(1) अल्लाह पर ईमान लाने वाले और उसकी शरीयत के अनुसार काम करने वाले लोग अपनी अपेक्षित चीज़ को प्राप्त करके और भय वाली चीज़ों से मुक्ति पाकर सफल हो गए।
(2) जो अपनी नमाज़ में इस तरह विनम्रता अपनाने वाले होते हैं कि उसमें उनके शारीरिक अंग शांत होते हैं और उनके दिल व्यस्त करने वाली चीज़ों से खाली होते हैं।
(3) जो व्यर्थ, निरर्थक और अवज्ञा की बातों और कामों से उपेक्षा करने वाले हैं।
(4) जो लोग अपने आपको दोषों और मलिनताओं से शुद्ध करने वाले और ज़कात अदा करके अपने धन को पाक करने वाले हैं।
(5) जो अपने गुप्तांगों को व्यभिचार,समलैंगिकता और अश्लीलता से दूर रखकर उनकी रक्षा करने वाले हैं। चुनाँचे वे पवित्र और पाक-बाज़ हैं।
(6) परंतु अपनी पत्नियों या अपने स्वामित्व में आई हुई दासियों को छोड़कर। क्योंकि उनसे संभोग और अन्य चीजों के साथ लाभ उठाने में उनकी निंदा नहीं की जा सकती।
(7) जो व्यक्ति पत्नियों या अपने स्वामित्व में आई दासियों के अलावा के साथ आनंद (भोग) की तलाश करे, तो वह अल्लाह की सीमाओं को उल्लंघन करने वाला है। क्योंकि वह अल्लाह के हलाल ठहराए हुए आनंद (भोग) से परे जाकर हराम (भोग) की तलाश करने वाला है।
(8) और जो उस अमानत की, जो अल्लाह ने उन्हें सौंपी है या उसके बंदों ने उनके हवाले की है, तथा अपनी प्रतिज्ञाओं की रक्षा करने वाले हैं। उन्हें नष्ट नहीं करते हैं, बल्कि उन्हें पूरा करते हैं।
(9) जो लोग अपनी नामज़ों को उनके अरकान (स्तंभों) वाजिबात (अनिवार्य कार्यों) और मुस्तहब्बात (वांछित कार्यों) के साथ, उनके समय पर नियमित रूप से अदा करके, उनकी रक्षा करते हैं।
(10) इन गुणों से सुसज्जित लोग ही हैं, जो वारिस होंगे।
(11) जो सबसे ऊँची जन्नत के वारिस होंगे, वे उसमें हमेशा के लिए रहेंगे। उसमें उन्हें जो नेमतें प्राप्त होंगी, उनका सिलसिला कभी नहीं रुकेगा।
(12) निश्चय हमने मानव जाति के पिता आदम को मिट्टी से पैदा किया। उनकी मिट्टी पृथ्वी की मिट्टी के साथ मिश्रित पानी से निकाले गए सार से ली गई थी।
(13) फिर हमने उनकी संतान को वीर्य से पैदा किया, जो जन्म के समय तक माँ के गर्भाशय में सुरक्षित रहता है।
(14) फिर हमने उसके बाद माँ के गर्भाशय में सुरक्षित उस वीर्य को जमे हुए लाल रक्त का रूप दिया, फिर उस जमे हुए लाल रक्त को मांस के एक चबाए हुए टुकड़े के रूप में बनाया, फिर माँस के उस टुकड़े को कठोर हड्डियों का रूप दे दिया, फिर उन हड्डियों को माँस पहना दिया, फिर हमने उसमें प्राण डालकर और जीवन में लाकर एक और रचना बना दिया। तो बहुत बरकत वाला है अल्लाह, जो बनाने वालों में सबसे अच्छा है।
(15) फिर तुम (ऐ लोगो!) उन चरणों से गुज़रने के बाद, अपना निर्धारित समय समाप्त होने पर मर जाओगे।
(16) फिर तुम अपनी मृत्यु के बाद क़ियामत के दिन अपनी क़ब्रों से उठाए जाओगे, ताकि तुमसे तुम्हारे किए हुए काम का हिसाब लिया जाए।
(17) और हमने (ऐ लोगो!) तुम्हारे ऊपर, ऊपर-तले, सात आकाश बनाए, और हम कभी अपनी सृष्टि से अनजान नहीं, और न ही उसे भूले हैं।
(18) हमने आकाश से आवश्यकता अनुसार बारिश का पानी उतारा, न अधिक कि आपदा का रूप धारण कर ले, न कम कि ज़रूरत के लिए भी पर्याप्त न हो। फिर हमने उस पानी को धरती में ठहरा दिया, जिससे मनुष्य और पशु लाभ उठाते हैं। और निश्चय हम उसे ले जाने में भी सक्षम हैं। फिर तुम उससे लाभ न उठा सकोगे।
(19) फिर हमने उस पानी से तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनके अंदर विभिन्न आकार और रंगों के फल हैं, जैसे कि अंजीर, अनार और सेब। और तुम उन्हीं फलों में से खाते हो।
(20) और हमने उसी पानी से तुम्हारे लिए ज़ैतून का वृक्ष उगाया, जो सैना पर्वत के क्षेत्र में निकलता है। वह उस तेल को उगाता है, जो उसके फल से निकाला जाता है, जिसे शरीर पर लगाने और सालन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
(21) निःसंदेह (ऐ लोगो!) तुम्हारे लिए पशुओं (ऊँट, गाय और बकरी) में एक बड़ी शिक्षा एवं संकेत है, जिससे तुम अल्लाह की शक्ति और अपने ऊपर उसकी दयालुता का पता लगा सकते हो। हम तुम्हें इन पशुओं के पेटों में जो कुछ है, उससे शुद्ध दूध पिलाते हैं, जो पीने वालों के लिए सुस्वाद है। तथा तुम्हारे लिए इनमें और भी बहुत-से लाभ हैं जिनसे तुम लाभ उठाते हो, जैसे- सवारी, ऊन, रोवां और बाल। तथा तुम इनका माँस भी खाते हो।
(22) ज़मीन पर पशुओं में से ऊँट की और समुद्र में नावों (जहाज़ों) की तुम सवारी करते हो।
(23) हमने नूह अलैहिस्सलाम को उनकी जाति के पास, उनको अल्लाह की ओर बुलाने के लिए भेजा। तो नूह (अलैहिस्सलाम) ने उनसे कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अकेले अल्लाह की इबादत (पूजा) करो। उस पवित्र हस्ती के सिवा तुम्हारा कोई सत्य पूज्य नहीं। क्या तुम अल्लाह से, उसके आदेशों का पालन करके और उसके निषेधों से बचकर, डरते नहीं?!
(24) तो उनकी जाति के अशराफिया एवं प्रमुख लोगों ने, जिन्होंने अल्लाह का इनकार किया था, अपने अनुयायियों और आम लोगों से कहा : यह आदमी, जो रसूल होने का दावा करता है, तुम्हारे ही जैसा एक इनसान है, जो तुमपर सरदारी और संप्रभुता चाहता है। अगर अल्लाह हमारे पास कोई रसूल भेजना चाहता, तो अवश्य उसे फ़रिश्तों में से भेजता, उसे मनुष्यों में से नहीं भेजता। हमने अपने पहले के पूर्वजों में इस प्रकार की दावेदारी नहीं सुनी।
(25) यह एक ऐसा व्यक्ति है, जो पागलपन का शिकार है। यह क्या कह रहा है, उसके बारे में इसे खुद पता नहीं है। इसलिए जब तक इसका मामला लोगों के लिए स्पष्ट नहीं हो जाता है, तब तक इसके बारे में प्रतीक्षा करो।
(26) नूह अलैहिस्सलाम ने कहा : ऐ मेरे पालनहार! तू इन लोगों के विरुद्ध मेरी मदद कर, इस प्रकार कि तू इनके मुझे झुठलाने के कारण इनसे मेरा बदला ले।
(27) हमने नूह़ (अलैहिस्सलाम) को सूचना दी कि हमारी आँखों के सामने और हमारे बताए हुए तरीक़े के अनुसार नौका बना। फिर जब उन्हें नष्ट करने का हमारा आदेश आ जाए और पानी उस स्थान से ज़ोर से उबलने लगे, जिसमें रोटी पकाई जाती है, तो हर जीव में से एक नर और एक मादा उस (नौका) में प्रवेश कर ले, ताकि नस्ल चलती रहे, और अपने परिवार वालों को भी उसमें सवार कर ले, उसको छोड़कर जिसके विनाश की बात अल्लाह की ओर से पहले ही तय हो चुकी, जैसे कि तेरी पत्नी और तेरा पुत्र। और मुझसे उन लोगों की मुक्ति और उन्हें विनाश से बचाने के बारे में बात न करना, जिन्होंने कुफ़्र करके अत्याचार किया है। वे - अनिवार्य रूप से - बाढ़ के पानी में डूबने के द्वारा विनष्ट किए जाने वाले हैं।
(28) फिर जब तुम और तुम्हारे मुक्ति पाने वाले मोमिन साथी नाव पर सवार हो जाएँ, तो कहो : सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमें काफ़िर लोगों से बचाया और उन्हें नष्ट कर दिया।
(29) और यह दुआ करो कि ऐ मेरे पालनहार! तू मुझे भूमि पर बरकत वाला उतारना उतार और तू सब उतारने वालों से उत्तम है।
(30) नूह़ (अलैहिस्सलाम) और उनके मोमिन साथियों को बचाने और काफ़िरों को विनष्ट करने में इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि हम अपने रसूलों की मदद करने और उन्हें झुठलाने वालों को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। निश्चय हम नूह अलैहिस्सलाम की जाति की ओर नूह़ अलैहिल्लाम को भेजकर उनका परीक्षण करने वाले थे, ताकि काफ़िर से मोमिन और अवज्ञाकारी से आज्ञाकारी स्पष्ट हो जाए।
(31) फिर नूह अलैहिस्सलाम की जाति को विनष्ट करने के बाद हमने एक और समुदाय को पैदा किया।
(32) तो हमने उनके अंदर उन्हीं में से एक रसूल भेजा, ताकि उन्हें अल्लाह की ओर बुलाए। चुनाँचे उसने उनसे कहा : अकेले अल्लाह की इबादत करो। उस महिमावान के अलावा तुम्हारा कोई सत्य पूज्य नहीं। तो क्या तुम अल्लाह के निषेधों से बचकर और उसके आदेशों का पालन करके उससे नहीं डरते?
(33) उसकी जाति के अशराफिया एवं प्रमुख लोग, जिन्होंने अल्लाह का इनकार किया, आख़िरत तथा उसके इनाम और सज़ा को झुठलाया, और सांसारिक जीवन में हमारी दी हुई विस्तृत नेमतों ने उन्हें सरकश बना दिया था, उन्होंने अपने अनुयायियों और आम लोगों से कहा : यह तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान है। जो वही कुछ खाता और पीता है, जो कुछ तुम खाते और पीते हो। इसलिए इसे तुम्हारे ऊपर कोई विशिष्टता प्राप्त नहीं है कि वह तुम्हारी ओर रसूल बनाकर भेजा जाए।
(34) अगर तुमने अपने ही जैसे एक इनसान की बात मान ली, तो निश्चय तुम उस समय अवश्य घाटा उठाने वाले होगे, क्योंकि तुम्हें उसकी आज्ञाकारिता से कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए कि तुमने अपने देवताओं को छोड़कर, ऐसे व्यक्ति का अनुसरण किया, जिसको तुमपर कोई विशेषता प्राप्त नहीं है।
(35) क्या यह आदमी, जो रसूल होने का दावा करता है, तुमसे यह वादा करता है कि जब तुम मर गए और धूल तथा सड़ी-गली हड्डियाँ हो गए, तो तुम अपनी क़ब्रों से जीवित निकाले जाओगे? क्या यह समझ में आता है?!
(36) तुमसे अपनी मृत्यु तथा धूल और सड़ी-गली हड्डियाँ हो जाने के बाद, अपनी क़ब्रों से जीवित बाहर निकाले जाने का जो वादा किया जाता है, वह बहुत दूर कि बात है।
(37) जीवन तो केवल इस संसार का जीवन है। आख़िरत का जीवन कुछ भी नहीं है। हम में से जीवित लोग मरते हैं और वे फिर से जीवित नहीं होते। तथा अन्य लोग जन्म लेते हैं और वे जीवित रहते हैं। और हम अपनी मौत के बाद क़ियामत के दिन हिसाब के लिए निकाले जाने वाले नहीं हैं।
(38) यह जो तुम्हारे पास रसूल बनकर आने का दावा करता है, एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अपना यह दावा करके अल्लाह पर एक झूठ गढ़ा है। और हम इसकी बातों पर विश्वास करने वाले नहीं हैं।
(39) रसूल ने कहा : ऐ मेरे पालनहार! तू इन लोगों के विरुद्ध मेरी मदद कर, इस प्रकार कि तू इनके मुझे झुठलाने के कारण इनसे मेरा बदला ले।
(40) तो अल्लाह ने उनका उत्तर यह कहकर दिया : थोड़े समय के बाद, आपके लाए हुए संदेश को झुठलाने वाले ये लोग, अपने झुठलाने के रवैये पर पछताएँगे।
(41) चुनाँचे उन्हें एक भयंकर, घातक आवाज़ ने पकड़ लिया, क्योंकि वे अपने दुराग्रह के कारण यातना के हक़दार बन गए थे, तो उन्हें सैलाब की झाग की तरह विनष्ट कर दिया। तो विनाश है अत्याचारी लोगों के लिए।
(42) फिर हमने उनका विनाश करने के बाद, अन्य समुदायों और दूसरी जातियों को पैदा किया, जैसे- लूत अलैहिस्सलाम की जाति, शुऐब अलैहिस्सलाम की जाति और यूनुस अलैहिस्सलाम की जाति।
(43) इन झुठलाने वाले समुदायों में से कोई भी समुदाय अपने विनाश के आने के नियत समय से न आगे बढ़ता है, न उससे पीछे रहता है। चाहे उसके पास कितने भी संसाधन हों।
(44) फिर हम लगातार एक के बाद एक रसूल भेजते रहे। जब भी उनमें से किसी समुदाय के पास अल्लाह का भेजा हुआ रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। तो हम उन्हें एक-दूसरे के पीछे विनष्ट करते गए। फिर उनके बारे में लोगों की बातचीत के अलावा उनका कोई वजूद बाक़ी न रहा। तो विनाश हो, ऐसे लोगों का जो रसूलों की अपने पालनहार की ओर से लाई हुई बातों पर ईमान नहीं लाते।
(45) फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी नौ निशानियाँ (लाठी, चमकता हाथ, टिड्डी, जूँ, मेंढक, रक्त, बाढ़, अकाल और फलों की कमी) और एक स्पष्ट तर्क देकर भेजा।
(46) हमने उन दोनों को फ़िरऔन और उसकी जाति के अशराफिया के पास भेजा। तो उन्होंने अहंकार दिखाया और उन दोनों को मानने को तैयार नहीं हुए। और वे उत्पीड़न और अत्याचार के द्वारा लोगों को दबाए हुए थे।
(47) तो उन्होंने कहा : क्या हम अपने जैसे दो व्यक्तियों पर ईमान ले आएँ, जिनकी हमारे ऊपर कोई उत्कृष्टता नहीं है और उनके लोग (बनी इसराईल) हमारे आज्ञाकारी और अधीन हैं?!
(48) तो उन्होंने उन दोनों को उस चीज़ में झुठला दिया, जो वे दोनों अल्लाह के पास से लेकर आए थे। चुनाँचे वे उन्हें झुठलाने के कारण डुबोकर विनष्ट किए जाने वालो में से हो गए।
(49) और हमने मूसा को तौरात प्रदान की, इस उम्मीद पर कि उनकी जाति के लोग इससे सत्य का रास्ता पा जाएँ और उसके अनुसार कार्य करें।
(50) हमने ईसा बिन मरयम और उनकी माँ मरयम को अपनी शक्ति को दर्शाने वाली एक निशानी बनाया। क्योंकि मरयम के पेट में ईसा का गर्भ बिना बाप के ठहर गया। और हमने उन दोनों को एक ऊँचे स्थान पर शरण दी, जो समतल, रहने के योग्य था तथा उसमें ताजा बहता पानी था।
(51) ऐ रसूलो! जो खाने योग्य वस्तुएँ हमने तुम्हारे लिए हलाल की हैं, उनमें से खाओ और शरीयत के अनुसार अच्छे कार्य करो। तुम जो भी कार्य करते हो, मैं उससे अवगत हूँ। तुम्हारा कोई भी कार्य मुझसे छिपा नहीं है।
(52) (ऐ रसूलो!) निश्चय तुम्हारा यह धर्म एक ही धर्म है, जो इस्लाम है। और मैं ही तुम्हारा पालनहार हूँ, मेरे अलावा तुम्हारा कोई पालनहार नहीं। अतः मेरे आदेशों का पालन करके और मेरे निषेधों से बचकर, मुझसे डरो।
(53) फिर उनके बाद, उनके अनुयायी धर्म में बिखराव का शिकार होकर, कई समूहों और दलों में विभाजित हो गए। हर दल उसी पर खुश है, जिसे वह यह मानता है कि वही अल्लाह के निकट पसंदीदा धर्म है, तथा जो कुछ उसके अलावा के पास है, उसपर ध्यान नहीं देता है।
(54) अतः, (ऐ रसूल!) आप उन्हें, उनपर यातना के उतरने के समय तक, उसी अज्ञानता और भ्रांति की स्थिति में रहने दें, जिसमें वे पड़े हुए हैं।
(55) 55 - 56 - क्या अपनी स्थिति पर खुश रहने वाले इन दलों के लोग यह सोचते हैं कि हम उन्हें दुनिया के जीवन में जो धन और संतान दे रहे हैं, वह उन्हें जल्दी से प्रदान की जाने वाली भलाई है, जिसके वे हक़दार हैं?! मामला ऐसा नहीं है जो उन्होंने सोचा है।बल्कि वास्तविकता यह है कि हम उन्हें यह सब उन्हें ढील और मोहलत देने की नीति के तहत प्रदान कर रहे हैं। लेकिन उन्हें इसका एहसास नहीं हैं।
(56) 55 - 56 - क्या अपनी स्थिति पर खुश रहने वाले इन दलों के लोग यह सोचते हैं कि हम उन्हें दुनिया के जीवन में जो धन और संतान दे रहे हैं, वह उन्हें जल्दी से प्रदान की जाने वाली भलाई है, जिसके वे हक़दार हैं?! मामला ऐसा नहीं है जो उन्होंने सोचा है।बल्कि वास्तविकता यह है कि हम उन्हें यह सब उन्हें ढील और मोहलत देने की नीति के तहत प्रदान कर रहे हैं। लेकिन उन्हें इसका एहसास नहीं हैं।
(57) निःसंदेह जो लोग अपने ईमान और अच्छे कार्य करने के बावजूद अपने पालनहार से डरते रहते हैं।
(58) तथा जो अपने पालनहार की किताब की आयतों पर ईमान रखते हैं।
(59) और जो लोग अपने पालनहार को एकमात्र पूज्य मानते हैं, उसके साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाते।
(60) और वे लोग जो नेकी के कामों में भरपूर प्रयास करते हैं और अच्छे कार्यों के द्वारा अल्लाह की निकटता प्राप्त करते हैं, इसके बावजूद उन्हें यह भय लगा रहता है कि अल्लाह उनके दान और नेक कार्यों को उस समय अस्वीकार न कर दे, जब वे क़ियामत के दिन उसके पास लौटेंगे।
(61) इन महान गुणों के साथ विशेषित लोग ही अच्छे कर्मों की ओर जल्दी करते हैं और यही लोग उनकी तरफ़ आगे बढ़ने वाले हैं और उन्हें प्राप्त करने में अन्य लोगों से आगे बढ़ गए हैं।
(62) हम किसी प्राणी पर केवल उतने ही कार्य का भार डालते हैं, जितना वह कर सकता है। और हमारे पास एक किताब है, जिसमें हमने हर कार्यकर्ता के काम को अंकित कर रखा है। वह सत्य के साथ बोलती है, जो संदेह से परे है। और उनपर, उनकी नेकियों को घटाकर अथवा उनके गुनाहों को बढ़ाकर कोई अत्याचार नहीं किया जाएगा।
(63) बल्कि काफ़िरों के दिल इस सत्य के साथ बोलने वाली किताब और उस किताब से जो उनपर उतरी है, ग़फ़लत में पड़े हुए हैं। तथा जिस कुफ़्र पर वे क़ायम हैं, उसके सिवा भी उनके अन्य कार्य हैं, जिन्हें वे करने वाले हैं।
(64) यहाँ तक कि जब हम उनके उन लोगों को, जो दुनिया में समृद्ध थे, क़ियामत के दिन सज़ा देंगे, तो वे चीख-चीख कर मदद माँगेगे।
(65) तो उन्हें अल्लाह की दया से निराश करते हुए कहा जाएगा : आज मत चिल्लाओ और न मदद माँगो। क्योंकि आज तुम्हारा कोई मददगार नहीं है, जो तुम्हें अल्लाह की यातना से बचा सके।
(66) दुनिया में अल्लाह की किताब की आयतें तुम्हें सुनाई जाती थीं, तो तुम उन्हें सुनकर उनसे घृणा के कारण मुँह फेरते हुए पलट जाते थे।
(67) तुम यह कार्य लोगों पर बड़ा बनते हुए कर रहे थे, क्योंकि तुम्हारा यह भ्रम था कि तुम हरम वाले हो। हालाँकि वास्तव में तुम हरम वाले नहीं हो। क्योंकि हरम वाले तो वे लोग हैं, जो अल्लाह से डरने वाले हैं। तथा तुम हरम के आस पास रात में बुरी बातें करते हो। अतः तुम उसकी पवित्रता का सम्मान नहीं करते।
(68) क्या इन अनेकेश्वरवादियों ने अल्लाह के उतारे हुए क़ुरआन पर विचार नहीं किया कि उसप ईमान लाते और उसके अनुसार कार्य करते, या क्या उनके पास कोई ऐसी चीज़ आई है, जो उनसे पहले उनके पूर्वजों के पास नहीं आई, इसलिए वे इससे दूर हो गए और इसका इनकार कर दिया?!
(69) या उन्होंने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नहीं पहचाना, जिन्हें अल्लाह ने उनके पास रसूल बनाकर भेजा। इस कारण वे उनका इनकार कर रहे हैं?! निश्चित रूप से वे उन्हें जानते थे तथा उनकी सच्चाई और अमानतदारी को भी जानते थे।
(70) बल्कि वे कहते हैं : वह पागल है। निश्चय उन्होंने झूठ बोला। बल्कि वह उनके पास अल्लाह की ओर से सत्य लेकर आए हैं, जिसके अल्लाह की ओर से होने में कोई संदेह नहीं है। जबकि उनमें से अधिकांश लोग अपनी ईर्ष्या और अपने झूठ के लिए कट्टरता (हठ) के कारण, सत्य को नापसंद करने वाले, उससे नफ़रत करने वाले हैं।
(71) यदि अल्लाह चीज़ों का संचालन और उनका प्रबंध उनके मन की इच्छाओं के अनुसार करने लगे, तो आकाशों और धरती की व्यवस्था बिगड़ जाए और उनमें जो भी मौजूद हैं सब बिगाड़ के शिकार हो जाएँ। क्योंकि वे चीजों के परिणामों, तथा सही और भ्रष्ट उपाय (प्रबंधन) से अनजान हैं। बल्कि, हम उनके पास वह क़ुरआन लेकर आए हैं, जिसमें उनकी प्रतिष्ठा और सम्मान है, तो वे इससे मुँह मोड़ने वाले हैं।
(72) (ऐ रसूल!) क्या आपने उस (धर्म) पर जो आप इन लोगों के पास लेकर आए हैं, इनसे कोई पारिश्रमिक माँगा है, जिसके कारण वे निमंत्रण को अस्वीकार कर रहे हैं? यह तो आपके द्वारा नहीं हुआ है। क्योंकि आपके रब का सवाब और उसका बदला, इनके और इनके अलावा लोगों के बदले (पारिश्रमिक) से बेहतर है। और वह - महिमावान् - सब रोज़ी देने वालों से बेहतर है।
(73) तथा निश्चय (ऐ रसूल!) आप इनको और इनके अलावा लोगों को एक सीधे रास्ते की ओर बुलाते हैं, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, और वह इस्लाम का रास्ता है।
(74) जो लोग आख़िरत और उसमें घटित होने वाले हिसाब, दंड और प्रतिफल पर ईमान नहीं रखते, वे इस्लाम के मार्ग से हटकर दूसरे टेढ़े रास्तों पर चलने वाले हैं, जो जहन्नम की ओर ले जाते हैं।
(75) अगर हम उनपर दया करें और जिस अकाल और भुखमरी से वे पीड़ित हैं, उसे उनसे दूर कर दें, तो भी वे सत्य से अपनी गुमराही में बने रहेंगे इस हाल में कि संकोचवश भटक रहे होंगे।
(76) हमने विभिन्न प्रकार की आपदाओं द्वारा उनका परीक्षण किया। परन्तु वे न अपने पालनहार के सामने झुके और न ही उससे विनम्रतापूर्वक दुआ की कि उनसे आपदाओं को दूर कर दे।
(77) यहाँ तक कि जब हमने उनपर सख़्त यातना का कोई द्वार खोल दिया, तो तुरंत वे उसमें हर राहत और भलाई से निराश हो गए।
(78) (ऐ पुनर्जीवन को झुठलाने वालो!) अल्लाह पाक ही ने तुम्हारे लिए कान बनाए; ताकि उनसे सुनो, आँखें बनाईं; ताकि उनसे देखो और दिल बनाए; ताकि उनसे समझो। फिर भी तुम इन नेमतों पर उसका बहुत कम ही शुक्रिया अदा करते हो।
(79) वही है जिसने (ऐ लोगो!) तुम्हें धरती में पैदा किया और तुम क़ियामत के दिन अकेले उसी के पास हिसाब और बदले के लिए एकत्र किए जाओगे।
(80) वही अकेला सर्वशक्तिमान है, जो जीवन देता है, उसके सिवा कोई दूसरा जीवन देने वाला नहीं। वही अकेला मौत देता है, उसके सिवा कोई दूसरा मौत देने वाला नहीं। तथा उसी अकेले के अधिकार में अंधेरे और रोशनी, लंबाई और लघुता के एतिबार से रात और दिन के बदलने का आकलन करना है। तो क्या तुम उसकी शक्ति तथा पैदा करने और प्रबंध करने में उसकी एकता को नहीं समझते?
(81) बल्कि उन्होंने भी वैसी ही बात कही, जो उनके बाप-दादा तथा कुफ़्र में उनके पूर्वजों ने कही थी।
(82) उन्होंने पुनर्जीवन का इनकार करते हुए और उसे असंभव जताते हुए कहा : क्या जब हम मर जाएँगे और मिट्टी तथा सड़ी-गली हड्डियाँ बन जाएँगे, तो क्या सचमुच हमें हिसाब के लिए जीवित करके उठाया जाएगा?!
(83) हमसे यह वादा किया गया है - कि मरने के बाद पुनर्जीवित होना है - तथा इससे पहले हमारे पूर्वजों से भी यही वादा किया गया था। लेकिन हमने उस वादे को पूरा होते नहीं देखा। यह कुछ और नहीं बल्कि पहले लोगों की किंवदंतियां और झूठी कहानियाँ हैं।
(84) (ऐ रसूल!) पुनर्जीवन का इनकार करने वाले इन काफ़िरों से कह दें : यह धरती और जो कोई भी इस पर है, किसका है? अगर तुम्हारे पास ज्ञान हो तो बताओ?
(85) वे कहेंगे : यह धरती और जो कोई भी इसपर है, सब अल्लाह का है। अतः आप उनसे कह दें : क्या तुम्हें यह बात समझ में नहीं आती कि जो धरती और उसपर मौजूद सारी चीज़ों का मालिक है, वह तुम्हारी मृत्यु के बाद तुम्हें पुनर्जीवित करने में सक्षम है?
(86) आप उनसे पूछिए : सातों आकाशों का स्वामी कौन है? तथा महान सिंहासन का स्वामी कौन है, जिससे बड़ा कोई सृजन नहीं है?
(87) वे कहेंगे : सातों आकाश और महान सिंहासन अल्लाह के हैं। तो आप उनसे कह दें : फिर अल्लाह के आदेशों का पालन करके और उसकी मना की हुई चीज़ों से बचकर, तुम उससे डरते क्यों नहीं, ताकि उसकी यातना से सुरक्षित रहो?
(88) आप उनसे पूछिए : कौन है वह, जिसके स्वामित्व में प्रत्येक वस्तु है, कोई चीज़ उसके स्वामित्व से निकल नहीं सकती, वह अपने बंदों में से जिसकी चाहे मदद करता है तथा जिसके साथ वह बुराई का इरादा करे उसे कोई उससे छुड़ा नहीं सकता कि उससे यातना को टाल दे। यदि तुम ज्ञान रखते हो, तो बताओ।
(89) वे कहेंगे : प्रत्येक वस्तु का स्वामित्व अल्लाह पाक के हाथ में है। अतः आप उनसे कह दें : जब तुम यह स्वीकार करते हो, तो फिर तुम्हारी बुद्धि कहाँ चली जाती है कि उसके अलावा किसी और की पूजा करते हो?!
(90) मामला वैसा नहीं है, जैसा वे दावा करते हैं। बल्कि हम उनके पास ऐसा सत्य लाए हैं, जिसमें कोई संदेह नहीं। और वे अल्लाह के साझी और संतान होने का दावा करने में निश्चय झूठे हैं। अल्लाह उनकी इस बात से बहुत ऊँचा है।
(91) अल्लाह ने कोई संतान नहीं बनाई, जैसा कि काफिरों का दावा है, और उसके साथ वास्तव में कभी कोई पूज्य नहीं था। यदि मान लिया जाए कि उसके साथ वास्तव में कोई पूज्य है, तो प्रत्यक पूज्य उस सृष्टि के अपने हिस्से के साथ चला जाता, जो उसने बनाया था, और वे अवश्य एक-दूसरे पर चढ़ दौड़ते। इस प्रकार ब्रह्मांड की व्यवस्था बिगड़ जाती। जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अतः यह इंगित करता है कि सत्य पूज्य एक ही है और वह अकेला अल्लाह है। वह बहुत पवित्र एवं महान है उन अयोग्य बातों से, जो अनेकेश्वरवादी उसके साझी और संतान होने की बयान करते हैं।
(92) वह हर उस चीज़ को जानने वाला है, जो उसकी मख़लूक़ से अदृश्य है तथा हर उस चीज़ को जानने वाला है, जिसे इंद्रियों द्वारा देखा और जाना जाता है। इनमें से कोई चीज़ उससे छिपी नहीं है। अतः वह महिमावान् इस बात से सर्वोच्च है कि उसका कोई साझी हो।
(93) (ऐ रसूल!) आप दुआ करें : ऐ मेरे पालनहार! अगर तू कभी मुझे इन बहुदेववादियों के बारे में वह यातना दिखाए, जिसका तूने इनसे वादा किया है।
(94) ऐ मेरे पालनहार! यदि तू उनको दंडित करे और मैं उस समय उपस्थित रहूँ, तो मुझे उनमें शामिल न करना कि मुझे भी उनके साथ यातना का सामना करना पड़ जाए।
(95) निश्चय हम आपको वह अज़ाब दिखाने में सक्षम हैं, जिसका हम उनसे वादा कर रहे हैं। हम ऐसा करने या इसके अलावा करने में असमर्थ नहीं हैं।
(96) (ऐ रसूल) जो आपके साथ बुरा व्यवहार करे, आप उसका जवाब ऐसे व्यवहार से दें, जो सबसे अच्छा हो; इस प्रकार कि आप उसे माफ़ कर दें और उसकी ओर से पहुँचने वाले कष्ट पर धैर्य रखें। हम उस शिर्क और झुठलाने की बातों से भली-भाँति अवगत हैं, जो वे बयान करते हैं और जो वे आपके बारे में ऐसी बातें वर्णन करते हैं, जो आपके योग्य नहीं हैं, जैसे कि जादू और पागलपन।
(97) और आप दुआ करें : ऐ मेरे पालनहार! मै शैतानों की उकसाहटों और उनके वसवसों से तेरी शरण में आता हूँ।
(98) तथा ऐ मेरे पालनहार! मैं इस बात से तेरी शरण माँगता हूँ कि वे मेरे किसी भी मामले में मेरे पास उपस्थित हों।
(99) यहाँ तक कि जब इन बहुदेववादियों में से किसी के पास मौत आती है और जो कुछ उसके साथ होने वाला है, वह उसे अपनी आँखों से देख लेता है, तो अपनी बीती हुई आयु और अल्लाह के आदेश के पालन में होने वाली कोताही पर पछतावा करते हुए कहता है : ऐ मेरे पालनहार! मुझे दुनिया के जीवन की ओर लौटा दे।
(100) ताकि मैं संसार में लौटकर कोई नेक काम कर लूँ। कदापि नहीं, मामला वैसा नहीं है, जैसा कि उसने अनुरोध किया है। यह केवल एक शब्द है जो वह कहने वाला है। अगर उसे सांसारिक जीवन में वापस भेज दिया जाए, तो वह अपना किया हुआ वादा पूरा नहीं करेगा। ये मरने वाले लोग, क़ियामत के दिन तक दुनिया और आख़िरत के बीच एक ओट में रहेंगे। इसलिए वे वहाँ से दुनिया में वापस नहीं आएँगे कि जो कुछ उनसे छूट गया है, उसकी छतिपूर्ति कर लें और जो कुछ उन्होंने बिगाड़ा है, उसे ठीक कर लें।
(101) फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारने के कार्य पर नियुक्त फरिश्ता, उसमें दूसरी बार फूँक मारेगा, जो क़ियामत का ऐलान होगा, तो उनके बीच कोई रिश्ते-नाते नहीं होंगे जिनपर वे गर्व करते हैं, क्योंकि वे क़ियामत की भयावहता में व्यस्त होंगे। तथा वे अपनी-अपनी चिंताओं में व्यस्त होने के कारण एक-दूसरे को नहीं पूछेंगे।
(102) फिर जिसके पलड़े, उसकी नेकियों के उसके गुनाहों से अधिक होने के कारण, भारी हो गए, तो वही लोग अपनी अपेक्षित चीज़ों को प्राप्त करके और अपनी अप्रिय चीज़ों से मुक्ति पाकर, सफल हैं।
(103) और जिसके पलड़े, उसके गुनाहों के उसकी नेकियों से अधिक होने के कारण, भारी हो गए, तो वही लोग हैं, जिन्होंने खुद को बर्बाद कर दिया। क्योंकि उन्होंने ऐसे कार्य किए, जो उनके लिए हानिकारक हैं और ईमान तथा सत्कर्म को छोड़ दिया, जो उनके लिए लाभदायक हैं। अतः वे हमेशा जहन्नम की आग में रहने वाले हैं, उससे कभी बाहर नहीं निकलेंगे।
(104) उनके चेहरों को जहन्नम की आग जला देगी। और उसमें उनकी स्थिति यह होगी कि गंभीर रूप से त्योरी चढ़ा हुआ होने से उनके ऊपरी और निचले होंठ सिकुड़ गए होंगे और उनके दाँत बाहर निकले आए होंगे।
(105) और उन्हें झिड़कते हुए कहा जाएगा : क्या दुनिया में क़ुरआन की आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी न जाती थीं, तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे?
(106) वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहार! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हो गया, जो पहले ही तेरे ज्ञान में था और हम सत्य से भटके हुए लोग थे।
(107) ऐ हमारे पालनहार! हमें नरक से निकाल ले। अगर हम दोबारा अपने कुफ़्र और गुमराही की पूर्व स्थिति की ओर लौट गए, तो निश्चय हम अपने आपपर अत्याचार करने वाले होंगे। हमारा बहाना खत्म हो गया।
(108) अल्लाह कहेगा : तुम सब जहन्नम में तिरस्कृत व अपमानित होकर पड़े रहो और मुझ से बात न करो।
(109) मेरे बंदों में से कुछ लोग, जो मुझपर ईमान लाए थे, कहा करते थे : ऐ हमारे रब! हम तुझपर ईमान लाए। अतः हमारे गुनाह माफ़ कर दे और हमपर दया कर। और तू सब दया करने वालों से बेहतर है।
(110) तो तुमने अपने पालनहार को पुकारने वाले इन मोमिनों को उपहास का पात्र बना लिया, जिनका तुम मखौल और हँसी उड़ाते थे यहाँ तक कि उनका उपहास उड़ाने में व्यस्त होने के कारण तुम अल्लाह की याद को भुला बैठे। तथा तुम्हारा उनसे हँसी करना, मज़ाक़ और ठट्ठा के तौर पर था।
(111) मैंने इन ईमान वालों को, अल्लाह की आज्ञाकारिता पर तथा तुम्हारी ओर से पहुँचने वाले कष्ट पर धैर्य से काम लेने के कारण, क़ियामत के दिन बदले में जन्नत की प्राप्ति में सफलता प्रदान की है।
(112) वह (अल्लाह उनसे) कहेगा : तुम धरती पर कितने वर्षों तक रहे? और तुमने उसमें कितना समय नष्ट किया?
(113) वे उत्तर देंगे : हम (वहाँ) एक दिन या दिन का कुछ भाग ही रहे हैं। अतः आप उनसे पूछ लें जो दिनों और महीनों की गणना करते हैं।
(114) वह (अल्लाह) कहेगा : सचमुच तुम दुनिया में बहुत थोड़ा ठहरे हो, जिसके दौरान अल्लाह के आज्ञापालन पर सब्र करना आसान था। काश तुम (उस समय) अपने ठहरने की अवधि जानते होते।
(115) (ऐ लोगों!) क्या तुमने समझ रखा था कि हमने तुम्हें बिना किसी हिकमत के खेल-तमाशे के तौर पर पैदा किया है, और जानवरों की तरह कोई इनाम या सज़ा नहीं है, और यह कि तुम क़ियामत के दिन हिसाब और बदले के लिए हमारी ओर नहीं लौटाए जाओगे?
(116) अतः पवित्र है अल्लाह, जो बादशाह, अपनी मख़लूक में अपनी इच्छा के अनुसार व्यवहार करने वाला है। जो सत्य है, उसका वचन सत्य है और उसकी बात सत्य है। उसके सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं। वह सम्मान वाले सिंहासन का रब है, जो कि सबसे महान सृष्टि है। और जो सबसे महान सृष्टि का रब है, वह समस्त सृष्टि का रब है।
(117) और जो व्यक्ति अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य को पुकारे, जिसके पूजा के योग्य होने का उसके पास कोई प्रमाण नहीं है (और अल्लाह के अलावा हर पूज्य का यही मामला है), तो उसके बुरे कर्म का बदला उसके पालनहार के पास है। चुनाँचे वही उसे इसपर यातना से दो चार करेगा। निश्चय काफ़िर लोग अपनी अपेक्षित चीज़ों को प्राप्त करने और अप्रिय चीज़ों से मुक्ति पाने में सफल नहीं होंगे।
(118) (ऐ रसूल!) आप दुआ करें : ऐ मेरे पालनहार! मेरे पापों को क्षमा कर दे और अपनी दया से मुझपर दया कर। और तू सबसे बेहतर है, जिसने किसी पापी पर दया की और उसकी तौबा क़बूल कर ली।