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अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह - लेख

आइटम्स की संख्या: 110

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    यह आदरणीय शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह की पत्रिका ‘‘अहकामुल उज़हियाति वज़्ज़कात’’ का एक अध्याय है, जिसके अंदर क़ुर्बानी के विषय में बुनियादी उसूल का उल्लेख किया गया है और वह यह है कि क़ुर्बानी ज़िन्दा लोगों की तरफ से धर्मसंगत है। लेकिन इस समय बहुत से लोग ज़िन्दों को छोड़कर, मरे हुए लोगों की तरफ से क़ुर्बानी करते हैं। प्रस्तुत लेख में मरे हुए लोगों की तरफ से क़ुर्बानी की हालतों पर चर्चा किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख में कुछ शिष्टाचार उल्लेख किए गए हैं जिनसे एक हाजी को हज्ज करने से पहले सुसज्जित होना ज़रूरी है।

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    अल्लाह तआला की महान कृपा और उपकार है कि उसने अपने बन्दों के लिए ऐसे नेकियों के मौसम और अवसर निर्धारित किये हैं जिन में वे अधिक से अधिक नेक कार्य करके अपने पालनहार की निकटता प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। उन्हीं महान मौसमों और महत्वपूर्ण अवसरों में से एक ज़ुलहिज्जा के प्राथमिक दस दिन भी हैं, जिन्हें पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दिन बतलाए हैं। प्रस्तुत लेख में ज़ुल-हिज्जा के प्राथमिक दस दिनों की फज़ीलत तथा उनसे संबंधित कुछ प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख एक महत्वपूर्ण मुद्दे के वर्णन पर आधारित है जिसके बारे में, विशेषकर शव्वाल के महीने में, अधिक प्रश्न किया जाता है, और यह मुद्दा ’’एक ही कार्य में कई नीयतों को एकत्रित करना’’ है।

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    आमतौर पर यह समझा जाता है कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके ‘प्रवर्तक’ पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। लेकिन वास्तव में इस्लाम उतना ही पुराना जितना धर्ती पर स्वयं मानवजाति का इतिहास है, तथा पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसके प्रवर्तक व संस्थापक नहीं, बल्कि इसके आह्वाहक हैं। प्रथम मानव व ईश्दूत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर अंतिम पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक सभी ईश्दूतों और संदेष्टाओं का धर्म इस्लाम ही रहा है। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस श्रृंखला के अंतिम कड़ी हैं। अल्लाह ने आप के हाथों पर इस धर्म को परिपूर्ण और संपन्न कर दिया है। प्रस्तुत लेख में इसी तथ्य का खुलासा करते हुए, इस दुष्प्रचार का खण्डन किया गया है कि इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।

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    अक्सर देखा जाता है कि बहुत से वे मुसलमान जो रमज़ान के महीने में बहुत सारी नेकियों की पाबंदी करते थे, इस महीने की समाप्ति के बाद वे इन नेकियों को छोड़ देते हैं, उन पर स्थिर नहीं रहते हैं। जबकि अल्लाह तआला ने अपनी किताब में हमें मृत्यु आने तक नेकियों और आज्ञाकारिता पर स्थिर रहने का आदेश दिया है। इस स्थिरता के मार्ग में कुछ रूकावटें और उसके कुछ कारण हैं, यदि मनुष्य उसकी रूकावटों से बचे और उसके कारणों को अपनाए तो अल्लाह की अनुमति से वह आज्ञाकारिता पर स्थिर रहेगा। प्रस्तुत लेख में इन रूकावटों में से ज़्यादातर और इन कारणों में से सबसे महत्वपूर्ण का संक्षेप वर्णन किया गया है। आशा है अल्लाह सर्वशक्तिमान इसके द्वारा इसके पाठक और इसके लेखक को लाभ पहुँचाए।

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    पर्दा सर्वप्रथम अल्लाह की उपासना है, जिसे अल्लाह ने अपनी व्यापक व अपार तत्वदर्शिता से औरतों पर अनिवार्य कर दिया है। पर्दा नारी के लिए पवित्रता, शालीनता और सभ्यता का प्रतीक, तथा उसके सतीत्व व मर्यादा का रक्षक है। पर्दा वास्तव में नारी के लिए प्रतिष्ठा और सम्मान का पात्र है। यह उसकी व्यक्तगत स्वतंत्रता के विरूद्ध या उसके विकास में रुकावट अथवा उसके लिए कलंक नहीं है, जैसाकि इस्लाम की शिक्षाओं और उसकी तत्वदर्शिता से अनभिग लोग तथा पक्षपाती एवं दोहरे मापदंड वाली मीडिया ऐसा दर्शाने की कुप्रयास करती रहती है। प्रस्तुत लेख में इस्लाम के निकट पर्दा की वास्तविकता, उसकी तत्वदर्शिता व रहस्य, उसके उद्देश्य और अच्छे परिणाम का उल्लेख किया गया है। इसी तरह आज के गैर-इस्लामी समाज की दुर्दशा और भयावह आँकड़े को प्रस्तुत करते हुए उन्हें इस्लामी जीवनशैली की प्रतिष्ठा की झलक दिखाकर उससे लाभान्वित होने का आमंत्रण दिया गया है।

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    पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सादगीः क्या आप जानते हैं कि मानव इतिहास के सबसे महान पुरूष पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का जीवनयापन किस तरह था? आपकी महान स्थिति और सर्वोच्च पद के बावजूद सादगी का यह हाल था कि कई दिनों तक चूल्हा ही नहीं जलता था।

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    क्षमाशीलता अल्लाह के गुणों में से एक महान गुण है, जिसके द्वारा वह अपने भक्तों को क्षमा प्रदान करता है, और उनपर दया करते हुए उनके पापों को शमन कर देता है। तथा वह इस बात को भी पसंद करता है कि लोग एक दूसरे के साथ क्षमाशीलता का व्यवहार करें। चुनांचे पवित्र क़ुरआन में उसने क्षमा करने वालों और गुस्सा पी जाने वालों की सराहना की है और उन्हें अपनी ओर से क्षमा प्रदान करने का वादा किया है। प्रस्तुत लेख में इस्लाम के इसी पक्ष को उजागर करने का प्रयास किया गया है।

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    इस्लाम धर्म की गुणों और विशेषताओं में से एक महत्वपूर्ण तत्व यह है कि उसने हर उस चीज़ से मनाही की है और उस पर कड़ी चेतावनी दी है, जिससे मानव के शरीर, स्वास्थ्य, बुद्धि और धन को छति और हानि पहुँचती है। शराब और सामान्यतः मादक पदार्थों का सेवन उनमें से एक है। शराब को इस्लाम ने बुराईयों की जननी घोषित किया है और उसे हर दुष्ट कार्य की कुंजी माना है। वास्तविकता भी यही है ; मेडिकल साइंस इसकी पुष्टि करती है और वस्तुस्थिति इसकी साक्ष्य है। प्रस्तुत लेख में इस तथ्य से रु-ब-रु कराने का सुप्रयास किया गया है।

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    इस उम्मत पर अल्लाह सर्वशक्तिमान की यह अनुकम्पा और अनुग्रह है कि उसने इसे सबसे अंतिम और सबसे श्रेष्ठ उम्मत बनाया है, तथा इस उम्मत के पैगंबर को समस्त ईश्दूतों और संदेष्टाओं में श्रेष्ठतम और उन सबकी अंतिम कड़ी बनाया है। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मोहब्बत को धर्म क़रार दिया है जिसके द्वारा हम अल्लाह सर्वशक्तिमान की उपासना व आराधना करते हैं, और उसके द्वारा उसकी निकटता चाहते हैं। प्रस्तुत लेख में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मोहब्बत पर नफ्स के प्रशिक्षण और पालन पोषण के तरीक़े के बारे में चर्चा किया गया है। साथ ही साथ क़ियामत के दिन पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शफाअत की प्राप्ति के कुछ कारणों का भी उल्लेख किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख में अपशकुन व निराशावाद का अर्थ स्पष्ट करते हुए यह उल्लेख किया गया है कि यदि मुसलमान के दिल में अपशकुन पैदा हो जाए तो उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। तथा इस बात पर प्रकाश डाली गई है कि सफर के महीने से अपशकुन लेना जाहिलियत के समयकाल की प्रथा है, इस्लाम धर्म में उसकी कोई वास्तविकता नहीं है।

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    अपशकुन लेना एक पुरानी प्रथा है जिसके विभिन्न समाजों में विभिन्न रंग व रूप पाए जाते हैं। इस्लाम धर्म की दृष्टि से यह एक घृणित प्रथा है जिसका इस्लाम ने खण्डन किया है और उसे निषिद्ध ठहराया है, तथा इस बात को स्पष्ट किया है कि उसका किसी चीज़ के लाभ व हानि में कोई प्रभाव नहीं है। बल्कि मनुष्य को जीवन के सभी मामलों में आशावादी रहने की शिक्षा दी है और उसकी रूचि दिलाई है। प्रस्तुत लेख में अच्छा फाल –शकुन-, आशावाद के रूप, निराशावाद व अपशकुन की वास्तविकता, इस्लाम धर्म में उसके निषेद्ध, अरब एवं गैर अरब समाज में उसके रंग व रूप, और निराशावाद की हानियों और आशावाद के लाभ का उल्लेख किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख में हाजियों के लिए हज्ज के महान कर्तव्य की अदायगी के बाद कुछ वसीयतें प्रस्तुत की गई हैं जिनका पालन करना हाजी के लिए अति उचित है।

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    प्रस्तुत पुस्तिका में हाजियों के लिए हज्ज के छः दिनों के काम संक्षेप में उल्लेख किए गए हैं, जिसका आरंभ ज़ुल-हिज्जा की 8वीं तारीख से होता है और तश्रीक़ के अंतिम दिन 13वीं ज़ुल-हिज्जा को संपन्न हो जाता है।

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    रमज़ान का महीना हम से रूख्सत हो गया और उसकी मुबारक घड़ियाँ समाप्त होगईं, लाभ उठानेवालों ने इससे लाभ उठाए और कितने लोग घाटे और टूटे में रहे, हम नहीं जानते कि कौन लाभान्वित है कि उसे बधाई दें और कौन घाटे में रहा कि उसे सांत्वना दें। भाग्यशाली है वह व्यक्ति जिसने इस महीने से भरपूर लाभ उठाया और रमज़ान उसके हक़ में गवाही देनेवाला बन गया ! दुर्भाग्यपूर्ण और सांत्वना के योग्य है वह व्यक्ति जिसने इस महीने को नष्ट कर दिया या इसमें लापरवाही और कोताही से काम लिया ! लेकिन अब रमज़ान के बाद, एक मुसलमान को क्या करना चाहिए ॽ इस लेख में इसी बात को स्पष्ट करने का सुप्रयास किया गया है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) उम्मुल-मोमिनीन सैयिदा आयशा बिन्त अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हुमा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों में आपके निकट सबसे प्रिय और चहेती थीं, उम्महातुल मोमिनीन के बीच उनका महान स्थान था। वह क़ुरआन व हदीस और इस्लामी धर्मशास्त्र मे निपुण महिला थीं। इस लेख में सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु की संक्षेप जीवनी और तीन ऐसे पहलुओं का उल्लेख किया गया है जिनमें वह उत्कृष्ट थीं।

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    सैयिदा मारिया अल-क़िब्तिय्यह रज़ियल्लाहु अन्हा उन दोनों लौंडियों में से एक थीं जिन्हें मिस्र में बीजान्टिन राज्य के एटॉर्नी जनरल और इस्कंदरिया के राज्यपाल मुकौकिस ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में भेंट की थी, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मारिया रज़ियल्लाहु अन्हा को अपने लिए चुन लिया था और उनकी बहन सीरीन को अपने महान कवि हस्सान बिन साबित अनसारी रज़ियल्लाहु अन्हु को प्रदान कर दिया था। उन्हीं से पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बेटे इब्राहीम पैदा हुए। मारियह रज़ियल्लाहु अन्हा की क़ुरआन करीम में एक बड़ी शान है। अल्लाह सर्वशक्तिमान ने सूरत तहरीम के शुरू की आयतें उन्हीं के बारे में उतारी हैं। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) उम्मुल-मोमिनीन सैयिदा हफ्सा बिन्त उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हुमा एक महान सहाबी खुनैस बिन हुज़ैफा अस-सहमी रज़ियल्लाहु अन्हु की पत्नी थीं, जो उहुद की लड़ाई में एक मार लगने के कारण अल्लाह को प्यारे हो गए थे। उसके बाद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे शादी की और वह उम्मुल मोमिनीन होगईं। वह जिबरील अलैहिस्सलाम की सच्ची गवाही के अनुसार बहुत रोज़ा रखनेवाली और बहुत नमाज़ पढ़नेवाली थीं, तथा स्वर्ग में भी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी हैं। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।