24 - सूरा अन्-नूर ()

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(1) यह एक सूरत है, जिसे हमने उतारा और इसके आदेशों पर अमल करने को अनिवार्य किया तथा इसमें स्पष्ट आयतें उतारी हैं; इस आशा में कि तुम उसके आदेशों को याद रखो और उनपर अमल करो।

(2) अविवाहित व्यभिचार करने वाली महिला और व्यभिचार करने वाले पुरुष, दोनें में से प्रत्येक को सौ कोड़े लगाओ। तथा अगर तुम अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते हो, तो उन दोनों के प्रति तुम कोई नरमी और दया न अपनाओ कि उनपर ह़द (दंड) ही लागू न करो या उसमें कमी कर दो। और उन दोनों पर ह़द (दंड) लागू करते समय ईमान वालों का एक गिरोह उपस्थित रहना चाहिए; ताकि उनकी सज़ा की खबर को खूब फैलाया जा सके और खुद उन्हें तथा अन्य लोगों को व्यभिचार से बाज़ रखा जा सके।

(3) व्यभिचार के घिनौनेपन को स्पष्ट करने के लि ए, अल्लाह ने यह उल्लेख किया है कि जो व्यक्ति व्यभिचार का आदी है, वह किसी अपनी ही जैसी व्यभिचार में लिप्त स्त्री अथवा बहुदेववादी महिला से, जो व्यभिचार से नहीं बचती, विवाह करना चाहेगा। हालाँकि बहुदेववादी महिला से निकाह करना जायज़ नहीं है। तथा जो महिला व्यभिचार की आदी है, वह अपने ही जैसे व्यभिचारी या बहुदेववादी पुरुष से, जो व्यभिचार से नहीं बचता, विवाह करना चाहेगी। जबकि बहुदेवादी पुरुष से उसका विवाह हराम (निषिद्ध) है। व्यभिचारिणी से विवाह करना और व्यभिचारी का निकाह कराना ईमान वालों के लिए हराम (निषिद्ध) कर दिया गया है।

(4) और जो लोग सच्चरित्रा स्त्रियों (तथा सच्चरित्र पुरुष भी इसी हुक्म में हैं) पर व्यभिचार का आरोप लगाएँ, फिर वे अपने इस आरोप पर चार गवाह हाज़िर न करें, तो (ऐ शासको!) उन्हें अस्सी कोड़े लगाओ और उनकी कोई गवाही कभी स्वीकार न करो। और वही लोग जो सच्चरित्रा स्त्रियों पर आरोप लगाते हैं, अल्लाह की आज्ञाकारिता से बाहर निकलने वाले हैं।

(5) परंतु जिन लोगों ने आरोप लगाने के बाद तौबा कर ली और अपने कर्म को सुधार लिया, तो निश्चय अल्लाह उनकी तौबा और उनकी गवाही को कबूल करेगा। निश्चय अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदो को क्षमा करने वाला, उनपर दया करने वाला है।

(6) वे पुरुष जो अपनी पत्नियों पर व्यभिचार का आरोप लगाएँ और उनके पास खुद के अलावा कोई गवाह न हों, जो उनके आरोप के सत्य होने की गवाही दें; तो उनमें से एक व्यक्ति अल्लाह की क़सम के साथ चार बार गवाही दे कि : निःसंदेह वह अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाने में निश्चय सच्चा है।

(7) फिर अपनी पाँचवीं गवाही में, वह खुद के अभिशाप (लानत) के योग्य होने की बददुआ करे, अगर वह उसपर आरोप लगाने में झूठा है।

(8) इस क़सम के बाद स्त्री व्यभिचार की सज़ा की हक़दार हो जाएगी। लेकिन यह बात उसकी सज़ा को हटा देगी कि वह अल्लाह की क़सम खाकर चार बार यह गवाही दे कि : निःसंदेह उसका पति उसपर आरोप लगाने में निश्चय झूठा है।

(9) फिर अपनी पाँचवीं गवाही में, वह अपने ऊपर अल्लाह के प्रकोप की बददुआ करेगी, यदि वह (व्यक्ति) उसपर आरोप लगाने में सच्चा है।

(10) (ऐ लोगो!) अगर तुमपर अल्लाह की कृपा और दया न होती और यह कि वह अपने तौबा करने वाले बंदों की तौबा को स्वीकार करने वाला है, तथा अपने प्रबंधन और शरीयत में पूर्ण हिकमत वाला है, तो तुम्हें जल्द ही तुम्हारे गुनाहों की सज़ा देता और तुम्हें अपमान का सामना करना पड़ता।

(11) निश्चय जो लोग झूठा आरोप (अर्थात् ईमान वालों की माँ आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा पर व्यभिचार का आरोप) मढ़कर लाए, वे (ऐ मोमिनो!) तुमसे ही संबंध रखने वाले एक समूह हैं। यह मत सोचो कि उन्होंने जो झूठ गढ़ा है, वह तुम्हारे लिए बुरा है। बल्कि वह तुम्हारे लिए अच्छा है, क्योंकि उसमें ईमान वालों के लिए सवाब (पुण्य) और जाँच-पड़ताल है, तथा इसके साथ ही मोमिनों की माँ आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की पवित्रता (दोष-मुक्त होने) की घोषणा है। जिस किसी ने यह आरोप लगाने में भाग लिया, उसे उसके कमाए हुए पाप के अनुसार बदला मिलेगा। और जिसने इसकी शुरुआत करके इसके बड़े हिस्से का भार उठाया, उसके लिए बहुत बड़ी यातना है। इससे अभिप्राय पाखंडी लोगों का प्रमुख अब्दुल्लाह बिन उबैय इब्ने सलूल है।

(12) जब मोमिन पुरुषों और मोमिन स्त्रियों ने यह भयंकर मिथ्यारोपण सुना, तो इसके निशाने पर आने वाले अपने मोमिन भाइयों के इससे सुरक्षित होने का गुमान क्यों न किया और यह क्यों न कहा : यह एक स्पष्ट झूठ है।

(13) ईमान वालों की माँ आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा पर आरोप लगाने वाले, अपने इस गंभीर झूठ पर चार गवाह क्यों नहीं लाए, जो उसके सत्य होने की गवाही देते, जिसकी उन्होंने उनकी ओर निस्बत की?! अगर वे उसपर चार गवाह नहीं लाए (और वे उन्हें हरगिज़ नहीं ला सकेंगे), तो वे अल्लाह के फैसले के अनुसार झूठे हैं।

(14) अगर तुम पर (ऐ ईमान वालो!) अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती कि उसने तुम्हें सज़ा देने में जल्दी नहीं की और तुममें से तौबा करने वालों की तौबा स्वीकार कर ली; तो निश्चय तुम्हारे ईमान वालों की माँ आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा पर झूठा आरोप मढ़ने के कारण तुमपर बहुत बड़ी यातना आ जाती।

(15) जब तुम इसे एक-दूसरे से वर्णन कर रहे थे और इसके झूठे होने के बावजूद अपने मुँह से इसे प्रसारित कर रहे थे; क्योंकि तुम्हें इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं था। और तुम यह समझ रहे थे कि यह एक साधारण बात है। हालाँकि वह अल्लाह के यहाँ एक बहुत बड़ी बात थी। क्योंकि वह झूठ और एक निर्दोष पर आरोप लगाने पर आधारित थी।

(16) जब तुमने यह झूठा आरोप सुना, तो क्यों नहीं कहा : हमारे लिए यह सही नहीं है कि हम इस घृणित बात को ज़बान पर लाएँ। ऐ हमारे पालनहार! हम तेरी पवित्रता बयान करते हैं। मोमिनों की माँ पर उनका लगाया हुआ यह आरोप बहुत बड़ा झूठ है।

(17) अल्लाह तुम्हें याद दिलाता और नसीहत करता है कि इस प्रकार का कार्य पुनः न करना और किसी पवित्र व्यक्ति पर व्यभिचार का आरोप न लगाना, अगर तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो।

(18) अल्लाह तुम्हारे लिए अपने आदेशों एवं उपदेशों पर आधारित आयतों को स्पष्ट करता है। तथा अल्लाह तुम्हारे कार्यों से पूरी तरह अवगत है। उससे उनमें से कुछ भी छिपा नहीं है और वह तुम्हें उनका बदला देगा। वह अपने प्रबंधन और शरीयत में हिकमत वाला है।

(19) जो लोग चाहते हैं कि मोमिनों के अंदर बुराइयाँ फैलें (जिनमें व्यभिचार का आरोप भी शामिल है), उनके लिए संसार में दर्दनाक यातना है, इस प्रकार कि उनपर व्यभिचार का आरोप लगाने की 'हद' लगाई जाएगी। और आख़िरत में उनके लिए आग की यातना है। अल्लाह उनके झूठ को और अपने बंदों के अंजाम को जानता है, तथा वह उनके हितों से (भी) अवगत है। और तुम इसे नहीं जानते।

(20) (ऐ झूठे आरोप में पड़ने वालो!) अगर तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती और यह बात न होती कि अल्लाह तुमपर अत्यंत मेहरबान और बड़ा दयावान् है, तो तुम्हें जल्द ही सज़ा दे देता।

(21) ऐ अल्लाह पर ईमान लाने और उसकी शरीयत पर अमल करने वाले लोगो! असत्य को सुशोभित करने में शैतान के मार्ग का अनुसरण न करो। और जो उसके मार्ग का अनुसरण करता है, तो वह बुरे कामों और बातों तथा शरीयत विरोधी चीज़ों का आदेश देता है। और अगर (ऐ ईमान वालो!) तुमपर अल्लाह का अनुग्रह न होता, तो तुममें से कोई भी कभी तौबा करके पवित्र न होता। परंतु अल्लाह जिसे चाहता है, उसकी तौबा क़बूल करके पवित्र करता है। और अल्लाह तुम्हारी बातों को सुनने वाला, तुम्हारे कर्मों को जानने वाला है। उससे उनमें से कुछ भी छिपा नहीं रहता। और वह तुम्हें उनका बदला देगा।

(22) तथा धर्म में प्रतिष्ठा और धन में विस्तार वाले लोग, अपने ज़रूरतमंद रिश्तेदारों को (जो कि गरीबी के शिकार हैं और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों में से हैं) उनके द्वारा किए गए पाप के कारण, आर्थिक सहायता न देने की क़सम न खाएँ। बल्कि उन्हें चाहिए कि अपने उन रिश्तेदारों को माफ़ कर दें और दरगुज़र कर जाएँ। क्या तुम यह पसंद नहीं करते हो कि अल्लाह तुम्हारे पापों को क्षमा कर दे, यदि तुम उनको माफ़ कर दो और जाने दो?! और निश्चय अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदो को क्षमा करने वाला, उनपर दया करने वाला है। इसलिए उसके बंदों को भी उसका अनुसरण करना चाहिए। यह आयत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में उतरी, जब उन्होंने मिसतह (रज़ियल्लाहु अन्हु) के आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) पर आरोप लगाने में शामिल होने की वजह से, उनपर खर्च न करने की क़सम खा ली थी।

(23) निश्चय जो लोग सच्चरित्रा तथा अश्लीलता से बेखबर भोली-भाली मोमिन स्त्रियों पर तोहमत लगाते हैं, वे दुनिया एवं आख़िरत में अल्लाह की दया से दूर कर दिए गए। और आखिरत में उनके लिए बड़ी यातना है।

(24) यह यातना उन्हें क़ियामत के दिन दी जाएगी। जिस दिन उनकी ज़बानें, उनके विरुद्ध, उन ग़लत बातों की गवाही देंगी, जो उन्होंने बोली थीं। तथा उनके हाथ और उनके पाँव उनके विरुद्ध उसकी गवाही देंगे जो वे किया करते थे।

(25) उस दिन अल्लाह उन्हें न्याय के साथ उनका पूरा-पूरा बदला देगा और वे जान लेंगे कि अल्लाह ही सत्य है। अतः उसके द्वारा जारी होने वाली हर खबर या वादा या धमकी, एक स्पष्ट सत्य है, जिसमें कोई संदेह नहीं।

(26) पुरुषों, महिलाओं, कार्यों और बातों में से जो भी अपवित्र है, वह उसी के लिए उपयुक्त और अनुकूल है, जो अपवित्र है। और इनमें से जो भी पवित्र है, वह उसी के लिए उपयुक्त और अनुकूल है, जो पवित्र है। ये पवित्र पुरुष और पवित्र स्त्रियाँ उससे बरी किए गए हैं, जो उनके बारे में अपवित्र पुरुष और अपवित्र स्त्रियाँ कहती हैं। उनके लिए अल्लाह की ओर से क्षमादान है, जिससे वह उनके गुनाह माफ़ कर देगा। तथा उनके लिए सम्मान वाली जीविका है, और वह जन्नत है।

(27) ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसकी शरीयत पर चलने वालो! अपने घरों के सिवा अन्य घरों में उस समय तक प्रवेश न करो, जब तक उसके निवासियों से प्रवेश की अनुमति न ले लो और उन्हें सलाम न कर लो। सलाम करते और अनुमति लेते समय इस तरह कहो : "अस्सलामु अलैकुम, क्या मै अंदर आ सकता हूँ?" यह अनुमति प्राप्त करना जिसका तुम्हें आदेश दिया गया है, अचानक प्रवेश करने से बेहतर है। ताकि तुम अनुमति लेने के इस आदेश को याद रखो और उसका पालन करो।

(28) अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ, तो तुम उनमें प्रवेश न करो, यहाँ तक कि जिसके पास अनुमति देने का अधिकार हो, वह तुम्हें उनमें प्रवेश करने की अनुमति दे दे। और अगर घर के मालिक तुम्हें लौट जाने को कहें, तो लौट जाओ और उसमें प्रवेश न करो। क्योंकि यह तुम्हारे लिए अल्लाह के निकट अधिक पवित्र है। और अल्लाह, तुम जो कुछ करते हो, उससे पूरी तरह अवगत है। तुम्हारा कुछ भी काम उससे छिपा नहीं है। और वह तुम्हें उसका बदला देगा।

(29) ऐसे सार्वजनिक घरों में बिना अनुमति के प्रवेश करने में तुमपर कोई पाप नहीं, जो किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं हैं, बल्कि सार्वजनिक उपयोग के लिए तैयार किए गए हैं, जैसे पुस्तकालयें और बाजारों में दुकानें। तथा तुम अपने कार्यों और अपनी स्थितियों में से जो छिपाते हो और जो ज़ाहिर करते हो, अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है। उनमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है और वह तुम्हें उनका बदला देगा।

(30) (ऐ रसूल!) आप ईमान वालों से कह दें कि वे अपनी निगाहों को उन चीज़ों की ओर देखने से रोक लें, जो उनके लिए हलाल नहीं हैं, जैसे कि (पराई) स्त्रियाँ और गुप्तांग (निजी अंग), और अपने गुप्तांगों की हराम में पड़ने से तथा उन्हें प्रकट करने से रक्षा करें। यह अल्लाह की हराम की हुई चीज़ों को देखने से बाज़ रहना और गुप्तांगों को संरक्षित करना उनके लिए अल्लाह के निकट अधिक पवित्र है। निःसंदेह अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है, जो वे करते हैं। उसमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है और वह उन्हें उनके कर्मों का बदला देगा।

(31) ईमान वाली स्त्रियों से कह दें कि जिन पर्दे की चीजों को देखना उनके लिए ह़लाल नहीं है, उनकी ओर देखने से अपनी निगाहों को बचाएँ। तथा व्यभिचार से दूर रहकर और खुद को परदे में रखकर अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार को अपरिचित व्यक्तियों के सामने ज़ाहिर न करें, सिवाय इसके कि उसमें से जो खुद से प्रकट हो जाए, जिसका छिपाना संभव न हो, जैसे कपड़े। और अपने बालों, चेहरों और गर्दनों को ढँकने के लिए अपने कपड़ों के ऊपरी हिस्से के खुले भाग पर अपनी ओढ़नियाँ (चादरें) डाल लिया करें। और अपने गुप्त श्रृंगार को किसी के सामने ज़ाहिर न करें, सिवाय अपने पतियों के, अथवा अपने पिताओं के, अथवा अपने पतियों के पिताओं के, अथवा अपने बेटों के, अथवा अपने पतियों के बेटों के, अथवा अपने भाइयों के, अथवा अपने भतीजों के, अथवा अपने भाँजों के, अथवा अपनी भरोसे के लायक़ स्त्रियों के, वह स्त्रियाँ मुसलमान हों या काफिर, अथवा उन दास-दासियों के, जिनकी वे मालिक हों, अथवा ऐसे अधीनस्थ पुरुषों के, जो स्त्रियों में किसी प्रकार की इच्छा न रखते हों, अथवा ऐसे छोटे बच्चों के, जो महिलाओं की छिपी बातों का ज्ञान न रखते हों। तथा औरतें धरती पर अपने पैर मारती हुई न चलें कि उनके छिपे हुए श्रृंगार जैसे पाज़ेब आदि का पता चल जाए। (ऐ मोमिनों!) तुम सब नज़र आदि के गुनाहों से अल्लाह के सामने तौबा करो, आशा है कि तुम अपनी अपेक्षित चीज़ को पाने में सफल हो जाओ और उस चीज़ से मुक्ति पा जाओ जिससे डरते हो।

(32) (ऐ ईमान वालो!) उन पुरुषों का विवाह कर दो, जिनकी पत्नियाँ नहीं हैं तथा उन आज़ाद महिलाओं का भी, जिनके पति नहीं हैं और अपने ईमान वाले दासों एवं दासियों का भी विवाह कर दो। यदि वे निर्धन हैं, तो अल्लाह अपने विशाल अनुग्रह से उन्हें धनी बना देगा। अल्लाह बड़ा जीविका दाता है। किसी को धनी बनाने से उसकी जीविका में कमी नहीं होती। वह अपने बंदों की स्थितियों से अवगत है।

(33) जो लोग अपनी गरीबी के कारण शादी करने में असमर्थ हैं, वे व्यभिचार से बचें, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें अपने विशाल अनुग्रह से समृद्ध कर दे। और जो दास अपने मालिकों से माल के बदले आज़ादी का अनुबंध करना चाहते हैं, उनके मालिकों को इसे स्वीकार कर लेना चाहिए, यदि वे उनके अनंदर अदा करने की क्षमता और धर्म में अच्छाई जानते हों। तथा उन्हें चाहिए कि अल्लाह के प्रदान किए हुए माल में से उन (दासों) को कुछ दें, इस प्रकार कि लिखा-पढ़ी के समय जो धन निर्धारित हुआ था, उसका कुछ भाग छोड़ दें। और माल की तलाश में अपने दासियों को व्यभिचार करने के लिए मजबूर न करो (जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उबैय ने अपनी दो दासियों के साथ किया था जबकि वे पवित्रता और व्यभिचार से दूर रहना चाहती थीं), ताकि तुम उनकी योनि की कमाई खाओ। और तुम में से जो व्यक्ति उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करेगा, तो अल्लाह उनके मजबूर किए जाने के बाद उन (दासियों) के पापों को क्षमा करने वाला, उनपर दया करने वाला है। क्योंकि वे मजबूर की गई हैं। और पाप उन्हें मजबूर करने वाले पर है।

(34) (ऐ लोगों!) हमने तुम्हारी ओर सच को झूठ से स्पष्ट करने वाली खुली आयतें उतारी हैं। और हमने तुम्हारे लिए तुमसे पहले गुज़रे हुए मोमिनों एवं काफिरों का उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। तथा हमने तुमपर एक उपदेश उतारा है, जिससे वे लोग उपदेश ग्रहण करते हैं, जो अपने पालनहार से, उसके आदेशों का पालन करके और उसकी मना की हुई बातों से बचकर, डरते हैं।

(35) अल्लाह आकाश और धरती का प्रकाश और उन दोनों में मौजूद सारी चीज़ों का मार्गदर्शन करने वाला है। मोमिन के हृदय में अल्लाह के प्रकाश की मिसाल, दीवार में एक ताक़ की तरह है, जिसमें एक चिराग़ है। वह चिराग़ एक चमकते हुए फानूस में है, जो मोती की तरह एक चमकदार तारा मालूम होता है। वह चिराग़ एक मुबारक पेड़ के तेल से जलाया जाता है, जो कि ज़ैतून का पेड़ है। उस पेड़ को सूरज से कोई चीज़ नहीं छिपाती है, न तो सुबह और न ही शाम को। उसका तेल इतना साफ़-सुथरा होता है कि मानो आग के छुए बिना ही जल उठेगा। तो फिर आग के छूने के बाद क्या हाल होगा?! चिराग़ का प्रकाश, फ़ानूस के प्रकाश पर है। यही हाल मोमिन व्यक्ति के दिल का होता है, जब उसके अंदर मार्गदर्शन का प्रकाश चमक उठे। अल्लाह अपने बंदों में से जिसे चाहता है, क़ुरआन का पालन करने का सामर्थ्य प्रदान करता है। तथा अल्लाह चीज़ों को उनके समान चीज़ों के द्वारा उदाहरण देकर स्पष्ट करता है। और अल्लाह हर चीज़ को जानने वाला है। उससे कोई चीज़ छिपी नहीं है।

(36) यह चिराग़ उन मस्जिदों में जलाया जाता है, जिनके स्थान एवं भवन को अल्लाह ने उच्च रखने का आदेश दिया है। उनमें अज़ान, ज़िक्र और नमाज़ के द्वारा उसका नाम याद किया जाता है। उनके अंदर अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए दिन की शुरुआत और उसके अंत में नमाज़ पढ़ते हैं।

(37) वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ख़रीद या बिक्री अल्लाह का ज़िक्र करने, संपूर्ण तरीके से नमाज़ अदा करने और ज़कात के हक़दारों को ज़कात देने से ग़ाफ़िल नहीं करती। वे क़ियामत के दिन से डरते हैं। वह दिन, जब लोगों के दिल यातना से मुक्ति की आशा और उससे भय के बीच डोल रहे होंगे और निगाहें इधर-उधर फिर रही होंगी कि उन्हें किधर जाना है।

(38) उन्होंने ऐसे कार्य किए, ताकि अल्लाह उन्हें उनके अच्छे कामों का (उत्तम) बदला दे, तथा अपने अनुग्रह से उनके प्रतिफल में और वृद्धि कर दे। अल्लाह जिसे चाहता है, उसके कर्मों के अनुसार गिने बिना जीविका देता है। बल्कि वह उनके कर्मों से कई गुना अधिक देता है।

(39) और जिन लोगों ने अल्लाह का इनकार किया, उनके किए हुए कर्मों का कोई प्रतिफल नहीं है। जिस तरह कि किसी निचली भूमि में नज़र आने वाला सराब (मरीचिका) होता है, जिसे प्यासा आदमी देखकर यह सोचता है कि वह पानी है। चुनाँचे वह उसकी ओर चल पड़ता है। यहाँ तक कि जब वहाँ आकर खड़ा होता है, तो वहाँ पानी बिलकुल नहीं पाता। इसी तरह, एक काफ़िर यह सोचता है कि उसके कर्मों से उसे लाभ होगा, यहाँ तक कि जब वह मर जाएगा और दोबारा उठाया जाएगा, तो वह उनका प्रतिफल नहीं पाएगा। और वह अपने रब को अपने समक्ष पाएगा। जो उसे उसके किए हुए कर्मों का पूरा-पूरा बदला देगा। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है।

(40) या उनके कर्म एक गहरे सागर में अँधेरों की तरह हैं, जिस (सागर) के ऊपर एक लहर हो, उस लहर के ऊपर एक और लहर हो, (तथा) उसके ऊपर बादल हो, जो तारों को ढाँप ले, जिनसे वह मार्ग पा सकता है। इस तरह, परत दर परत अंधेरे हों। इन अंधेरों में पड़ा हुआ इनसान अगर अपना हाथ निकाले, तो अँधेरे की तीव्रता के कारण शायद ही वह उसे देख सके। यही हाल काफ़िर का है। उसपर अज्ञानता, संदेह, भ्रम तथा हृदय पर मुहर के अँधेरे परत-दर-परत जमे हुए हैं। और जिसे अल्लाह गुमराही से निकालकर मार्गदर्शन और अपनी किताब का ज्ञान न प्रदान करे, तो उसके पास कोई मार्गदर्शन नहीं है, जिसके द्वारा वह मार्ग पा सके, और न ही कोई पुस्तक है, जिसके द्वारा वह प्रकाश प्राप्त कर सके।

(41) (ऐ रसूल!) क्या आप नहीं जानते कि आकाशों और धरती में जो भी प्राणी हैं, सब अल्लाह की पवित्रता बयान करते हैं, तथा पक्षी हवा में अपने पंख फैलाए उसकी पवित्रता का गान करते हैं। इन प्राणियों में से जो नमाज़ पढ़ते हैं, जैसे इनसान, उनकी नमाज़ को तथा इनमें से जो पवित्रता का गान करते हैं, जैसे पक्षी, उनके पवित्रता गान को अल्लाह ने जान लिया है। और अल्लाह उसे पूरी तरह जानने वाला है, जो वे करते हैं। उनके कार्यों में से कुछ भी उससे छिपा नहीं है।

(42) आकाशों और धरती का राज्य अकेले अल्लाह ही के लिए है। तथा क़ियामत के दिन हिसाब और बदले के लिए अकेले उसी की ओर लौटकर जाना है।

(43) (ऐ रसूल!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिर उसके विभिन्न भागों को एक-दूसरे से मिला देता है। फिर उसे जमाकर तह-ब-तह कर देता है। फिर तुम देखते हो कि बारिश बादल के अंदर से निकल रही है। और वह आकाश की दिशा से, उसमें घनीभूत बादलों से जो अपनी भव्यता में पहाड़ों जैसा दिखते हैं, कंकड़ जैसे पानी के जमे हुए टुकड़े (ओले) उतारता है, फिर उस ओले को अपने बंदों में से जिसपर चाहता है, उतारता है और उनमें से जिससे चाहता है, उसे फेर देता है। बादल की बिजली की चमक इतनी तेज़ होती है कि लगता है कि आँखों को उचक ले जाएगी।

(44) अल्लाह रात और दिन को लंबे और छोटे तथा आगे और पीछे करता रहता है। निश्चय अल्लाह के पालनहार होने के प्रमाणों पर आधारित इन उल्लिखित निशानियों में उन लोगों के लिए शिक्षा (उपदेश) है, जो अल्लाह की शक्ति और उसके एकत्व की समझ-बूझ रखने वाले हैं।

(45) अल्लाह ने धरती पर चलने वाले प्रत्येक जीवधारी को वीर्य से पैदा किया। चुनाँचे उनमें से कुछ अपने पेट के बल रेंगकर चलते हैं, जैसे साँप, और उनमें से कुछ दो पैरों पर चलते हैं, जैसे मनुष्य और पक्षी, तथा उनमें से कुछ चार पैरों पर चलते हैं, जैसे मवेशी। अल्लाह उनमें से जो चाहे, पैदा करता है, जो उसने उल्लेख किया है और जो उसने उल्लेख नहीं किया है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है, उसे कोई चीज़ विवश नहीं कर सकती।

(46) हमने मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर सत्य के मार्ग को दर्शाने वाली स्पष्ट आयतें उतारी हैं। और अल्लाह जिसको चाहता है, टेढ़ापन से रहित सीधे रास्ते पर चलने का सामर्थ्य प्रदान करता है। अंततः वह रास्ता उसे जन्नत में ले जाता है।

(47) मुनाफ़िक़ लोग कहते हैं : हम अल्लाह पर ईमान लाए और रसूल पर ईमान लाए, तथा हमने अल्लाह का आज्ञापालन किया और रसूल का आज्ञापालन किया। फिर उनमें से एक समूह मुँह फेर लेता है। चुनाँचे अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने और उनकी बात मानने का दावा करने के बाद, वे अल्लाह के मार्ग में जिहाद करने के आदेश में अल्लाह और उसके रसूल का पालन नहीं करते हैं। और ये अल्लाह और उसके रसूल के आज्ञापालन से मुँह फेरने वाले, मोमिन नहीं हैं, भले ही वे दावा करें कि वे मोमिन हैं।

(48) और जब इन मुनाफ़िक़ों को अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाया जाता है, ताकि रसूल उनके विवाद का निर्णय कर दें, तो अचानक वे अपने निफ़ाक़ के कारण आपके निर्णय से मुँह मोड़ने वाले होते हैं।

(49) और अगर वे जानते हैं कि अधिकार उनका है, और यह कि रसूल उनके पक्ष में फैसला करेंगे, तो आपके पास बड़े आज्ञाकारी बनकर आते हैं।

(50) क्या इन लोगों के दिलों में कोई अपरिहार्य रोग है, या उनको इसमें संदेह है कि आप अल्लाह के रसूल हैं, या उन्हें इस बात का डर है कि अल्लाह और उसके रसूल फैसले में उनपर अत्याचार करेंगे? यह उपर्युक्त में से किसी के कारण नहीं है। बल्कि, उनके आपके फ़ैसले से उपेक्षा करने और आपसे दुश्मनी के कारण, उनके दिलों ही में बीमारी की वजह से है।

(51) ईमान वालों की बात, जब वे अल्लाह की ओर और रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि वह उनके बीच निर्णय करें, केवल यह होती है कि वे कहते हैं : हमने उनकी बात सुनी और उनके आदेश का पालन किया। तथा इन गुणों से विशेषित लोग ही दुनिया और आख़िरत में सफल होने वाले हैं।

(52) जो अल्लाह का और उसके रसूल का आज्ञापालन करे, तथा उनके निर्णय को मान ले, और गुनाहों के परिणाम से भय रखे, और अल्लाह के आदेश का पालन करके और उसके निषेध से बचकर, उसकी यातना से डरे, तो केवल यही लोग दुनिया और आख़िरत की भलाइयों को प्राप्त कर सफल होने वाले हैं।

(53) मुनाफ़िक़ों ने अपनी सबसे मज़बूत क़समें खाईं, जितनी वे खा सकते थे : यदि आप उनको जिहाद के लिए निकलने को कहें, तो निश्चय वे अवश्य निकलेंगे। (ऐ रसूल!) आप उनसे कह दें : तुम क़समें मत खाओ। क्योंकि तुम्हारे झूठ का हाल मालूम है और तुम्हारा तथाकथित आज्ञापालन सर्वज्ञात है। तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उससे अवगत है। तुम्हारे कर्मों में से कुछ भी उससे छिपा नहीं रह सकता, चाहे तुम उन्हें कितना ही छिपा लो।

(54) (ऐ रसूल!) आप इन मुनाफ़िक़ों से कह दें कि तुम बाहर और भीतर दोनों तरह से अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो। अगर तुम उनके आज्ञापालन से मुँह फेरोगे, जिसका तुम्हें आदेश दिया गया है, तो रसूल का दायित्व केवल उस संदेश को पहुँचा देना है, जिसकी उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। तथा तुम्हारा दायित्व आज्ञापालन करना और रसूल के लाए हुए धर्म के अनुसार कार्य करना है। और अगर तुम उनकी बात मानकर उनके आदेशों का पालन करोगे और उनकी मना की हुई बातों से दूर रहोगे, तो सच्चा मार्ग प्राप्त कर लोगे। और रसूल का दायित्व केवल स्पष्ट रूप से पहुँचा देना है। उसका काम तुम्हें सही मार्ग पर लगा देना और उसपर मजबूर करना नहीं है।

(55) अल्लाह ने तुममें से ईमान वालों और सुकर्म करने वालों से वादा किया है कि वह उनके शत्रुओं के खिलाफ उनकी सहायता करेगा तथा उनको धरती में ख़लीफ़ा बनाएगा, जिस तरह कि उनसे पहले के ईमान वालों को धरती में ख़लीफ़ा बनाया था। और उनसे यह वादा किया है कि उनके उस धर्म को जिसे उनके लिए पसंद किया है (और वह इस्लाम धर्म है), धरती में प्रभुत्व एवं शक्ति प्रदान कर देगा। तथा उनसे यह भी वादा किया है कि उन्हें उनके भय के पश्चात् शांति प्रदान कर देगा। वे केवल मेरी ही इबादत करेंगे, मेरे साथ किसी को साझी नहीं बनाएँगे। और जिसने इन नेमतों के बाद कुफ़्र किया, तो वही लोग अल्लाह के आज्ञापालन से निकल जाने वाले हैं।

(56) संपूर्ण तरीक़े से नमाज़ अदा करो, अपने धन की ज़कात दो, और रसूल की आज्ञा का पालन करते हुए उस चीज़ को करो, जिसका उन्होंने आदेश दिया है और उस चीज़ को त्याग कर दो, जिससे उन्होंने मना किया है; इस आशा में कि तुम्हें अल्लाह की दया प्राप्त हो।

(57) (ऐ रसूल!) आप उन लोगों को जिन्होंने अल्लाह के साथ कुफ़्र किया, हरगिज़ यह न समझें कि वे मुझसे बच निकलेंगे, यदि मैं उन्हें यातना से पीड़ित करना चाहूँ। और क़ियामत के दिन उनका ठिकाना जहन्नम है। और निश्चय उन लोगों का ठिकाना बहुत बुरा है, जिनका ठिकाना जहन्नम होगा।

(58) ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसकी शरीयत पर अमल करने वालो! तुम्हारे ग़ुलाम, तुम्हारी लौंडियाँ और आज़ाद बच्चे, जो युवावस्था को न पहुँचे हों, तुमसे तीन समयों में अनुमति माँगें; फ़ज्र की नमाज़ से पहले, जो कि सोने के कपड़ों को उतारकर जागने के कपड़े पहनने का समय होता है, और दोपहर के समय, जब क़ैलूला के लिए तुम अपने कपड़े उतारते हो, और इशा की नमाज़ के बाद; क्योंकि यह तुम्हारे सोने तथा जागने के कपड़े उतारकर सोने के कपड़े पहनने का समय है। ये तीन समय, तुम्हारे लिए पर्दे के समय हैं। इन समयों में वे तुम्हारे पास तुम्हारी अनुमति के बिना नहीं आ सकते। इनके सिवा अन्य समयों में उनके बिना अनुमति लेकर आने में, न तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। वे तुम्हारे पास बहुत चक्कर लगाने वाले हैं, तुम एक-दूसरे के पास आते-जाते रहते हो। इसलिए उन्हें हर समय बिना अनुमति के प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है। जिस तरह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनुमति लेने के नियमों को खोलकर बयान किया है, उसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए उन आयतों को खोलकर बयान करता है, जो तुम्हारे लिए उसके निर्धारित किए हुए नियमों को दर्शाती हैं। तथा अल्लाह अपने बंदों के हितों को भली-भाँति जानता है, उनके लिए जो नियम निर्धारित करता है, उसमें पूर्ण हिकमत वाला है।

(59) और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ, तो उन्हें उन सभी समयों में घरों में प्रवेश करने के लिए अनुमति माँगनी चाहिए, जैसा कि पहले वयस्कों के बारे में बताया गया है। जिस तरह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनुमति लेने के प्रावधान को खोलकर बयान किया है, उसी तरह अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को खोलकर बयान करता है। तथा अल्लाह अपने बंदों के हितों को भली-भाँति जानने वाला, जो कुछ उनके लिए नियम निर्धारित करता है, उसमें पूर्ण हिकमत वाला है।

(60) वे वृद्ध महिलाएँ जो अपने बुढ़ापे के कारण मासिक धर्म और गर्भावस्था से रहित होकर बैठ चुकी हैं, जो कि शादी की इच्छा नहीं रखती हैं, यदि वे अपने कुछ कपड़े, जैसे चादर और चेहरे का नकाब, उतारकर रख देती हैं, तो उनपर कोई गुनाह नहीं है। लेकिन शर्त यह है कि छिपी हुई ज़ीनत को ज़ाहिर न करें, जिसे छिपाने का आदेश दिया गया है। फिर भी उन कपड़ों को उतारने से बचना ही उनके हक़ में बेहतर है, ताकि पर्दा और पाक-दामनी का अधिक ख़याल रखा जा सके। अल्लाह तुम्हारी बातों को सुनने वाला, तुम्हारे कर्मों को जानने वाला है। उससे इनमें से कोई चीज़ छिप नहीं सकती और वह तुम्हें इनका बदला देगा।

(61) उस अंधे पर कोई पाप नहीं जिसने अपनी दृष्टि खो दी हो, न तो लंगड़े पर कोई पाप है, और न बीमार ही पर कोई पाप है; अगर ये लोग कोई ऐसा शरई कार्य छोड़ दें, जिसे अंजाम देने में वे सक्षम न हों, जैसे अल्लाह के मार्ग में जिहाद करना। तथा (ऐ मोमिनो!) तुमपर अपने घरों से खाने में कोई पाप नहीं है, जिसमें तुम्हारे बच्चों के घर भी शामिल हैं। और न ही तुम्हारे पिताओं, या तुम्हारी माताओं, या तुम्हारे भाइयों, या तुम्हारी बहनों, या तुम्हारे चाचाओं, या तुम्हारी फूफियों, या तुम्हारे मामाओं, या तुम्हारी ख़ालाओं के घरों से खाने में कोई गुनाह है, या उन घरों से जिनके संरक्षण की तुम्हें ज़िम्मेदारी सौंपी गई हो, जैसे बाग़ का चौकीदार। तथा अपने दोस्त के घरों से खाने में कोई गुनाह नहीं है, क्योंकि वह आमतौर पर इससे प्रसन्न होता है। तुमपर कोई गुनाह नहीं है कि सब एक साथ मिलकर खाओ या अलग-अलग। फिर जब तुम उपर्युक्त घरों में या उनके सिवा अन्य घरों में प्रवेश करो, तो उनमें मौजूद लोगों को यह कहकर सलाम करो : السلام عليكم (तुमपर शांति हो)। अगर उनमें कोई न हो, तो अपने आप को यह कहकर सलाम करो : السلام علينا وعلى عباد الله الصالحين (हमपर और अल्लाह के सत्कर्मी बंदों पर शांति हो)। यह अल्लाह की ओर से बरकत वाला सलाम है, जिसे उसने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है, क्योंकि यह तुम्हारे बीच प्रेम और स्नेह को फैलाता है। यह पवित्र (अच्छा) है, इससे सुनने वाले की आत्मा प्रसन्न होती है। इस सूरत में उल्लिखित इस स्पष्टीकरण ही की तरह अल्लाह आयतों को स्पष्ट करता करता है, ताकि तुम उन्हें समझो और उनमें जो कुछ है, उसके अनुसार कार्य करो।

(62) अपने ईमान में सच्चे मोमिन वही लोग हैं, जो अल्लाह पर ईमान लाए और उसके रसूल पर ईमान लाए, और जब वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ किसी ऐसे काम में हों, जो उन्हें मुसलमानों के हित के लिए एकजुट करता हो, तो उस समय तक वापस नहीं होते, जब तक आपसे वापसी की अनुमति न ले लें। निःसंदेह जो लोग (ऐ रसूल!) आपसे लौटते समय अनुमति माँगते हैं, वही लोग वास्तव में अल्लाह पर ईमान रखते हैं और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं। अतः जब वे अपने हित के किसी काम के लिए आपसे अनुमति माँगें, तो आप उनमें से जिसे अनुमति देना चाहें, अनुमति दें। और उनके गुनाहों के लिए (अल्लाह से) क्षमा याचना करें। निःसंदेह अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों के पापों को क्षमा करने वाला, उनपर दया करने वाला है।

(63) (ऐ ईमान वालो!) अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सम्मान करो। इसलिए जब आपको बुलाओ, तो आपके नाम से न बुलाओ, जैसे यह न कहो : ऐ मुहम्मद! इसी तरह आपके बाप के नाम से भी न बुलाओ, जैसे यह न कहो : ऐ अब्दुल्लाह के बेटे! जैसा कि तुम आपस में एक-दूसरे के साथ करते हो। बल्कि इस तरह कहो : ऐ अल्लाह के रसूल!, ऐ अल्लाह के नबी!, और जब वह तुम्हें किसी सामान्य कार्य के लिए बुलाएँ, तो तुम उनके बुलाने को आपस में एक-दूसरे को किसी महत्वहीन काम के लिए बुलाने की तरह न समझो। बल्कि उसका जवाब देने में जल्दी करो। अल्लाह उन लोगों को अच्छी तरह जानता है, जो तुममें से बिना अनुमति के चुपके से निकल जाते हैं। अतः उन लोगों को डरना चाहिए जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेश का उल्लंघन करते हैं कि अल्लाह उन्हें किसी विपत्ति और परीक्षण से पीड़ित न कर दे, या उन्हें दर्दनाक यातना से पीड़ित न कर दे, जिसे वे सहन न कर सकें।

(64) सुन लो! आकाशों और धरती में जो कुछ है, सबका पैदा करने वाला, मालिक और प्रबंध करने वाला अकेला अल्लाह है। (ऐ लोगो!) वह तुम्हारी स्थितियों को जानता है, उनमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं रहता। तथा क़ियामत के दिन (जब वे मृत्यु के बाद दोबारा जीवित होकर अल्लाह के पास लौटेंगे), तो वह उन्हें दुनिया में उनके किए हुए कार्यों से सूचित कर देगा। और अल्लाह सब कुछ जानता है। आकाशों में या धरती पर कुछ भी उससे छिपा नहीं है।