(1) (अलिफ़, लाम, मीम) सूरतुल-बक़रा की शुरुआत में इस प्रकार के अक्षरों के बारे में बात गुज़र चुकी है।
(2) फारस वालों ने रूमियों को पराजित कर दिया।
(3) शाम (लेवांत) के उस क्षेत्र में जो फारस के लिए निकटतम है। और रूमी फारस वालों से हारने के बाद जल्द ही उनपर विजय प्राप्त कर लेंगे।
(4) कुछ ही समय में, जो तीन साल से कम और दस साल से अधिक नहीं होगा। रूमियों के जीतने से पहले और उसके बाद, सारा मामला अल्लाह के अधिकार में है। और जिस दिन रूमी फारस पर विजयी होंगे, उस दिन ईमान वालों को खुशी होगी।
(5) वे अल्लाह के रूमियों की सहायता करने पर खुश होंगे, क्योंकि वे पुस्तक वाले लोग हैं।अल्लाह जिसकी चाहता है जिसके विरुद्ध चाहता है, मदद करता है। वह प्रभुत्वशाली है, जिसे परास्त नहीं किया जा सकता, जो अपने ईमान वाले बंदों पर अत्यंत दयालु है।
(6) यह सहायता (जीत) सर्वशक्तिमान अल्लाह की ओर से एक वादा था। अल्लाह अपना वादा नहीं तोड़ता है, और इसके पूरा होने से ईमान वालों का अल्लाह की सहायता के वादे पर विश्वास बढ़ जाता है। लेकिन अधिकतर लोग अपने कुफ़्र (अविश्वास) के कारण इसे नहीं समझते हैं।
(7) वे ईमान और शरीयत के नियमों से अनभिज्ञ हैं। वे केवल सांसारिक जीवन के कुछ बाहरी स्वरूप को जानते हैं, जो जीविका कमाने और भौतिक सभ्यता के निर्माण से संबंधित है। जबकि वे आख़िरत से, जो वास्तविक जीवन का घर है, मुँह फेरे हुए हैं, उसपर कोई ध्यान नहीं देते हैं।
(8) क्या इन झुठलाने वाले मुश्रिकों ने अपने बारे में सोच-विचार नहीं किया कि अल्लाह ने उन्हें कैसे पैदा किया और ठीक-ठाक बनाया? अल्लाह ने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है सत्य के साथ ही पैदा किया है। उसने उन्हें व्यर्थ पैदा नहीं किया। तथा उनके लिए दुनिया में बने रहने के लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित की। निश्चित रूप से बहुत-से लोग क़ियामत के दिन अपने रब से मिलने का इनकार करते हैं। इसलिए वे अपने पालनहार के निकट पसंदीदा नेक कार्य करके पुनर्जीवन के लिए तैयारी नहीं करते हैं।
(9) क्या ये लोग धरती में नहीं चले-फिरे कि सोच-विचार करते कि उनसे पूर्व झुठलाने वाले समुदायों का अंत कैसा हुआ। ये समुदाय इनसे अधिक शक्तिशाली थे, तथा उन्होंने धरती को खेती और निर्माण के लिए उलटा-पलटा और उसे आबाद किया उससे कहीं अधिक जितना इन लोगों ने आबाद किया। और उनके पास उनके रसूल अल्लाह के एकेश्वरवाद के स्पष्ट प्रमाणों और तर्कों के साथ आए, परंतु उन्होंने झुठला दिया। तो अल्लाह ने उन्हें विनष्ट करके उनपर ज़ुल्म नहीं किया, लेकिन वे अपने कुफ़्र के कारण खुद को विनाश से पीड़ित करके अपने ऊपर अत्याचार करते थे।
(10) फिर उन लोगों का परिणाम, जिनके कर्म अल्लाह के साथ शिर्क और बुरे कामों के करने के कारण बुरे थे, बहुत ही बुरा हुआ। क्योंकि उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया तथा वे उनका मज़ाक और हँसी उड़ाया करते थे।
(11) अल्लाह ही बिना किसी पूर्व उदाहरण के सृष्टि का आरंभ करता है। फिर उसे नष्ट कर देगा। फिर उसे वापस लौटाएगा। फिर तुम क़ियामत के दिन हिसाब और बदले के लिए उसी अकेले की ओर लौटाए जाओगे।
(12) और जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, अपराधी लोग अल्लाह की दया से निराश हो जाएँगे और उसके बारे में उनकी आशा समाप्त हो जाएगी। क्योंकि उनके पास अल्लाह के साथ कुफ़्र करने का कोई तर्क नहीं रह जाएगा।
(13) और उनके लिए उनके साझियों में से (जिनकी वे दुनिया में पूजा करते थे) उन्हें यातना से बचाने के लिए सिफ़ारिश करने वाले नहीं होंगे। और वे अपने साझियों का इनकार कर बैठेंगे। क्योंकि उन्होंने ज़रूरत पड़ने पर उन्हें छोड़ दिया। इसलिए कि वे सभी तबाही में बराबर हैं।
(14) जिस दिन क़ियामत क़ायम होगी, उस दिन लोग, दुनिया में अपने कर्मों के अनुसार प्रतिफल में अलग-अलग होंगे। कोई सबसे ऊँचे भाग में होगा, तो कोई सबसे निचले भाग में धकेल दिया जाएगा।
(15) जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उन्होंने अल्लाह के निकट पसंदीदा अच्छे कार्य किए, वे जन्नत में उसमें प्राप्त होने वाली स्थायी नेमतों से खुश रखे जाएँगे, जो कभी भी समाप्त नहीं होंगी।
(16) और जिन लोगों ने अल्लाह का इनकार किया और हमारे रसलू पर उतारी गई हमारी आयतों को झुठलाया, और मरणोपरांत दोबारा जीवित किए जाने और हिसाब को झुठलाया, तो वे यातना के लिए प्रस्तुत किए जाएँगे और सदा यातना ही में पड़े होंगे।
(17) अतः तुम संध्या के समय में प्रवेश करने पर अल्लाह की पवित्रता बयान करो; जो कि मग़रिब और इशा की नमाज़ का समय है, तथा सुबह के समय में प्रवेश करने पर उसकी पवित्रता बयान करो; जो कि फ़ज्र की नमाज़ का समय है।
(18) केवल उसी महिमावान के लिए सब प्रशंसा है; आकाशों में उसके फ़रिश्ते उसकी प्रशंसा करते हैं, और धरती पर उसकी मखलूक़ात उसकी प्रशंसा करती हैं। और तुम उसकी पवित्रता बयान करो, जब तुम शाम में प्रवेश करते हो, जो कि अस्र की नमाज़ का समय है, तथा उसकी पवित्रता बयान करो, जब तुम ज़ुहर के समय में प्रवेश करते हो।
(19) वह जीवित को मृत से निकालता है, जैसे इनसान को नुत्फ़ा (शुक्राणु) से निकालता है और चूज़े को अंडे से निकालता है। और मृत को जीवित से निकालता है, जैसे नुत्फ़ा (शुक्राणु) को इनसान से और अंडे को मुर्गी से निकालता है। और धरती को उसके सूखने के बाद बारिश उतारकर और उसे अंकुरित करके पुनर्जीवित करता है। तथा धरती को उसे अंकुरित करके पुनर्जीवित करने की तरह, तुम अपनी क़ब्रों से हिसाब और बदले के लिए निकाले जाओगे।
(20) अल्लाह की शक्ति और एकता को दर्शाने वाली उसकी महान निशानियों में से यह है कि : उसने (ऐ लोगो!) तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, जब उसने तुम्हारे पिता (आदम) को मिट्टी से बनाया, फिर अचानक तुम मनुष्य हो, जो प्रजनन के माध्यम से बढ़ रहे हो और धरती के पूर्व और पश्चिम में फैल रहे हो।
(21) इसी तरह उसकी शक्ति और एकता को दर्शाने वाली उसकी महान निशानियों में से यह भी है कि (ऐ पुरुषो) उसने तुम्हारे लिए तुम्हारे ही वर्ग से पत्नियाँ पैदा कीं, ताकि तुम्हारे बीच सामंजस्य के कारण उनके पास तुम्हें राहत व आराम मिले। और उनके और तुम्हारे बीच प्रेम और करुणा रख दी। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए स्पष्ट सबूत और संकेत हैं, जो सोच-विचार करते हैं, क्योंकि वही लोग अपने विवेक का प्रयोग करके लाभ उठाते हैं।
(22) उसकी शक्ति और एकता को दर्शाने वाली उसकी महान निशानियों में से : आकाशों का निर्माण तथा पृथ्वी का निर्माण है। तथा उन्हीं में से तुम्हारी भाषाओं की विविधता और तुम्हारे रंगों का अलग-अलग होना है। निश्चय यह जो कुछ उल्लेख हुआ है, उसमें ज्ञान और अंतर्दृष्टि रखने वाले लोगों के लिए प्रमाण और संकेत हैं।
(23) और उसकी शक्ति और एकता को दर्शाने वाली उसकी महान निशानियों में से : तुम्हारा रात में सोना तथा तुम्हारा दिन के समय सोना है, ताकि तुम अपने काम की थकान से आराम हासिल करो। तथा उसकी निशानियों में से एक यह है कि उसने तुम्हारे लिए दिन बनाया, ताकि तुम उसमें अपने पालनहार की रोज़ी तलाश करते हुए फैल जाओ। निश्चित रूप से यह जो कुछ उल्लेख हुआ है, उसमें उन लोगों के लिए बहुत-से प्रमाण और संकेत हैं, जो चिंतन करने और स्वीकार करने के इरादे से सुनते हैं।
(24) और उसकी शक्ति और एकता को दर्शाने वाली उसकी महान निशानियों में से : यह भी है कि वह तुम्हें आसमान में बिजली (की चमक) दिखाता है, और तुम्हारे लिए उसमें बिजली का भय और बारिश की लालच एकत्र कर देता है। और तुम्हारे लिए आसमान से बारिश का पानी उतारता है, फिर उसके द्वारा सूखी धरती को, उसमें पौधे उगाकर जीवित कर देता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए स्पष्ट प्रमाण और संकेत हैं, जो समझ-बूझ रखते हैं। चुनाँचे वे इनसे मौत के बाद हिसाब और बदला के लिए पुनर्जीवित किए जाने का प्रमाण ग्रहण करते हैं।
(25) और अल्लाह की उसकी शक्ति और एकता को दर्शाने वाली निशानियों में से आकाश का बिने गिरे और धरती का बिना ध्वस्त हुए; उस महिमावान के आदेश से स्थापित होना है। फिर जब वह तुम्हें फ़रिश्ते के सूर में फूँकने के द्वारा धरती से बुलाएगा, तो अचानक तुम हिसाब और बदले के लिए अपनी क़ब्रों से निकल पड़ोगे।
(26) जो कोई भी आकाशों में है, सब अकेले उसी का है और जो कोई भी धरती में है, सब उसी का है, वही सबका मालिक, पैदा करने वाला और भाग्य-विधाता है। आकाशों और धरती की उसकी पैदा की हुई सारी चीज़ें उसकी आज्ञा के अधीन और उसके आदेश के प्रति समर्पित हैं।
(27) वही महिमावान है, जो बिना किसी पूर्व उदाहरण के सृष्टि का आरंभ करता है। फिर उसको नष्ट करने के बाद उसे दोबारा पैदा करेगा। और दोबारा पैदा करना पहली बार पैदा करने की तुलना में अधिक आसान है। हालाँकि उसके लिए दोनों ही आसान हैं। क्योंकि वह जब किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है, तो उससे कहता है : ''हो जा'', तो वह चीज़ हो जाती है। तथा अल्लाह अपनी महिमा और पूर्णता के सभी गुणों में सबसे उच्च गुण वाला है। वही वह प्रभुत्वशाली है, जिसे परास्त नहीं किया जा सकता। वह अपनी रचना और प्रबंधन में हिकमत वाला है।
(28) (ऐ मुश्रिको!) अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हीं से लिया गया एक उदाहरण प्रस्तुत किया है : क्या तुम्हारे गुलामों और दासों में से कोई तुम्हारा साझी है, जो तुम्हारे धन में बराबर का हिस्सेदार है, कि तुम डरते हो कि वह तुम्हारे साथ तुम्हारे धन को विभाजित कर लेगा, जिस तरह कि तुममें से कुछ अपने आज़ाद साथी से डरते हैं कि वह उसके साथ धन बांट लेगा? क्या तुम अपने लिए अपने गुलामों की इस साझेदारी को पसंद करोगे? निःसंदेह तुम ऐसा पसंद नहीं करोगे। तो फिर अल्लाह इस बात का सबसे अधिक हक़दार है कि उसके प्राणियों और दासों में से कोई उसके राज्य में उसका साझेदार न हो। इसी तरह उदाहरण प्रस्तुत करने आदि के द्वारा, हम उन लोगों के लिए विविध प्रकार के तर्क और प्रमाण पेश करते हैं, जो समझ-बूझ रखते हैं। क्योंकि वही लोग इससे लाभान्वित होते हैं।
(29) उनकी गुमराही का कारण प्रमाणों में किसी प्रकार की कमी नहीं है और न ही उनकी व्याख्या में कमी है। बल्कि उसका कारण, अपने ऊपर अल्लाह के अधिकार की अज्ञानता की वजह से, इच्छाओं का पालन करना और अपने बाप-दादाओं का अनुकरण करना है। तो भला उसे कौन हिदायत की तौफ़ीक़ दे सकता है, जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया है?! कोई भी उसे तौफ़ीक़ नहीं दे सकता। और उनके पास कोई सहायक नहीं हैं जो उनसे अल्लाह की यातना को दूर कर सकें।
(30) (ऐ रसूल) आप और आपके साथी उस धर्म की ओर उन्मुख हो जाएँ, जिसकी ओर अल्लाह ने आपको निर्देशित किया है; सभी धर्मों से उपेक्षाकर उसी की ओर एकाग्र होकर। वह इस्लाम धर्म है, जिसपर अल्लाह ने लोगों को पैदा किया है। अल्लाह की रचना में कोई बदलाव नहीं हो सकता। यही सीधा धर्म है, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है। लेकिन अधिकतर लोगों को नहीं पता है कि सच्चा धर्म यही (इस्लाम) धर्म है।
(31) अपने गुनाहों से तौबा करके उसी महिमावान अल्लाह की ओर लौट आओ। तथा उसके आदेशों का पालन करके और निषेधों से दूर रहकर उससे डरते रहो। और संपूर्ण तरीक़े से नमाज़ पढ़ो। और उन मुश्रिकों में से न हो जाओ, जो सहज प्रकृति का विरोध करते हैं। इसलिए वे अपनी इबादत में अल्लाह के साथ दूसरों को साझी ठहराते हैं।
(32) उन मुश्रिकों में से न हो जाओ, जिन्होंने अपने धर्म को बदल दिया और उसके कुछ भाग पर ईमान लाए और कुछ का इनकार किया और वे कई समूहों और दलों में बँट गए। उनमें से प्रत्येक दल, उसके पास जो असत्य है, उसी पर खुश है। वे समझते हैं कि वही अकेले सत्य पर हैं और उनके सिवा अन्य लोग असत्य पर हैं।
(33) जब मुश्रिकों को बीमारी या गरीबी या सूखे की गंभीरता का सामना करना पड़ता है, तो वे केवल अपने महिमावान पालनहार ही को पुकारते हैं, विलाप और इस विनती के साथ उसकी ओर लौटते हुए कि वह उनकी विपत्ति को उनसे टाल दे। फिर जब वह उनकी विपत्ति को टालकर उनपर दया करता है, तो सहसा उनमें से एक समूह दुआ में अल्लाह के साथ उसके अलावा को साझी ठहराने की ओर लौट आता है।
(34) यदि वे अल्लाह की नेमतों (जिनमें विपत्ति को दूर करने की नेमत भी शामिल है) की कृतघ्नता करते हैं, और इस जीवन में उनके हाथों में जो कुछ है, उसका आनंद लेते हैं, तो वे क़ियामत के दिन अपनी आँखों से देख लेंगे कि वे खुली गुमराही में थे।
(35) उन्हें अल्लाह के साथ शिर्क करने के लिए किस चीज़ ने आमंत्रित किया, जबकि उनके पास कोई प्रमाण नहीं है?! चुनाँचे हमने उनपर प्रमाण के रूप में कोई किताब नहीं उतारी है, जिससे वे अपने अल्लाह के साथ शिर्क करने पर प्रमाण ग्रहण कर सकें। तथा उनके पास कोई किताब भी नहीं है, जो उनके शिर्क की बात करती हो और उनके लिए उनके कुफ़्र के सही होने को प्रमाणित करती हो।
(36) जब हम लोगों को अपनी नेमतों में से कोई नेमत चखाते हैं, जैसे कि स्वास्थ्य और धन, तो वे उसपर इतराने और अभिमान करने लगते हैं। और अगर उनके गुनाहों के कारण, उन्हें कोई बुराई पहुँचती है, जैसे बीमारी और गरीबी आदि, तो वे एकाएक अल्लाह की दया से निराश हो जाते हैं और उन्हें जो बुराई पहुँची है उसके दूर होने से आशाहीन हो जाते हैं।
(37) क्या उन्होंने यह नहीं देखा कि अल्लाह अपने बंदों में से जिसके लिए चाहता है, उसकी रोज़ी का विस्तार कर देता है, उसके लिए एक परीक्षण के रूप में कि वह आभार प्रकट करता है या कृतघ्नता दिखाता है? तथा उनमें से जिसके लिए चाहता है, उसकी रोज़ी तंग कर देता है, उसके लिए एक परीक्षण के तौर पर कि वह सब्र करता है या क्रुद्ध होता है?! निश्चित रूप से कुछ के लिए आजीविका का विस्तार करने और कुछ के लिए रोज़ी को तंग करने में, ईमान वालों के लिए अल्लाह की दया और करुणा के बहुत-से संकेत हैं।
(38) अतः (ऐ मुसलमान!) तुम रिश्तेदार के साथ भलाई और एहसान का वह मामला करो, जिसका वह हक़दार है, तथा ज़रूरतमंद को इतना दो, जिससे उसकी आवश्यकता पूरी हो सके, तथा उस यात्री को भी दो, जिसका अपने देश से रास्ता कट गया है। इन भलाई के कार्यों में खर्च करना उन लोगों के लिए बेहतर है, जो उससे अल्लाह का चेहरा (प्रसन्नता) चाहते हैं। जो लोग इस सहायता और अधिकारों का निष्पादन करते हैं, वही लोग उस जन्नत को प्राप्त कर, जिसे वे तलब करते हैं, तथा उस यातना से सुरक्षित रहकर, जिससे वे डर रहे हैं, सफल होने वाले हैं।
(39) जो धन तुम किसी आदमी को इस उद्देश्य से देते हो कि वह तुम्हें उसमें कुछ वृद्धि के साथ वापस करे, तो उसका सवाब अल्लाह के यहाँ नहीं बढ़ेगा। और जो कुछ तुम अपने माल में से किसी ऐसे व्यक्ति को देते हो, जो उससे अपनी ज़रूरत पूरी करता है, जिससे तुम अल्लाह का चेहरा चाहते हो, तुम्हारा इरादा कोई पद (सामाजिक स्थिति) या लोगों से प्रतिफल प्राप्त करना नहीं है, तो ऐसे ही लोग हैं जिनके प्रतिफल को अल्लाह के यहाँ कई गुना कर दिया जाएगा।
(40) केवल अल्लाह ही वह हस्ती है, जो तुम्हें पैदा करने, फिर तुम्हें रोज़ी देने, फिर तुम्हें मारने, फिर तुम्हें क़ियामत के दिन के लिए जीवित करने में अकेला है। क्या तुम्हारी उन मूर्तियाँ में से, जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पूजते हो, कोई ऐसा है, जो इनमें से कोई काम कर सके?! अल्लाह की हस्ती उससे बहुत पवित्र और सर्वोच्च है, जो मुश्रिक लोग कहते और विश्वास रखते हैं।
(41) लोगों के किए हुए पापों के कारण, जल और थल में बिगाड़ फैल गया, जैसे सूखा, वर्षा की कमी, तथा बीमारियों और महामारियों की बहुतायत। ऐसा इसलिए प्रकट हुआ ताकि अल्लाह उन्हें उनके कुछ बुरे कर्मों का बदला दुनिया के जीवन ही में चखा दे, इस आशा में कि वे तौबा करके अल्लाह की ओर लौट आएँ।
(42) (ऐ रसूल) आप इन मुश्रिकों से कह दें : धरती में चलो-फिरो, फिर विचार करो कि तुमसे पहले के झुठलाने वाले समुदायों का अंत कैसे हुआ? वास्तव में वह एक बुरा परिणाम था। उनमें से अधिकांश लोग अल्लाह का साझी बनाने वाले थे, उसके साथ अन्य को पूजते थे। चुनाँचे वे अल्लाह के साथ शिर्क करने के कारण नष्ट कर दिए गए।
(43) (ऐ रसूल) आप अपना चेहरा सीधे घर्म इस्लाम पर स्थापित रखें, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, इससे पहले कि क़ियामत का दिन आ जाए, जिसके आ जाने पर, उसे कोई टालने वाला नहीं होगा। उस दिन लोग अलग-अलग समूहों में होंगे : एक समूह जन्नत के अंदर नेमतों में होगा, और एक समूह जहन्नम के अंदर अज़ाब में ग्रस्त होगा।
(44) जिसने अल्लाह का इनकार किया, तो उसके इनकार का नुक़सान - जो कि हमेशा के लिए नरक में रहना है - उसी पर लौटने वाला है, और जिसने अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अच्छा कार्य किया, तो ऐसे लोग अपने ही लिए जन्नत में दाखिल होने और उसकी नेमतों का आनंद लेने के लिए रास्ता हमवार कर रहे हैं। जिसमें वे हमेशा के लिए रहने वाले हैं।
(45) ताकि अल्लाह अपने अनुग्रह और उपकार से उन लोगों को बदला दे, जो अल्लाह पर ईमान लाए और ऐसे अच्छे कार्य किए जो अल्लाह को पसंद हैं। अल्लाह उन लोगों से प्रेम नहीं करता, जो उसका और उसके रसूलों का इनकार करने वाले हैं। बल्कि उनसे सख़्त नाराज़ होता है और उन्हें क़ियामत के दिन यातना देगा।
(46) तथा अल्लाह की शक्ति और एकता का संकेत देने वाली उसकी महान निशानियों में से एक यह है कि वह हवाओं को भेजता है, जो बंदों को बारिश उतरने के निकट होने की शुभ सूचना देती हैं, और ताकि वह तुम्हें (ऐ लोगो) बारिश के बाद होने वाली उर्वरता और समृद्धि के रूप में अपनी दया का स्वाद चखाए, और ताकि उसकी इच्छा से समुद्र में नावें चलें, और ताकि तुम समुद्र में व्यापार करके उसका अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों का शुक्रिया अदा करो, तो वह तुम्हें और अधिक नेमतें प्रदान करे।
(47) निश्चित रूप से हमने (ऐ रसूल) आपसे पहले कई रसूल उनकी जातियों की ओर भेजे।चुनाँचे वे उनके पास अपनी सच्चाई को दर्शाने वाले प्रमाणों और तर्कों के साथ आए। परंतु उन्होंने उसको झुठला दिया जो उनके रसूल उनके पाल लेकर आए थे। इसलिए हमने बुराई करने वालों से बदला लिया और उन्हें अपनी यातना से विनष्ट कर दिया, जबकि हमने रसूलों और उनपर विश्वास रखने वालों को विनाश से बचा लिया। मोमिनों को बचाना और उनकी मदद करना, एक अधिकार है जो हमने अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया है।
(48) महिमावान अल्लाह ही है, जो हवाओं को चलाता और भेजता है। फिर वे हवाएँ बादलों को उठाती और उन्हें स्थानांतरित करती हैं। फिर अल्लाह बादलों को आसमान में, कम या अधिक जैसे चाहता है, फैला देता है और उन्हें टुकड़े-टुकड़े बना देता है। फिर तुम (ऐ देखने वाले!) उन बादलों के बीच से बारिश को निकलते हुए देखते हो। फिर जब अल्लाह अपने बंदों में से जिसपर चाहता है, वर्षा बरसाता है, तो वे अपने ऊपर अल्लाह की उस बारिश बरसाने की दया से खुश हो जाते हैं, जिसके बाद धरती उनके और उनके जानवरों के लिए आवश्यक चीज़ें उगाती है।
(49) जबकि वे अल्लाह के उनपर वर्षा बरसाने से पहले निश्चित रूप से उसके उतरने से निराश हो चुके थे।
(50) अतः (ऐ रसूल) आप उस बारिश के प्रभावों को देखें, जिसे अल्लाह अपने बंदों के लिए दया के रूप में उतारता है कि अल्लाह किस तरह धरती को, उसके सूख जाने के बाद उसपर तरह-तरह के पौधे उगाकर, पुनर्जीवित कर देता है। निःसंदेह जिसने उस सूखी भूमि को पुनर्जीवित कर दिया, निश्चय वही मरे हुए लोगों को जीवित करके उठाने वाला है। और वह सब कुछ करने में सक्षम है, कोई चीज़ उसे विवश नहीं कर सकती।
(51) और अगर हम उनकी फसलों और पौधों पर कोई ऐसी हवा भेज दें, जो उन्हें बर्बाद कर दे, फिर वे अपनी हरी-भरी फसलों को पीली पड़ी हुई देखें, तो वे उन्हें देखने के बाद अल्लाह की पिछली नेमतों की, उनकी बहुतायत के बावजूद, नाशुक्री करने लगेंगे।
(52) जिस तरह आप मरे हुए लोगों को नहीं सुना सकते और न ही बहरों को सुना सकते हैं, जबकि वे आपसे यह सुनिश्चित करने के लिए दूर चले गए हैं कि उन्हें सुनाई न दे, तो उसी तरह आप उन लोगों का मार्गदर्शन नहीं कर सकते, जो मुँह फेरने और लाभ न उठाने के कारण, इन लोगों के समान हैं।
(53) आप सीधे रास्ते से भटके हुए को सत्य के मार्ग पर चलने की तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) नहीं दे सकते। आप लाभ उठाए जाने के तौर पर केवल उसी को सुना सकते हैं, जो हमारी आयतों पर ईमान रखता है; क्योंकि वही आपकी बातों से लाभान्वित होता है। तो वही हमारे आदेश का पालन करने वाले और उसके अधीन हैं।
(54) अल्लाह वह है, जिसने (ऐ लोगो!) तुम्हें एक तुच्छ पानी (नुत्फ़े) से पैदा किया। फिर उसने तुम्हारी बचपन की कमज़ोरी के बाद जवानी की शक्ति बनाई, फिर जवानी की शक्ति के बाद पुढ़ापे की कमज़ोरी बनाई। अल्लाह जो भी कमज़ोरी और शक्ति चाहता है, पैदा करता है। और वह हर चीज़ को जानता है, उससे कोई चीज़ छिपी नहीं है। वह सर्वशक्तिमान है, जिसे कोई चीज़ विवश नहीं कर सकती।
(55) क़ियामत के दिन अपराधी कसमें खाकर कहेंगे कि वे अपनी कब्रों में एक घड़ी से अधिक नहीं ठहरे। जिस तरह वे यह जानने से विचलित कर दिए गए कि वे अपनी क़ब्रों में कितना ठहरे, उसी तरह वे दुनिया में सत्य से फेर दिए जाते थे।
(56) जिन लोगों को अल्लाह ने ज्ञान और ईमान दिया जैसे अंबिया और फ़रिश्ते, वे कहेंगे : अल्लाह ने अपने पूर्व ज्ञान में जो लिखा था, उसके अनुसार तुम अपने सृजन के दिन से लेकर अपने पुनर्जीवन के इस दिन तक ठहरे हो, जिसे तुमने अस्वीकार कर दिया था। तो यह लोगों के अपनी कब्रों से उठाए जाने का दिन है। लेकिन तुम नहीं जानते थे कि दोबारा जीवित होकर उठना एक वास्तविकता है, इसलिए तुमने उसपर विश्वास नहीं किया।
(57) जिस दिन अल्लाह प्राणियों को हिसाब और बदला देने के लिए उठाएगा, उस दिन ज़ालिमों को उनके बनाए गए बहानों से लाभ नहीं होगा और न ही उनसे तौबा और अल्लाह की ओर एकाग्रता के द्वारा अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए कहा जाएगा। क्योंकि इसका समय बीत चुका होगा।
(58) हमने लोगों के लिए (उनका ध्यान रखते हुए) इस क़ुरआन में हर तरह के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। ताकि उनके लिए असत्य से सत्य स्पष्ट हो जाए। और (ऐ रसूल) अगर आप उनके पास अपने सच्चे रसूल होने का कोई प्रमाण भी लेकर आएँ, तो अल्लाह का इनकार करने वाले अवश्य कहेंगे : तुम जो कुछ लेकर आए हो, उसमें तुम झूठे हो।
(59) जिस तरह इन लोगों के दिलों पर मुहर लगा दिया है, जिनके पास यदि आप कोई निशानी लाएँ, तो वे उसपर विश्वास नहीं करते हैं, उसी तरह अल्लाह उन सभी लोगों के दिलों पर मुहर लगा देता है, जो यह नहीं जानते कि आप जो कुछ लेकर आए हैं, वह सत्य है।
(60) (ऐ रसूल) आप अपनी जाति के आपको झुठलाने पर सब्र से काम लें। निश्चित रूप से अल्लाह ने आपसे जो सहायता और प्रभुत्व प्रदान करने का वादा किया है, वह सच्चा है, उसमें कोई संदेह नहीं है। और वे लोग जो दोबारा जीवित कर उठाए जाने पर विश्वास नहीं रखते हैं, आपको जल्दी करने और सब्र छोड़ने पर न उभारें।