(1) (या, सीन) सूरतुल-बक़रा की शुरुआत में इन प्रकार के अक्षरों के बारे में बात गुज़र चुकी है।
(2) अल्लाह क़ुरआन की क़सम खा रहा है, जिसकी आयतें सुदृढ़ बनाई गई हैं और जिसके न आगे से असत्य आ सकता है, न उसके पीछे से।
(3) निःसंदेह (ऐ रसूल) आप उन रसूलों में से हैं, जिन्हें अल्लाह ने अपने बंदों की ओर भेजा; ताकि वे उन्हें अल्लाह के एकेश्वरवाद (यानी उसे एकमात्र पूज्य मानने) और अकेले उसी की इबादत करने का आदेश दें।
(4) आप सीधे रास्ते और संतुलित शरीयत पर क़ायम हैं। तथा यह सीधा रास्ता और संतुलित शरीयत आपके उस प्रभुत्वशाली पालनहार की ओर से उतारी गई है, जिसपर कोई हावी नहीं हो सकता, वह अपने मोमिन बंदों पर बेहद दया करने वाला है।
(5) आप सीधे रास्ते और संतुलित शरीयत पर क़ायम हैं। तथा यह सीधा रास्ता और संतुलित शरीयत आपके उस प्रभुत्वशाली पालनहार की ओर से उतारी गई है, जिसपर कोई हावी नहीं हो सकता, वह अपने मोमिन बंदों पर बेहद दया करने वाला है।
(6) हमने यह क़ुरआन आपकी ओर इसलिए उतारा है, ताकि आप एक ऐसी जाति अर्थात अरब के लोगों को डराएँ और सचेत करें, जिनके पास कोई रसूल डराने के लिए नहीं आया था। इसलिए वे ईमान और एकेश्वरवाद से बेपरवाह (अनभिज्ञ) हैं। यही बात हर उस समुदाय पर लागू होती है, जिसको सचेत करने का सिलसिला बंद हो गया हो, उसे याद-दहानी कराने के लिए रसूलों की आवश्यकता होती है।
(7) इनमें से अधिकतर लोगों के लिए अल्लाह की यातना अनिवार्य हो चुकी है, क्योंकि इनके पास अल्लाह की ओर से उसके रसूल के माध्यम से सत्य पहुँच गया, परंतु वे उसपर ईमान नहीं लाए और अपने कुफ़्र पर बने रहे। अतः अब वे अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान नहीं लाएँगे और वह इनके पास जो सत्य लेकर आए, उसपर अमल नहीं करेंगे।
(8) इस मामले में, इन लोगों का उदाहरण उन लोगों जैसा है, जिनकी गर्दनों में तौक़ पड़े हों और उनके हाथ उनकी गर्दनों के साथ उनकी ठुड्डियों के नीचे बंधे हों, जिसके कारण वे अपने सिर आकाश की ओर उठाए रखने पर मजबूर हों और उन्हें नीचे झुकाने में असमर्थ हों। तो ऐसे ही ये लोग अल्लाह पर ईमान लाने से बंधे हुए हैं। चुनाँचे वे न उसका आज्ञापालन करते हैं और न उसके लिए अपने सिर झुकाते हैं।
(9) और हमने उनके सामने, सत्य से रोकने वाली एक रुकावट और उनके पीछे एक रुकावट खड़ी कर दी है। इस तरह हमने उनकी आँखों को सत्य देखने से ढाँप दिया है। अतः वे ऐसी दृष्टि से नहीं देखते हैं जिससे वे लाभान्वित हो सकें। उनके साथ ऐसा तब हुआ जब कुफ़्र पर उनका आग्रह और हठ दिखाई दिया।
(10) इन सत्य के विरोधी काफिरों के निकट बराबर है कि (ऐ मुहम्मद) आप उन्हें डराएँ या न डराएँ। क्योंकि वे उसपर ईमान नहीं लाएँगे, जो आप अल्लाह की ओर से लेकर आए हैं।
(11) निश्चित रूप से आपके डराने से वास्तव में वही व्यक्ति लाभान्वित होता है, जो इस क़ुरआन पर विश्वास रखता है और जो कुछ इसमें आया है, उसका अनुसरण करता है, और अपने पालनहार से एकांत में डरता है, जहाँ अल्लाह अलावा कोई और उसे नहीं देख रहा होता है। तो इन गुणों वाले व्यक्ति को यह शुभ सूचना दे दीजिए कि अल्लाह उसके पापों को मिटा देगा और उसे क्षमा कर देगा तथा उसे एक महान बदला प्रदान करेगा, जो आख़िरत में उसकी प्रतीक्षा कर रहा है और वह जन्नत में प्रवेश है।
(12) हम क़ियामत के दिन मरे हुए लोगों को हिसाब के लिए जीवित करके उठाएँगे, और उन्होंने इस दुनिया के जीवन में जो कुछ अच्छे और बुरे कर्म करके आगे बढ़ाए, हम उन्हें लिख रहें हैं। इसी तरह हम उनकी मृत्यु के बाद उनके बाकी रहने वाले निशान को भी लिख रहे हैं, चाहे वह अच्छा हो, जैसे कि निरंतर बाकी रहने वाला सदक़ा (दान), या बुरा हो, जैसे कि कुफ़्र। और हमने हर चीज़ को एक स्पष्ट किताब अर्थात 'लौहे महफ़ूज़' में संरक्षित कर रखा है।
(13) और (ऐ रसूल) आप इन झुठलाने वालों और सत्य को अस्वीकार कर देने वालों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें, जो उनके लिए एक सबक़ हो। और वह बस्ती वालों की कहानी है, जब उनके रसूल उनके पास आए थे।
(14) जब हमने पहले उनकी ओर दो रसूल भेजे, ताकि वे उन्हें अल्लाह की तौहीद और उसकी इबादत की ओर बुलाएँ। परन्तु जब उन्होंने उन दोनों रसूलों को झुठला दिया, तो हमने तीसरा रसूल भेजकर उन दोनों को शक्ति प्रदान की। तीनों रसूलों ने बस्ती वालों से कहा : निःसंदेह - हम तीनों - तुम्हारी ओर रसूल बनाकर भेजे गए हैं, ताकि हम तुम्हें अल्लाह को एक मानने और उसकी शरीयत का पालन करने की ओर बुलाएँ।
(15) बस्ती के लोगों ने रसूलों से कहा : तुम हमारे जैसे मनुष्य ही तो हो। इसलिए तुम्हें हमपर कोई विशेषता प्राप्त नहीं है। और 'रहमान' (अत्यंत दयावान्) ने तुमपर कोई वह़्य नहीं उतारी है। तुम अपने इस दावे में केवल अल्लाह पर झूठ बोल रहे हो।
(16) तीनों रसूलों ने गाँव के लोगों के इनकार के जवाब में कहा : हमारा पालनहार जानता है कि हम निश्चय ही उसकी ओर से - ऐ गाँव के लोगो - तुम्हारी तरफ़ रसूल बनाकर भेजे गए हैं। और यह हमारे लिए एक पर्याप्त तर्क है।
(17) और हमारा दायित्य केवल इतना है कि उसने हमें जो संदेश पहुँचाने का आदेश दिया है, उसे स्पष्ट तौर पर पहुँचा दें। और हम तुम्हारी हिदायत के मालिक नहीं हैं।
(18) गाँव के लोगों ने रसूलों से कहा : हम तुम्हें अशुभ (मनहूस) समझते हैं। यदि तुम हमें एकेश्वरवाद की ओर बुलाने से बाज़ नहीं आए, तो हम तुम्हें निश्चित रूप से पत्थर मारकर मौत की सज़ा देंगे। तथा तुम्हें अवश्य हमारी ओर से दर्दनाक पीड़ा पहुँचेगी।
(19) रसूलों ने उनके जवाब में कहा : तुम्हारे अल्लाह के साथ कुफ़्र करने तथा उसके रसूलों का पालन न करने के कारण, तुम्हारा अपशकुन तुम्हारे ही साथ चिपका हुआ है। यदि हम तुम्हें अल्लाह की याद दिलाएँ, तो तुम अपशकुन लेते हो? बल्कि तुम कुफ़्र और पाप करने में सीमा पार कर जाने वाले लोग हो।
(20) बस्ती के एक दूर स्थान से एक व्यक्ति अपनी जाति के रसूलों को झुठलाने तथा उन्हें हत्या और कष्ट पहुँचाने की धमकी देने के भय से दौड़ता हुआ आया और कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! ये रसूलगण जो संदेश लेकर आए हैं, उसका पालन करो।
(21) (ऐ मेरी जाति के लोगो) तुम उनका अनुसरण करो, जो तुमसे संदेश पहुँचाने का कोई बदला नहीं माँगते तथा वे अल्लाह की ओर से उसकी वह़्य पहुँचाने में सीधे मार्ग पर हैं। इसलिए जो कोई भी इस तरह का है, वह अनुसरण करने योग्य है।
(22) तथा उस शुभचिंतक ने कहा : मुझे उस अल्लाह की इबादत से कौन-सी चीज़ रोकती है, जिसने मुझे पैदा किया है?! और तुम्हें अपने उस पालनहार की उपासना से कौन-सी चीज़ रोकती है, जिसने तुम्हें पैदा किया है, जबकि तुम सब पुनर्जीवित कर बदले के लिए अकेले उसी की ओर लौटाए जाओगे?!
(23) क्या मैं उस अल्लाह को छोड़कर जिसने मुझे पैदा किया है, दूसरे असत्य पूज्य बना लूँ?! यदि 'रहमान' (अत्यंत दयावान् अल्लाह) मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो इन पूज्यों की सिफ़ारिश मुझे कोई लाभ नहीं पहुँचा सकती। चुनाँचे वे मेरे लिए किसी लाभ या हानि के मालिक नहीं हैं। और न तो वे मुझे उस बुराई से बचा सकते हैं, जो अल्लाह मुझे पहुँचाना चाहे, यदि मैं कुफ़्र की हालत में मर जाऊँ।
(24) यदि मैंने उन्हें अल्लाह के सिवा पूज्य बना लिया, तो निश्चय ही मैं एक स्पष्ट गलती में पड़ गया; क्योंकि मैंने उसकी पूजा की, जो पूजा के योग्य नहीं है और उसकी इबादत करना छोड़ दिया, जो उसका योग्य है।
(25) निःसंदेह (ऐ मेरी जाति के लोगो) मैं अपने तथा तुम्हारे पालनहार पर ईमान ले आया। अतः मेरी बात सुनो। मुझे उस क़त्ल की परवाह नहीं है, जिसकी तुम मुझे धमकी दे रहे हो। फिर क्या था, उसकी जाति ने उसे मार डाला। तो अल्लाह ने उसे जन्नत में दाखिल कर दिया।
(26) 26 - 27 - उसकी शहादत के बाद उसके सम्मान में कहा गया : जन्नत में प्रवेश कर जा। चुनाँचे जब वह उसमें प्रवेश किया और उसकी नेमतों को देखा, तो कामना करते हुए कहा : काश! मेरी जाति के लोग, जिन्होंने मुझे झुठलाया और मेरी हत्या कर दी, यह जान लेते कि मेरे पापों को क्षमा कर दिया गया और मेरे पालनहार ने मुझे सम्मान प्रदान किया; ताकि वे भी मेरी तरह ईमान ले आएँ और मेरे प्रतिफल की तरह प्रतिफल प्राप्त करें।
(27) 26 - 27 - उसकी शहादत के बाद उसके सम्मान में कहा गया : जन्नत में प्रवेश कर जा। चुनाँचे जब वह उसमें प्रवेश किया और उसकी नेमतों को देखा, तो कामना करते हुए कहा : काश! मेरी जाति के लोग, जिन्होंने मुझे झुठलाया और मेरी हत्या कर दी, यह जान लेते कि मेरे पापों को क्षमा कर दिया गया और मेरे पालनहार ने मुझे सम्मान प्रदान किया; ताकि वे भी मेरी तरह ईमान ले आएँ और मेरे प्रतिफल की तरह प्रतिफल प्राप्त करें।
(28) हमने उसकी जाति के लोगों को विनष्ट करने के लिए, जिन्होंने उसे झुठला दिया और उसे मार डाला, आसमान से फ़रिश्तों की कोई सेना नहीं उतारी, तथा जब हम किसी जाति का पूर्ण विनाश करना चाहते हैं तो फ़रिश्तों को नहीं उतारते हैं। क्योंकि उनका मामला हमारे निकट इससे कहीं आसान होता है। सो हमने यह नियत किया कि उनका विनाश आसमान से एक तेज़ आवाज़ के द्वारा हो, यातना के फ़रिश्तों को उतारकर नहीं।
(29) उसकी जाति के विनाश की कहानी बस इतनी थी कि हमने उनपर एक तेज़ आवाज़ (चिंघाड़) भेजी। फिर एकाएक वे निष्प्राण होकर गिर गए, उनमें से कोई भी नहीं बचा। उनका उदाहरण एक आग की तरह है, जो जल रही थी, फिर अचानक बुझ गई और उसका कोई निशान नहीं बचा।
(30) हाय क़ियामत के दिन झुठलाने वाले बंदों का पछतावा और अफ़सोस जब वे अपनी आँखों से यातना को देख लेंगे। ऐसा इसलिए होगा कि दुनिया में उनके पास अल्लाह की ओर से जो भी रसूल आता, वे उसका मज़ाक उड़ाते और उपहास किया करते थे। अतः क़ियामत के दिन उनका अंजाम पछतावा और अफ़सोस होगा, उस कोताही पर जो उन्होंने अल्लाह के हक़ में की थी।
(31) क्या इन रसूलों को झुठलाने वाले और उनका उपहास करने वाले लोगों ने अपने से पूर्व समुदायों से शिक्षा ग्रहण नहीं किया? क्योंकि वे मर चुके हैं और फिर से दुनिया में कभी नहीं लौटेंगे, बल्कि उन कामों की ओर जा चुके हैं, जो उन्होंने (दुनिया में) करके आगे बढ़ाए थे और अल्लाह उन्हें उनका बदला देगा।
(32) और सभी समुदाय, बिना किसी अपवाद के, क़ियामत के दिन उठाए जाने के बाद हमारे सामने उपस्थित किए जाएँगे, ताकि हम उन्हें उनके कर्मों का बदला दें।
(33) मरणोपरांत पुनर्जीवन का इनकार करने वालों के लिए पुनर्जीवन के सत्य होने की एक निशानी : यह सूखी, बंजर भूमि है, जिसपर हमने आसमान से बारिश बरसाया, फिर हमने उसमें पौधों की क़िस्मों को उगाया और लोगों के खाने के लिए अनाज की क़िस्मों को बाहर निकाला। अतः जिस (अल्लाह) ने बारिश बरसाकर और पौधे निकालकर इस धरती को फिर से जीवित कर दिया, वह मृतकों को पुनर्जीवित करने और उन्हें उठाने में सक्षम है।
(34) और इस भूमि में, जिसपर हमने बारिश बरसाया, खजूर और अंगूर के बाग बना दिए और उनकी सिंचाई के लिए उनमें पानी के स्रोत जारी कर दिए।
(35) ताकि लोग उन बाग़ों के फल खाएँ, जो अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया है और जिसमें उनका कोई प्रयत्न शामिल नहीं हैं। तो क्या वे केवल अल्लाह की इबादत करके और उसके रसूलों पर ईमान लाकर, इन नेमतों पर अल्लाह के लिए आभार प्रकट नहीं करते?!
(36) पवित्र एवं उच्च है वह अल्लाह, जिसने पौधों और पेड़ों के विभिन्न प्रकार और जातियों को बनाए, और स्वयं मनुष्यों में से नर और मादा बनाए, तथा जल एवं थल आदि में अल्लाह के अन्य प्राणियों के भी विभिन्न प्रकार बनाए, जिन्हें लोग नहीं जानते।
(37) और लोगों के लिए अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद) की एक निशानी यह है कि हम दिन के जाने और रात के आने के साथ प्रकाश को समाप्त कर देते हैं जिस समय हम उससे दिन को खींच लेते हैं और दिन के जाने के बाद हम अंधेरा ले आते हैं। फिर एकाएक लोग अंधकार में प्रवेश कर जाते हैं।
(38) और उनके लिए अल्लाह के एकेश्वरवाद की एक निशानी यह सूरज है, जो एक नियत ठिकाने की ओर चला जा रहा है, जिसका अनुमान केवल अल्लाह को पता है, वह उससे आगे नहीं बढ़ सकता। यह निर्धारण उस प्रभुत्वशाली अल्लाह का निर्धारण है, जिसपर किसी का ज़ोर (आधिपत्य) नहीं चलता। वह सब कुछ जानने वाला है, जिससे उसके प्राणियों के मामले से संबंधित कोई भी चीज़ छिपी नहीं है।
(39) और उनके लिए अल्लाह की तौहीद को दर्शाने वाली एक निशानी यह चाँद है, जिसकी हमने हर रात की मंज़िलें निर्धारित कर दी हैं। शुरू में वह छोटा होता है। फिर धीरे-धीरे बड़ा होता है। फिर छोटा होना शुरू होता है यहाँ तक कि खजूर की टेढ़ी, पतली, पीली और पुरानी टहनी की तरह हो जाता है।
(40) सूरज, चाँद, रात और दिन की निशानियाँ अल्लाह की ओर से निर्धारित हैं। इसलिए वे अपने लिए निर्धारित स्थान से आगे नहीं बढ़ सकते। चुनाँचे सूरज के लिए यह संभव नहीं है कि वह चाँद को पकड़ ले और उसके पथ को बदल दे या उसके प्रकाश को समाप्त कर दे। तथा रात के लिए (भी) संभव नहीं है कि वह दिन से आगे बढ़ जाए और उसका समय समाप्त होने से पहले ही आ जाए। इन सभी नियंत्रित रचनाओं तथा अन्य ग्रहों और आकाशगंगाओं के अपने-अपने रास्ते हैं, जिन्हें अल्लाह ने निर्धारित किया है और वही उनका संरक्षण करने वाला है।
(41) इसी प्रकार अल्लाह के एक होने और उसके अपने बंदों पर कृपा करने की एक निशानी यह है कि हमने नूह के समय में आदम के वंश में से तूफ़ान (बाढ़) से बचे हुए लोगों को अल्लाह के प्राणियों से भरी हुई नाव में सवार किया। क्योंकि अल्लाह ने उसमें हर वर्ग से एक-एक जोड़ा सवार किया था।
(42) और उनके लिए अल्लाह की तौहीद (एकेश्वरवाद) और उसके अपने बंदों पर कृपा करने की एक निशानी यह है कि हमने उनके लिए नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जैसी बहुत-सी सवारियाँ बनाईं।
(43) अगर हम उन्हें डुबोना चाहें, तो डुबो दें। अगर हम उन्हें डुबोना चाहें, तो कोई फ़र्याद को पहुँचने वाला न होगा जो उनकी मदद कर सके, और न कोई बचावकर्ता होगा जो उन्हें बचा सके, यदि वे हमारे आदेश और हमारे फैसले से डूब जाएँ।
(44) सिवाय इसके कि हम उनपर दया करते हुए उन्हें डूबने से बचा लेते हैं और उन्हें एक निश्चित अवधि तक लाभ उठाने के लिए लौटा देते हैं, जिससे वे आगे नहीं बढ़ सकते। शायद कि वे शिक्षा ग्रहण करें और ईमान ले आएँ।
(45) और जब ईमान से मुँह फेरने वाले इन बहुदेववादियों से कहा जाता है : जिस आख़िरत के मामले और उसकी कठिनाइयों से तुम्हारा सामना होने वाला है उससे सावधान हो जाओ, तथा पीठ फेरकर जाने वाली दुनिया से भी सावधान रहो, इस आशा में कि अल्लाह तुम्हें अपनी दया प्रदान करे; तो वे इसका अनुपालन नहीं करते हैं, बल्कि उसकी परवाह न करते हुए उससे मुँह फेर लेते हैं।
(46) और जब भी इन द्वेष रखने वाले मुश्रिकों के पास अल्लाह के एकेश्वरवाद और उसके एकमात्र इबादत का हक़दार होने को दर्शाने वाली अल्लाह की आयतें आती थीं, तो वे उनसे उपदेश ग्रहण करने के बजाय उनसे मुँह फेर लेते थे।
(47) और जब इन द्वेष रखने वालों से कहा जाता है : अल्लाह ने तुम्हें जो धन दिया है, उससे ग़रीबों और निर्धनों की मदद करो, तो वे इसका खंडन करते हुए ईमान वालों को जवाब देते हैं : क्या हम उसे खिलाएँ, जिसे यदि अल्लाह खिलाना चाहता, तो अवश्य खिला देता?! अतः हम उसकी इच्छा का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं। तुम तो (ऐ ईमान वालो!) स्पष्ट गलती पर और सच्चाई से बहुत दूर हो।
(48) मरणोपरांत पुनः उठाए जाने का इनकार करने वाले काफ़िर उसे झुठलाते हुए और उसे खारिज करते हुए कहते हैं : (ऐ ईमान वालो!) अगर तुम अपने इस दावे में सच्चे हो कि यह घटित होकर ही रहेगा, तो बतलाओ कि यह पुनर्जीवन (प्रलय) कब होगा?!
(49) मरणोपरांत पुनः उठाए जाने को झुठलाने वाले उसे ख़ारिज कर देने वाले ये लोग, केवल प्रथम बार सूर में फूँक मारे जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब सूर में फूँक मारी जाएगी, तो यह चिंघाड़ उन्हें एकाएक पकड़ लेगी, जबकि वे अपनी सांसारिक व्यस्तताओं जैसे कि खरीदने, बेचने, पानी देने, चराने और अन्य सांसारिक कार्यों में व्यस्त होंगे।
(50) जब यह चिंघाडृ एकाएक उन्हें आ लेगी, तो न वे एक-दूसरे को वसीयत कर सकेंगे और न ही अपने घरों और परिवारों की ओर लौट सकेंगे, बल्कि वे अपनी इन्हीं व्यस्तताओं की हालत में मर जाएँगे।
(51) तथा पुनर्जीवन के लिए सूर (नरसिंघा) में दूसरी फूँक मारी जाएगी, तो एकाएक वे सब अपनी क़ब्रों से निकलकर हिसाब और बदले के लिए अपने पालनहार की ओर तेज़ी से चल पड़ेंगे।
(52) मरणोपरांत पुनः उठाए जाने को झुठलाने वाले ये काफ़िर पछतावा प्रकट करते हुए कहेंगे : हाय हमारा नुक़सान! किसने हमें हमारी क़ब्रों से उठा दिया?! तो उन्हें उनके प्रश्न का उत्तर दिया जाएगा : यह वही है, जिसका अल्लाह ने वादा किया था। क्योंकि इसे अवश्य ही घटित होना था। और रसूलों ने इसके बारे में अल्लाह की ओर से जो कुछ पहुँचाया था, वह सच्चा था।
(53) पुनर्जीवित होकर क़ब्रों से उठने का मामला तो केवल सूर में दूसरी बार फूँक मारने का प्रभाव होगा। फिर क्या देखेंगे कि सभी प्राणियों को क़ियामत के दिन हिसाब के लिए हमारे पास उपस्थित कर दिया गया होगा।
(54) उस दिन न्यायपूर्वक फैसला होगा। अतः (ऐ बंदो!) तुमपर कुछ भी अत्याचार नहीं किया जाएगा कि तुम्हारे गुनाहों को बढ़ा दिया जाए या तुम्हारी नेकियों को घटा दिया जाए। बल्कि तुम्हें उसी का बदला दिया जाएगा, जो तुम दुनिया के जीवन में किया करते थे।
(55) क़ियामत के दिन जन्नत वाले चिरस्थायी नेमत और महान सफलता को देखकर दूसरों के बारे में सोचने से बेपरवाह होंगे। चुनाँचे वे खुशी-खुशी उसका आनंद लेने में मगन होंगे।
(56) वे और उनकी पत्नियाँ जन्नत की विस्तृत छाया में मस्नदों पर बैठकर आनंद उठा रहे होंगे।
(57) उनके लिए इस जन्नत में अंगूर, अंजीर और अनार जैसे स्वादिष्ट फलों के अनेक प्रकार होंगे। तथा उनके लिए वह सारी आनंद की चीजें और तरह-तरह की नेमतें होंगी, जिनकी वे इच्छा करेंगे। चुनाँचे वे जो कुछ भी माँगेंगे, वह उनके लिए उपस्थित होगा।
(58) और इन सारी नेमतों से बढ़कर उन्हें सलाम प्राप्त होगा। यह उस पालनहार की ओर से कहा जाएगा, जो उनपर अत्यंत दया करने वाला है। चुनाँचे जब वह उन्हें सलाम कहेगा, तो उन्हें हर तरह से सुरक्षा प्राप्त होगी और उन्हें वह अभिवादन (सलाम) प्राप्त होगा, जिससे बढ़कर कोई अभिवादन नहीं।
(59) और क़ियामत के दिन मुश्रिकों से कहा जाएगा : तुम मोमिनों से अलग हो जाओ। क्योंकि उनके लिए तुम्हारे साथ रहना उचित नहीं है; इसलिए कि तुम्हारा बदला उनके बदले से अलग और तुम्हारी विशेषताएँ उनकी विशेषताओं के विपरीत हैं।
(60) क्या मैंने तुम्हें अपने रसूलों की ज़बानी ताकीद नहीं की थी और तुम्हें आदेश नहीं दिया था और तुमसे कहा नहीं था कि : ऐ आदम की संतान! तरह-तरह के कुफ़्र और गुनाह करके शैतान का पालन न करो। निश्चय ही शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है। अतः एक समझदार व्यक्ति अपने उस दुश्मन का आज्ञापालन कैसे कर सकता है, जिसकी दुश्मनी उसके लिए जगजाहिर है?!
(61) और (ऐ आदम की संतान!) मैंने तुम्हें आदेश दिया है कि अकेले मेरी ही इबादत करो और किसी वस्तु को मेरा साझी न बनाओ। क्योंकि अकेले मेरी इबादत और मेरी आज्ञाकारिता ही सीधा रास्ता है, जो मेरी प्रसन्नता और जन्नत में प्रवेश की ओर ले जाता है। लेकिन मैंने तुम्हें जिस चीज़ की ताकीद की थी और तुम्हें जिसका आदेश दिया था, तुमने उसका अनुपालन नहीं किया।
(62) और शैतान ने तुममें से बहुत-से लोगों को गुमराह कर दिया। तो क्या तुम्हारे पास विवेक नहीं था, जो तुम्हें अपने पालनहार की आज्ञा का पालन करने और केवल उसी महिमावान की उपासना करने का आदेश देता और तुम्हें उस शैतान की बात मानने से सावधान करता जो तुम्हारा खुला दुश्मन है?!
(63) यही वह जहन्नम है, जिसका तुम दुनिया में अपने कुफ़्र पर वादा किए जाते थे। यह उस समय तुमसे अदृश्य था, लेकिन आज तुम उसे अपनी आँखों से देख रहे हो।
(64) आज उसमें प्रवेश कर जाओ और उसकी तपिश का सामना करो, क्योंकि तुम सांसारिक जीवन में अल्लाह का इनकार किया करते थे।
(65) आज हम उनके मुँहों पर मुहर लगा देंगे तो वे गूँगे हो जाएँगे, वे जिस कुफ़्र और पापों में पड़े हुए थे उसके इनकार के लिए मुँह खोल नहीं सकेंगे। उनके हाथ हमसे बात करेंगे कि उनसे दुनिया में क्या कुछ काम हुआ था और उनके पैर उन पापों की गवाही देंगे जो वे किया करते थे और उनकी ओर चलकर जाया करते थे।
(66) और अगर हम उनकी आँखों के प्रकाश को खत्म करना चाहें, तो निश्चय उसे खत्म कर दें और वे देख न सकें। फिर वे तेज़ी से रास्ते की ओर दौड़ें, ताकि उसे पार करके जन्नत तक पहुँच जाएँ। परंतु उसे पार करना उनके लिए असंभव है, जबकि उनकी दृष्टि चली गई।
(67) और अगर हम उनकी रचना को बदलना और उन्हें उनके पैरों पर बैठाना चाहें, तो हम उनकी रचना को बदल दें और उन्हें उनके पैरों पर बैठा दें। फिर वे अपनी जगह से हट न सकें। न तो वे आगे जा सकेंं और न पीछे लौट सकें।
(68) और हम जिस व्यक्ति की आयु को लंबी करके उसके जीवन में विस्तार कर देते हैं, उसे कमज़ोरी की अवस्था की ओर लौटा देते हैं। तो क्या वे अपनी बुद्धि से नहीं सोचते और इतनी सी बात नहीं समझ पाते कि यह घर अनश्वरता और हमेशा रहने का घर नहीं है, बल्कि बाकी रहने वाला घर तो आख़िरत का घर है।
(69) हमने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को शे'र (काव्य) नहीं सिखाया और यह उनके लिए शोभनीय भी नहीं है; क्योंकि यह उनके स्वभाव में नहीं है और न तो उनकी प्रकृति इसकी अपेक्षा करती है। फिर तुम्हारा यह दावा करना कैसे सही हो सकता है कि वह शायर (कवि) हैं। हमने उन्हें जो सिखाया है, वह उन लोगों के लिए सर्वथा उपदेश और स्पष्ट क़ुरआन है जो उसपर चिंतन करने वाले हैं।
(70) ताकि वह उसे डराए जिसका दिल जीवित और अंतर्दृष्टि प्रबुद्ध हो। क्योंकि ऐसा ही व्यक्ति उस (क़ुरआन) से लाभान्वित होता है, तथा काफ़िरों पर यातना सिद्ध हो जाए। क्योंकि क़ुरआन के उतरने और उसका निमंत्रण उनके पास पहुँचने से उनपर तर्क स्थापित हो गया। अतः उनके पास कोई बहाना न रहा, जिसे वे पेश कर सकें।
(71) क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनके लिए चौपाए पैदा किए हैं, तो वे उन चौपायों के मालिक बने हुए हैं; वे उनमें अपने हितों के अनुसार व्यवहार करते हैं?
(72) और हमने उन मवेशियों को उनके वश में और उनके अधीन कर दिया है। अतः वे उनमें से कुछ की पीठ पर सवार होते हैं और अपना बोझ लादते हैं, तथा उनमें से कुछ (जानवरों) का वे माँस खाते हैं।
(73) उनके लिए उन (चौपायों) में उनकी सवारी करने और उनका माँस खाने के अलावा अन्य लाभ भी हैं; जैसे उनके ऊन, उनके रोवें, उनके बाल और उनकी क़ीमतें; चुनाँचे वे उनसे बिछौने (गद्दे) और वस्त्र बनाते हैं। तथा उनके लिए उनमें पीने की चीज़ें हैं, जैसे कि वे उनका दूध पीते हैं। तो क्या वे अल्लाह का शुक्रिया अदा नहीं करते, जिसने उन्हें ये और इनके अलावा अन्य नेमतें प्रदान की हैं।
(74) और मुश्रिकों ने अल्लाह के अतिरिक्त अन्य पूज्य बना लिए हैं, जिनकी वे इस आशा में इबादत करते हैं कि वे (पूज्य) उनकी सहायता करें और उन्हें अल्लाह की यातना से बचाएँ।
(75) वे असत्य पूज्य जो उन्होंने ठहरा लिए हैं, वे न स्वयं अपनी मदद कर सकते हैं और न उन लोगों की मदद कर सकते हैं, जो अल्लाह को छोड़कर उनकी पूजा करते हैं। बल्कि वे और उनकी मूर्तियाँ सब के सब यातना में उपस्थित किए जाएँगे और उनमें से हर एक दूसरे से बरी होने की घोषणा करेगा।
(76) अतः (ऐ रसूल!) आपको उनकी यह बात शोकग्रस्त न करे कि आप भेजे हुए रसूल नहीं हैं, या आप शायर (कवि) हैं और इस तरह के उनके अन्य मिथ्यारोप। निःसंदेह हम जानते हैं जो कुछ वे इस तरह की बातों में से छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं। इसमें से कुछ भी हमसे छिपा नहीं है, और हम उन्हें इसका बदला देंगे।
(77) क्या उस आदमी ने, जो मरणोपरांत दोबारा जीवित किए जाने का इनकार करता है, इस बात पर सोच-विचार नहीं किया कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया है। फिर वह कई चरणों से गुज़रता हुआ पैदा हुआ और पला-बढ़ा। फिर वह बड़ा झगड़ालू और बहस करने वाला बन गया। क्या उसने इसपर विचार नहीं किया ताकि वह उसके द्वारा मरणोपरांत पुनः जीवित होने की संभावना पर तर्क ग्रहण करता।
(78) इस काफ़िर ने सड़ी-गली हड्डियों द्वारा मरणोपरांत पुनः जीवित किए जाने के असंभव होने पर तर्क ग्रहण करके लापरवाही और अज्ञानता का सबूत दिया है। चुनाँचे वह कहने लगा : उन्हें कौन दोबारा जीवित करेगा? और स्वयं उसका अनस्तित्व से अस्तित्व में आना उससे ओझल रह गया।
(79) (ऐ मुहम्मद!) आप उसका उत्तर देते हुए कह दें : इन सड़ी-गली हड्डियों को वही जीवित करेगा, जिसने उन्हें प्रथम बार पैदा किया। क्योंकि जिसने उन्हें प्रथम बार पैदा किया, वह उन्हें दोबारा जीवित करने में असमर्थ नहीं हो सकता। वह महिमावान हर प्रकार की रचना को भली-भाँति जानता है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है।
(80) जिसने (ऐ लोगो!) तुम्हारे लिए नम हरे पेड़ से आग पैदा की, जिसे तुम उससे निकालते हो। फिर तुम उससे आग जलाते हो। तो जिसने दो विपरीत चीज़ों (हरे पेड़ के पानी की नमी और उसमें जलती आग) को मिला दिया, वह मृत लोगों को पुनर्जीवित करने में सक्षम है।
(81) क्या जिस (अल्लाह) ने इन भव्य आकाशों और विशाल धरती को पैदा किया, वह मृतकों को उन्हें मृत्यु देने के बाद पुनर्जीवित करने में सक्षम नहीं है? क्यों नही, वह ऐसा करने में अवश्य सक्षम है। वह तो सब कुछ पैदा करने वाला है, जिसने सभी प्राणियों को पेदा किया, वह उन्हें भली-भाँति जानने वाला है। अतः उनकी कोई भी चीज़ उससे छिपी नहीं है।
(82) अल्लाह सर्वशक्तिमान का मामला तो केवल यह है कि जब वह किसी चीज़ को अस्तित्व में लाने का इरादा करता है, तो उससे कहता है 'हो जा', तो वह चीज़ जिसे वह चाहता है अस्तित्व में आ जाती है। और इसी में से उसका जीवित करने, मारने और मरणोपरांत पुनर्जीवित करके उठाने आदि का इरादा करना भी है।
(83) अल्लाह उस विवशता से विहीन और पवित्र है, जिसकी निसबत मुश्रिक लोग उसकी ओर करते हैं। क्योंकि उसी के पास सभी चीजों का अधिकार है, वह अपनी इच्छा के अनुसार उनमें व्यवहार करता है। उसी के हाथ में हर चीज़ की चाबियाँ हैं। तथा आखिरत में तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे, जहाँ वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों का बदला देगा।