(1) (ऐ रसूल) हमने आपको ढेर सारी भलाई प्रदान की है, और उसी में से एक जन्नत में कौसर नहर भी है।
(2) अतः आप इस नेमत पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हुए केवल उसी के लिए नमाज़ पढ़ें और क़ुर्बानी करें; मुश्रिकों के प्रचलन के विपरीत जो अपनी मूर्तियों की निकटता प्राप्त करने के लिए बलि देते हैं।
(3) निःसंदेह आपसे द्वेष रखने वाला ही हर भलाई से वंचित और भुलाया हुआ है, जिसे यदि याद किया जाता है, तो बुराई के साथ याद किया जाता है।