44 - सूरा अद्-दुख़ान ()

|

(1) {हा, मीम।} सूरतुल-बक़रा की शुरुआत में इस प्रकार के अक्षरों के बारे में बात गुज़र चुकी है।

(2) अल्लाह ने सत्य का मार्ग दर्शाने वाले क़ुरआन की क़सम खाई है।

(3) निःसंदेह हमने क़ुरआन को लैलतुल-क़द्र (सम्मानित रात) में उतारा है, जो बहुत अच्छाइयों वाली रात है। हम इस क़ुरआन के माध्यम से डराने वाले हैं।

(4) इसी रात में आजीविका और मृत्यु (नियत समय) इत्यादि से संबंधित उस साल घटित होने वाले सभी सुदृढ़ मामलों का फैसला किया जाता है।

(5) हम प्रत्येक सुदृढ़ मामले का फैसला अपनी ओर से करते हैं। निःसंदेह हम ही रसूलों को भेजने वाले हैं।

(6) हम रसूलों को (ऐ रसूल!) आपके पालनहार की ओर से, उन लोगों पर दया के रूप में भेजते हैं, जिनकी ओर उन्हें भेजा जाता है। निःसंदेह वह महिमावान अल्लाह अपने बंदों की बातों को सुनने वाला, उनके कामों और इरादों को जानने वाला है। इनमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है।

(7) वह आकाशों का पालनहार, धरती का पालनहार और उन दोनों के बीच की चीज़ों का पालनहार है। यदि तुम इसपर विश्वास करने वाले हो, तो मेरे रसूल पर ईमान लाओ।

(8) उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं। वही जीवित करता और मारता है। उसके सिवा कोई जीवन तथा मृत्यु देने वाला नहीं है। वही तुम्हारा पालनहार तथा तुम्हारे पहले बाप-दादाओं का पालनहार है।

(9) ये मुश्रिक उसपर विश्वास करने वाले नहीं हैं, बल्कि वे उसके बारे में संदेह में पड़े हुए हैं और वे जिस झूठ पर क़ायम हैं उसके कारण उससे ग़ाफ़िल हैं।

(10) तो (ऐ रसूल!) आप अपनी जाति पर जल्द ही आने वाली यातना की प्रतीक्षा करें, जो उस दिन आएगी, जिस दिन आकाश स्पष्ट धुएँ के साथ आएगा, जिसे वे गंभीर भूख के कारण अपनी आँखों से देख रहे होंगे।

(11) वह यातना आपकी पूरी जाति को अपनी चपेट में ले लेगी और उनसे कहा जाएगा : यह यातना जो तुम्हें पहुँची है, एक दर्दनाक यातना है।

(12) तो वे अपने पालनहार से गिड़गिड़ाते हुए कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमसे उस अज़ाब को दूर कर दे, जिसे तूने हमपर भेजा है। अगर तूने उसे हमसे दूर कर दिया, तो हम तुझपर और तेरे रसूल पर ईमान ले आएँगे।

(13) उनके लिए नसीहत हासिल करने और पश्चाताप कर अपने पालनहार की ओर लौटने का अवसर अब कहाँ रहा, जबकि उनके पास एक स्पष्ट संदेश वाला रसूल आ चुका है और वे उसकी सच्चाई और अमानतदारी से भी अवगत हैं?!

(14) फिर उन्होंने उस पर विश्वास करने से मुँह फेर लिया और उन्होंने उसके बारे में कहा : वह एक सिखाया हुआ व्यक्ति है, जिसे कोई दूसरा सिखाता है, वह संदेशवाहक नहीं है। तथा उन्होंने उसके बारे में कहा कि : वह पागल है।

(15) जब हम तुम पर से यातना को थोड़ा टाल देंगे, तो तुम अपने कुफ़्र और झुठलाने के रवैये की ओर लौट जाओगे।

(16) (ऐ रसूल!) उनके लिए उस दिन की प्रतीक्षा करें, जब हम बद्र के दिन आपकी जाति के काफ़िरों की बड़ी पकड़ करेंगे। निश्चय ही हम उनसे, उनके अल्लाह के साथ कुफ़्र करने और उसके रसूल को झुठलाने के कारण, बदला लेने वाले हैं।

(17) निश्चय ही हमने उनसे पहले फ़िरऔन की जाति को आज़माया और उनके पास अल्लाह की ओर से एक सम्मानित रसूल आया, जिसने उन्हें अल्लाह के एकेश्वरवाद (अल्लाह को एकमात्र पूज्य मानने) और उसकी इबादत की ओर आमंत्रित किया। और वह मूसा अलैहिस्सलाम हैं।

(18) मूसा ने फ़िरऔन और उसके लोगों से कहा : बनी इसराईल को मेरे लिए छोड़ दो। क्योंकि वे अल्लाह के बंदे हैं। तुम्हें उन्हें दास बनाने का कोई अधिकार नहीं है। मैं तुम्हारे लिए अल्लाह की ओर से एक रसूल बनाकर भेजा गया हूँ। उस बात के प्रति विश्वसनीय हूँ, जिसे उसने मुझे तुमको पहुँचाने का आदेश दिया है, मैं उसमें कुछ कमी या वृद्धि नहीं करता हूँ।

(19) और तुम लोग अल्लाह की इबादत छोड़कर और उसके बंदों पर आधिपत्य जमाकर, उसके सामने घमंड मत करो। निश्चय मैं तुम्हारे पास स्पष्ट प्रमाण लेकर आया हूँ।

(20) मैंने अपने पालनहार तथा तुम्हारे पालनहार की शरण ली है, इस बात से कि तुम पत्थर मार-मारकर मेरी हत्या कर डालो।

(21) और अगर तुम मेरे लाए हुए संदेश पर विश्वास नहीं करते, तो मुझसे अलग रहो और किसी बुराई के साथ मेरे निकट न आओ।

(22) अंततः मूसा अलैहिस्सलाम ने अपने पालनहार से प्रार्थना की : ये लोग - अर्थात् फ़िरऔन और उसके प्रमुख - अपराधी हैं, जो जल्द सज़ा दिए जाने के पात्र हैं।

(23) तब अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को अपनी जाति के लोगों को लेकर रातों-रात निकल जाने का आदेश दिया और उन्हें यह भी बता दिया कि फ़िरऔन और उसकी जाति के लोग उनका पीछा करेंगे।

(24) तथा उन्हें आदेश दिया कि जब वह और बनी इसराईल समुद्र पार कर लें, तो उसे उसी तरह स्थिर छोड़ दें, जैसा कि वह था। निःसंदेह फ़िरऔन और उसके सैनिक समुद्र में डूबकर विनष्ट होने वाले हैं।

(25) फ़िरऔन और उसकी जाति के लोग अपने पीछे कितने ही बाग़ और बहते हुए स्रोत छोड़ गए!

(26) तथा वे अपने पीछे कितनी ही खेतियाँ तथा अच्छी सभाएँ छोड़ गए!

(27) और वे अपने पीछे कितनी ही सुख-सामग्रियाँ छोड़ गए, जिनका वे आनंद ले रहे थे।

(28) उनके साथ ऐसा ही हुआ, जिसका तुमसे वर्णन किया गया है। और हमने उनके बाग़ों, जल स्रोतों, खेतियों और घरों का वारिस अन्य लोगों अर्थात बनी इसराईल को बना दिया।

(29) जब फ़िरऔन तथा उसकी जाति के लोग डूब गए, तो उनपर न तो आकाश और धरती ने विलाप किया और न उन्हें तौबा करने की मोहलत दी गई।

(30) वस्तुतः हमने बनी इसराईल को अपमानजनक यातना से बचा लिया। क्योंकि फ़िरऔन और उसकी जाति के लोग उनके बेटों को मार डालते थे और उनकी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे।

(31) हमने उन्हें फ़िरऔन के उत्पीड़न से बचा लिया। निश्चय वह अल्लाह के आदेश तथा उसके धर्म का उल्लंघन करने वालों में से एक घमंडी व्यक्ति था।

(32) तथा हमने बनी इसराईल को अपने ज्ञान के आधार पर उनके समय के लोगों पर चुन लिया, उनके नबियों की अधिकता के कारण।

(33) और हमने उन्हें मूसा अलैहिस्सलाम के समर्थन में ऐसे प्रमाण और सबूत दिए, जिसमें उनके लिए स्पष्ट अनुग्रह थी, जैसे कि मन्न और सलवा इत्यादि।

(34) निश्चय ये झुठलाने वाले मुश्रिक मरणोपरांत पुनर्जीवित किए जाने का इनकार करते हुए कहते हैं :

(35) यह केवल हमारी पहली मृत्यु है, इसके बाद कोई जीवन नहीं है। तथा हम इस मृत्यु के बाद पुनर्जीवित नहीं किए जाएँगे।

(36) तो (ऐ मुहम्मद!) तुम और तुम्हारे साथ मौजूद तुम्हारे अनुयायी, हमारे उन बाप-दादाओं को जिनकी मृत्यु हो चुकी है, जीवित करके ले आओ, यदि तुम अपने इस दावे में सच्चे हो कि अल्लाह मरे हुए लोगों को हिसाब और बदले के लिए पुनः जीवित करके उठाएगा।

(37) क्या (ऐ रसूल!) आपको झुठलाने वाले ये मुश्रिक शक्ति और ताकत में बेहतर हैं या तुब्बा' समुदाय और वे लोग जो उनसे पहले थे, जैसे आद और समूद। हमने उन सभी को नष्ट कर दिया। निःसंदेह वे अपराधी थे।

(38) हमने आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है, उन्हें खेल के रूप में नहीं बनाया।

(39) हमने आकाशों तथा धरती को एक बड़ी हिकमत के तहत पैदा किया है, लेकिन अधिकांश बहुदेववादियों को इसकी जानकारी नहीं है।

(40) निःसंदेह क़ियामत का दिन, जिस दिन अल्लाह बंदों के बीच निर्णय करेगा, सभी प्राणियों के लिए एक नियत समय है, जिसमें अल्लाह उन्हें इकट्ठा करेगा।

(41) जिस दिन कोई रिश्तेदार अपने रिश्तेदार को और कोई मित्र अपने मित्र को कुछ लाभ नहीं पहुँचाएगा, और न ही वे अल्लाह की यातना से बचाए जाएँगे। क्योंकि उस दिन सत्ता केवल अल्लाह के हाथ में होगी। कोई भी उसका दावा नहीं कर सकता।

(42) सिवाय उस व्यक्ति के, जिसपर अल्लाह दया करे, तो उसे अपने किए हुए अच्छे कामों का लाभ होगा। निःसंदेह अल्लाह वह प्रभुत्वशाली है, जिसे कोई परास्त नहीं कर सकता, जो अपने तौबा करने वाले बंदों पर अत्यंत दयालु है।

(43) निःसंदेह ज़क़्क़ूम (थूहड़) का पेड़, जिसे अल्लाह ने जहन्नम के पाताल में उगाया है।

(44) (वह) महा पाप वाले व्यक्ति अर्थात् काफ़िर का खाना है, जो उसके दुष्ट फल को खाएगा।

(45) यह फल काले तेल की तरह होगा, जो तीव्र गर्मी से उनके पेट में खौलता होगा।

(46) जिस तरह अत्यंत गर्म पानी खौलता है।

(47) और जहन्नम के पहरेदारों से कहा जाएगा : इसे पकड़ो, तथा सख़्ती एवं कठोरता के साथ घसीटकर जहन्नम के बीच तक ले जाओ।

(48) फिर इस यातना दिए जाने वाले व्यक्ति के सिर पर गरम पानी उंडेल दो। चुनाँचे यातना उसका पीछा नहीं छोड़ेगी।

(49) तथा उसे व्यंग्यपूर्वक कहा जाएगा : इस दर्दनाक यातना का स्वाद चख; निःसंदेह तू ही वह व्यक्ति है, जो बड़ा शक्तिशाली और अपनी जाति के अंदर बड़ा सम्मानित और आदरणीय था।

(50) यह वही यातना है, जिसके क़ियामत के दिन घटित होने के बारे में तुम संदेह करते थे। परंतु अब उसे अपनी आँखों से देखकर तुम्हारा संदेह दूर हो गया।

(51) निःसंदेह अपने पालनहार से, उसके आदेशों का पालन करके और उसकी मना की हुई चीज़ों से दूर रहकर, डरने वाले लोग, एक ऐसे निवास की जगह में होंगे, जहाँ हर बुराई और नुकसान से सुरक्षित होंगे।

(52) बाग़ों तथा बहते जल स्राेतों में होंगेl

(53) वे जन्नत में पतले और मोटे रेशम के कपड़े पहने हुए, एक-दूसरे के आमने-सामने बैठे होंगे। कोई किसी की पीठ नहीं देखेगा।

(54) जिस तरह हमने उन्हें उपर्युक्त चीज़ों से सम्मानित किया, उसी तरह हम जन्नत में उनका विवाह ऐसी सुंदर स्त्रियों से कर देंगे, जो बड़ी-बड़ी आँखों वाली होंगी और उन आँखों की सफेदी बहुत सफेद तथा उनका कालापन बहुत काला होगा।

(55) वे वहाँ अपने सेवकों से इच्छानुसार हर प्रकार के फल मंगवाएँगे। वे उन फलों के खत्म होने और उनके हानिकारक प्रभावों से सुरक्षित होंगे।

(56) उसी में सदैव रहेंगे। वे दुनिया के जीवन में होने वाली पहली मौत के सिवा, उसमें मौत का स्वाद नहीं चखेंगे। तथा उनका पालनहार उन्हें जहन्नम की यातना से सुरक्षित रखेगा।

(57) यह आपके पालनहार की ओर से उनपर अनुग्रह और उपकार के तौर पर होगा। यह उपर्युक्त - अर्थात उन्हें जन्नत में प्रवेश देना और जहन्नम से बचाना - ही बड़ी सफलता है, जिसकी बराबरी कोई सफलता नहीं कर सकती।

(58) हमने इस क़ुरआन को (ऐ रसूल!) आपकी अरबी भाषा में उतारकर सरल और आसान कर दिया है, ताकि वे नसीहत पकड़ें।

(59) अतः आप अपनी जीत और उनके विनाश की प्रतीक्षा करें। निःसंदेह वे (भी) आपके विनाश की प्रतीक्षा कर रहे हैं।