंग - रियाद - ऑडियो

आइटम्स की संख्या: 3

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    इस ऑडियो में इस बात का उल्लेख किया गया है किस तरह मानव समाज में ईश्दूतों के अवतरण की शुरूआत हुई और विकास करते हुए एक महान संदेष्टा के ईश्दूतत्व पर संपन्न हो गयी - और वह समस्त ईश्दूतों व संदेष्टाओं के नायक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। तथा ईश्दूतत्व के संक्षेप इतिहास का वर्णन करते हुए हमारे अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईश्दूतत्व, उनके अवतरण के समय धार्मिक व सामाजिक स्थितियों, उनके गुणों, पवित चरित्र, जीवन की घटनाओं, कठिन परिस्थियों, उनकी जाति के लोगों का आपके साथ दुर्व्यवहार और आपका उनके साथ सदव्यवहार का उल्लेख किया गया है। इसी तरह पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईश्दूतत्व की सच्चाई, उसके प्रमाणों का चर्चा करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि आप पर ईश्दूतत्व का समापन हो जाता है। अतएव, आप अब परलोक तक सर्वमानवजाति के लिए अल्लाह के ईश्दूत व संदेष्टा हैं और सबके लिए आपका अनुपालन करना अनिवार्य है।

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    इसलाम के सिद्धान्त : इस ऑडियो में इस्लाम धर्म के नामकरण का कारण, इस्लाम शब्द का अर्थ, इस्लाम और कुफ्र की वास्तविकता, कुफ्र की हानियाँ और उसके दुष्ट परिणाम तथा इस्लाम में प्रवेश करने के लाभ का चर्चा करते हुए, यह स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य को अल्लाह के आज्ञापालन के लिए, अल्लाह के अस्तित्व, उसके गुणों और पसंदीदा तरीक़ों को जानने की ज़रूरत है। तथा उसके इस ज्ञान को विश्वास व यक़ीन के सर्वोच्च स्तर पर पहुँचा हुआ होना चाहिए। तथा मनुष्य को इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए स्वयं कोशिश नहीं करनी है, बल्कि अल्लाह ने अपने कुछ बंदों को इस मकान कार्य के लिए स्वयं चयन कर लिया है, और उन्हें यह ज्ञान प्रदान करके, उसे अपने सभी बंदों तक पहुँचाने का आदेश दिया है। अब बंदों को चाहिए के अल्लाह के चयनित सत्यवादी संदेष्टाओं को पहचानें, उन पर ईमान लायें, उनकी बातों को सुनों और उनकी शिक्षाओं और निर्देशों के अनुसार जीवन बितायें। इसके अलावा मनुष्य के लिए अल्लाह की अज्ञाकारिता का कोई अन्य रास्ता नहीं है।

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    इस ऑडयिों में उन बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर हमारे संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें ईमान लाने का आदेश दिया है, और उनमें सर्व प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण अल्लाह पर ईमान लाना अर्थात ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ का इक़रार करना है। जिस पर इस्लाम की आधारशिला है, और जिसके द्वारा एक मुसलमान के बीच और एक काफिर, मुश्रिक और नास्तिक के बीच अंतर होता है। लेकिन केवल इस कलिमा का उच्चारण मात्र ही काफी नहीं है, बल्कि उसके अर्थ और भाव पर पूरा उतरना ज़रूरी है। इसी तरह ‘इलाह’ (पूज्य) का अर्थ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ की वास्तविकता का उल्लेख करते हुए, मानव जीवन में इस कलिमा के प्रभावों का उल्लेख किया गया है। अंत में उन अवशेष बातों का उल्लेख किया गया है जिन पर ईमान लाने का पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें आदेश दिया है, और वे : अल्लाह के फरिश्तों, उसकी पुस्तकों, उसके पैगंबरों, परलोक के दिन, और अच्छी व बुरी तक़्दीर (भाग्य) पर ईमान लाना, हैं।