(1) यहूदियों, ईसाइयों और मुश्रिकों में से जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कुफ़्र पर अपनी सर्वसम्मति और एकजुटता से हटने वाले नहीं थे, जब तक कि उनके पास एक स्पष्ट प्रमाण और एक स्पष्ट तर्क न आ जाए।
(2) यह स्पष्ट प्रमाण और स्पष्ट तर्क अल्लाह का भेजा हुआ एक रसूल है, जो ऐसे पवित्र सहीफ़ों को पढ़कर सुनाता है, जिन्हें अल्लाह के पाक बंदे ही छूते हैं।
(3) उन सहीफ़ों में सच्ची ख़बरें और ठीक आदेश अंकित हैं, जो लोगों का उस चीज़ की ओर मार्गदर्शन करते हैं जिसमें उनकी भलाई और हिदायत है।
(4) यहूदी जिन्हें तौरात दिया गया था और ईसाई जिन्हें इंजील दिया गया था, वे अल्लाह के उनकी ओर अपने नबी को भेजने के बाद ही अलग हुए थे। चुनाँचे उनमें से कुछ ने इस्लाम धर्म अपना लिया और उनमें से कुछ अपने नबी की सच्चाई जानते हुए भी अपने कुफ़्र पर क़ायम रहे।
(5) यहूदियों और ईसाइयों का अपराध और हठ इस बात से प्रकट होता है कि उन्हें इस क़ुरआन में उन्हीं बातों का आदेश दिया गया, जिनका आदेश उन्हें उनकी किताबों में दिया गया था, जैसे केवल एक अल्लाह की इबादत करना, शिर्क से बचना, नमाज़ पढ़ना और ज़कात अदा करना। अतः उन्हें जिस चीज़ का आदेश दिया गया है, वही सीधा धर्म है, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है।
(6) निश्चय (यहूदियों, ईसाइयों और मुश्रिकों में से) जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे क़ियामत के दिन जहन्नम में दाखिल होंगे और हमेशा के लिए उसी में रहेंगे। वही लोग सबसे बुरे प्राणी हैं, क्योंकि उन्होंने अल्लाह का इनकार किया और उसके रसूल को झुठलाया।
(7) जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कार्य किए, वही लोग सबसे अच्छे प्राणी हैं।
(8) उनका बदला, उनके रब के पास ऐसे बाग़ हैं, जिनके महलों और पेड़ों के नीचे से नहरें बहती हैं। वे उसमें हमेशा के लिए रहेंगे। अल्लाह उनके उसपर ईमान लाने और उसकी आज्ञा मानने के कारण उनसे खुश हुआ और वे उसकी दया को पाकर उससे खुश हुए। यह दया उसे प्राप्त होती है जो अपने पालनहार से डरता है, इसलिए उसकी आज्ञा का पालन करता है और उसके निषेध से बचता है।