41 - सूरा फ़ुस्सिलत ()

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(1) (ह़ा, मीम) सूरतुल-बक़रा की शुरुआत में इस प्रकार के अक्षरों के बारे में बात गुज़र चुकी है।

(2) यह क़ुरआन उस अल्लाह की ओर से अवतरित हुआ है, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।

(3) यह ऐसी पुस्तक है, जिसकी आयतों को, संपूर्ण रूप से खोल-खोलकर बयान किया गया है, और उसे अरबी क़ुरआन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, उन लोगों के लिए जो ज्ञान रखते हैं, क्योंकि वही उसकी शिक्षा सामग्री और मार्गदर्शन से लाभ उठाते हैं।

(4) वह मोमिनों को उस पूर्ण प्रतिफ़ल की शुभ सूचना देता है, जो अल्लाह ने उनके लिए तैयार कर रखा है, तथा काफ़िरों को अल्लाह की कठिन यातना से डराता है। फ़िर भी उनमें अधिकतर लोगों ने उससे मुहँ मोड़ रखा है और उसकी हिदायत की बातों को मानने के इरादे से सुनने को तैयार नहीं हैं।

(5) तथा उन्होंने कहा कि हमारे दिलों परदों में ढके हैं, अतः वे उसे समझ नहीं पाते जिसकी ओर आप हमें बुला रहे हैं। और हमारें कानों में बोझ है, अतः वह आपकी बात सुन नहीं पाते। और हमारे तथा आपके बीच ऐक परदा है, जिसके कारण आपकी कोई भी बात हम तक नहीं पहुँच नहीं पाती। तो आप अपना रास्ता चलते रहें, हम अपने रास्ते पर चलते हैं। कदापि हम आपका अनुसरण नहीं करेंगे।

(6) (ऐ रसूल) इन अवज्ञाकारियों से कह दें कि मैं तुम्हारे ही जैसा एक इनसान हूँ। अल्लाह मेरी आेर वह्य भेजता है कि तुम्हारा सत्य पूज्य बस एक ही सत्य पूज्य है। वह अल्लाह है। अत-, उसी की ओर ले जाने वाली राह पर चलो। उसी से गुनाहों की क्षमा माँगो। बेशक विनाश व यातना उन मुश्रिकों के लिए है, जो अल्लाह के सिवा किसी और की वंदना करते हैं अथवा उसका किसी दूसरे को साझी बनाते हैं।

(7) जो लोग अपने धन की ज़कात नहीं देते, तथा आखिरत और उसकी सदा बाकी रहने वाली नेमतों एवं दर्दनाक यातना का इनकार करते हैं।

(8) निश्चय जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए और अच्छे कार्य किए, उनके लिए कभी न समाप्त होने वाला बदला अर्थात जन्नत है।

(9) (ऐ रसूल) आप मुश्रिकों को डाँटते हुए कह देंः तुम उस अल्लाह का इनकार क्यों करते हो, जिसने धरती को दो दिनों (रविवार तथा सोमवार) में पैदा किया और उसके साझी बनाकर उन्हें अल्लाह के सिवा क्यों पूजते हो? वह तो सारी सृष्टियों का पालनहार है।

(10) उसने धरती में उसके ऊपर से मज़बूत पहाड़ बनाए, जो उसे स्थिर रखते हैं, ताकि वह हिलने न लगे। तथा उसमें बरकत रख दी, चुनाँचे उसे उसके वासियों के लिए स्थायी भलाई वाली बना दिया, तथा उसमें इनसानों तथा चौपायों के आहार निर्धारित किए, पिछले दो दिनों को मिलाकर चार दिनों के भीतर। बाद के दो दिन : मंगलवार और बुधवार हैं। ये पूरे चार दिन बराबर हैं उनके बारे में प्रश्न करने वाले के लिए।

(11) फ़िर अल्लाह ने आकाश पैदा करने का इरादा किया। उस समय आकाश धुआँ था। चुनांचे आकाश एवं धरती से कहा : तुम मेरे आदेशों का पालन करो। चाहे खुशी-खुशी या दबाव के तहत। इससे तुम्हें छुटकारा नहीं मिलने वाला। तो दोनों ने कहा : हम प्रसन्न होकर आ गए। ऐ हमारे पालनहार! हम आपके इरादे के अधीन हैं।

(12) अल्लाह ने आकाशों को दो दिनों में बनाकर पूरा किया। अर्थात् बृहस्पतिवार एवं शुक्रवार को। इस तरह, आकाशों एवं धरती की सृष्टि कुल छः दिनों में संपन्न हुई। और अल्लाह ने प्रत्येक आकाश में उससे संबंधित अपने निर्णयों और आदेशों की वह्य कर दी। और हमने निचले आकाश को सितारों से सजाया तथा उनके ज़रिए उसे सुरक्षा प्रदान की, ताकि शैतान छिपकर कुछ सुन न सके। यह सारी योजना उस अति प्रभुत्वशाली अल्लाह की है, जिसे कोई हरा नहीं सकता, वह अपनी मखलूक़ को भली-भाँति जानता है।

(13) फ़िर भी यदि ये लोग आपके लाए धर्म को मानने से मुँह फेरें, तो (ऐ रसूल) उनसे कह दें कि मैंने तुम्हें उसी तरह की यातना से सावधान कर दिया है, जिस तरह की यातना हूद अलैहिस्सलाम की जाति आद पर और सालेह अलैहिस्सलाम की जाति समूद पर आई थी।

(14) जब उनके पास उनके रसूल, एक-दूसरे के बाद, एक ही आह्वान लेकर आए और उन्हें आदेश दिया कि एक अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें, तो उनमें से काफ़िरों ने कहा : यदि हमारा रब चाहता, तो हमारी आेर फ़िश्तों को रसूल बनाकर भेजता। अतः, तुम जिस बात के साथ भेजे गए हो, हम उसे नहीं मानते। क्योंकि तुम हमारे ही जैसे इनसान हो।

(15) रहे हूद अलैहिस्सलाम की जाति 'आद' समुदाय के लोग, तो उन्होंने अल्लाह का इनकार करने के साथ-साथ धरती में नाहक़ अभिमान किया और अपने आस-पास के लोगों पर अत्याचार किया, तथा अपनी शक्ति के धोखे में कहने लगे : हमसे अधिक शक्तिशाली कौन है?! उनके ख़याल से उनसे अधिक शक्तिशाली कोई नहीं था। तो अल्लाह ने उन्हें उत्तर दिया : क्या वे नहीं जानते और देखते हैं कि अल्लाह, जिसने उन्हें पैदा किया और उन्हें वह शक्ति प्रदान की, जिसने उन्हें सरकश (उद्दंड) बना दिया, वह उनसे कहीं अधिक शक्तिशाली है?! तथा वे अल्लाह की उन निशानियों का इनकार करते थे, जो हूद अलैहिस्सलाम लेकर आए थे।

(16) अंततः, हमने उनपर कुछ ऐसे दिनों में, जो अपनी यातना के कारण उनके हक़ में अशुभ थे, उनपर ऐसी वायु भेज दी, जो घबराहट पैदा करने वाली आवाज़ के साथ चल रही थी; ताकि उन्हें सांसारिक जीवन में ही अपमानकारी यातना चखाएँ और आख़िरत की यातना, जिसकी उन्हें प्रतीक्षा है, और ज़्यादा अपमानकारी है। तथा उन्हें कोई सहायक नहीं मिलेगा, जो उन्हें यातना से बचा सके।

(17) रहे सालेह अलैहिस्सलाम की जाति 'समूद' समुदाय के लोग, तो हमने उनके सामने सत्य के रास्ते को स्पष्ट करके उनका मार्गदर्शन किया। लेकिन उन्होंने सत्य की ओर मार्गदर्शन पर गुमराही को प्राथमिकता दी। तो उन्हें, उनके कुफ़्र और पापों के कारण, अपमानजनक दंड के वज्र ने नष्ट कर दिया।

(18) और हमने उन लोगों को बचा लिया, जो अल्लाह तथा उसके रसूलों पर ईमान रखते थे, तथा अल्लाह से, उसके आदेशों का पालन करके एवं उसकी मना की हुई वस्तुओं से बचकर डरते थे। हमने उन्हें उस यातना से बचा लिया, जो उनकी जाति के और लोगों पर आई।

(19) और जिस दिन अल्लाह अपने शत्रुओं को जहन्नम की ओर एकत्र करेगा, तो निगरानी पर नियुक्त फ़रिश्ते उनके पहलों को बाद वालों से मिला देंगे। वे आग से भाग नहीं सकेंगे।

(20) यहाँ तक कि जब वे उस जहन्नम के पास आ जाएँगे, जहाँ उन्हें ले जाया जा रहा होगा, और सांसार में जो कर्म वे किया करते थे, उनका इनकार कर देंगे, तो उनके कान तथा उनकी आँखें और उनकी खालें, उनके विरुद्ध उस कुफ़्र और गुनाह के कामों की गवाही देंगी, जो वे दुनिया में किया करते थे।

(21) और काफ़िर अपनी खालों से कहेंगेः तुमने हमारे विरुद्ध, हमारे सांसारिक कर्मों की गवाही क्यों दी? तो वे उत्तर देंगीः हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति दी है, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति प्रदान की है, तथा उसीने तुम्हें प्रथम बार पैदा किया जब तुम दुनिया में थे, और उसीकी ओर तुम सब आख़िरत में हिसाब व प्रतिकार के लिए फेरे जा रहे हो।

(22) और तुम पाप करते समय अपने पापों को छिपाते भी नहीं थे कि कहीं तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें तथा तुम्हारी खालें तुम्हारे विरुद्ध गवाही न दे दें, क्योंकि तुम हिसाब, यातना तथा मौत के पश्चात बदले का यक़ीन ही नहीं रखते थे। तुम समझते रहे कि अल्लाह तुम्हारे अधिकतर कर्मों को जानता ही नहीं है, बल्कि वह उनसे अनभिज्ञ रहता है। यही कारण है कि तुम धोखे में पड़ गए।

(23) और तुम्हारे इसी बुरे ख़याल ने जो तुमने अपने रब के बारे में रखा, तुम्हें हलाक कर दिया और इसीके कारण तुम उन क्षति उठाने वालों में शामिल हो गए, जो दुनिया एवं आख़िरत दोनों से हाथ धो बैठे।

(24) तो यदि यह लोग, जिनके विरुद्ध उनके कानों, आँखों एवं खालों ने गवाही दी है, धैर्य रखें, तो भी उनका आवास जहन्नम है और यदि यतना से मुक्ति और अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति की दुआ करें, तो भी न उसकी प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं, न जन्नत में प्रवेश कर सकते हैं।

(25) और हमने इन काफ़िरों के लिए शैतानों में से ऐसे साथी बना दिए थे, जो हमेशा उनके साथ रहते थे। उन्होंने ही उनके दुनिया के बुरे कर्मों को सुंदर बनाकर पेश किया था, और बाद में आने वाली आख़िरत को भी, उनके हक़ में सुंदर बनाकर उसे उनके ज़ेहन से ग़ायब कर दिया था और उसकी तैयारी से ग़ाफ़िल कर दिया था। चुनांचे, उनपर जिन्नों एवं इनसानों के उन गिरोहों के साथ, जो ग़ुज़र चुके थे, यातना सिद्ध हो गई। निश्चय वे घाटा उठाने वाले लोग थे, जिन्होंने खुद अपना और अपने परिवार का नुकसान किया और जहन्नम का हक़दार बना लिया।

(26) और काफ़िरों ने, तर्कों का सामना करने से विवश होकर एक-दूसरे को नसीहत करते हुए कहा कि उस क़ुरआन को न सुनो, जो मुहम्मद तुम्हें पढ़कर सुनाता है, और उसकी शिक्षाओं को भी न मानो, और जब उसे पढ़ा जाए तो खूब शोर मचाओ, हो सकता है कि इस तरह तुम उससे जीत जाओ और वह उसकी तिलावत और तुम्हें उसकी ओर बुलाने से बाज़ रहे और हम उससे मुक्ति पा जाएँ।

(27) हम अवश्य अल्लाह का इनकार करने वालों तथा उसके रसूलों को झुठलाने वालों को क़ियामत के दिन कड़ी यातना चखाएँगे और अवश्य उन्हें उनके शिर्क एवं पापों की सज़ा के तौर पर बुरा प्रतिफल देंगे।

(28) यह अलालह का इनकार करने वाले तथा उसके रसूलों को झूठलाने वाले अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार जहन्नम है। वह उसमें सदैव रहेंगे। क्योंकि उन्होंने अल्लाह की आयतों का इनकार किया था तथा स्पष्ट सुदृढ़ प्रमाण होने के बावजूद उनपर ईमान नहीं लाए थे।

(29) तथा वह लोग कहेंगे, जिन्होंने अल्लाह का इनकार किया था और उसके रसूलों को झुठलाया थाः ऐ हमारे पालनहार! जिन्नों तथा मनुष्यों में से जिन लोगों ने हमें कुपथ किया है, उन्हें हमें दिखा दे। इबलीस को दिखा दे, जिसने कुफ़्र की राह दिखाई और उसकी ओर बुलाया, तथा आदम के उस संतान को दिखा दे, जिसने खून बहाने का सिलसिला शुरू किया। हम उन्हें जहन्नम में अपने पैरों से रौंदेंगे, ताकि वे सबसे निचले भाग वाले हो जाएँ, जिन्हें जहन्नमियों में सबसे कठिन यातना का सामना होगा।

(30) निश्चय जिन लोगों ने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है, उसके सिवा हमारा कोई पालनहार नहीं है, और उसके आदेशों के पालन तथा उसके निषेधों से बचने में दृढ़ता दिखाते रहे, उनके पास मौत के समय फ़रिश्ते उतरते हैं और कहते हैंः तुम मौत तथा मौत के बाद के मरहलों के विषय में भय न करो, और जो कुछ दुनिया में छोड़ आए हो, उसपर ग़म न करो, तथा उस जन्नत की ख़ुशख़बरी ले लो, जिसका बचन तुम्हें दुनिया में, ईमान और नेक कर्म के बदले में दिया जाता रहा है।

(31) हम सांसारिक जीवन में तुम्हारे सहायक थे। यही कारण है कि तुम्हें सही रास्ता दिखाते थे और तुम्हारी सुरक्षा करते थे। तथा आख़िरत में भी तुम्हारे सहायक हैं। इस तरह तुम्हें हमारा सहयोग हमेशा प्राप्त रहेगा। तुम्हें जन्नत में मज़े और आनंद की वह सारी चीज़ें मिलेंगी, जो तुम्हारे दिल चाहें और वहाँ तुम्हारी पसंद की वह सारी चीज़ें उपस्थित होंगी, जिनकी तुम इच्छा व्यक्त करो।

(32) तुम्हारे सत्कार के लिए यह तैयार रोज़ी है। उस पालनहार की ओर से जो अपने तौबा करने वाले बंदों के गुनाहों को माफ़ करने वाला, उनपर दया करने वाला है।

(33) और किसी की बात उससे अच्छी नहीं हो सकती, जो अल्लाह के एक होने और उसकी शरीयत पर अमल करने की ओर बुलाए, और खुद ऐसा नेक अमल करे जो उसके पालनहार को पसंद हो और कहे किः "मैं अल्लाह की आज्ञा का पालन करने वाला तथा उसके सम्मुख झुकने वाला हूँ।" जो भी यह सारे कार्य करेगा, वही, लोगों में सबसे अच्छी बात करने वाला होगा।

(34) नेकियाँ और इबादतें करना, जिनसे अल्लाह प्रसन्न होता है, और गुनाह एवं अवज्ञा में लिप्त रहना, जिनसे अल्लाह क्रोधित होता होता, दोनों समान नहीं हैं। जो आपके साथ बुरा व्यवहार करे, उसके बुरे व्यवहार की बुराई उत्तम व्यवहार के द्वारा दूर करें। यदि आप ऐसा करते हैं, तो देखेंगे कि आपके और जिसके बीच पहले सख्त बैर था, वह आपका हार्दिक और घनिष्ट मित्र बन गया है।

(35) और यह अच्छा गुण उन्हीं को प्राप्त होता है, जो अत्याचार तथा लोगों के बुरे व्यवहार पर सब्र करता है, और यह बड़े भाग्यशाली लोगों को ही प्राप्त होता है, क्योंकि इसमें अपार भलाइयाँ और अनगिनत लाभ निहित हैं।

(36) और यदि किसी भी समय शैतान आपको बुराई पर उकसाए, तो अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लें और उसीका शरण लें। निःसंदेह वही आपकी बातों को सुनने वाला तथा आपका हाल जानने वाला है।

(37) और अल्लाह की महानता तथा उसके एक होने का पता देने वाली निशानियों में से रात और दिन का एक-दूसरे के बाद आना-जाना भी है और सूरज तथा चाँद भी हैं। (ऐ लोगो) तुम सूरज को सजदा न करो और चाँद को भी सजदा न करो। बल्कि केवल उस अल्लाह को सजदा करो, जिसने इन सब को पैदा किया है, यदि तुम सचमुच उसीकी वंदना करते हो।

(38) तथा यदि वे अभिमान करें, मुँह मोड़ लें तथा उस अल्लाह को सजदा न करें, जिसने कायनात की रचना की है, तो जो फ़रिश्ते अल्लाह के निकट हैं. वे रात दिन अल्लाह की पवित्रता का वर्णन और तारीफ़ करते रहते हैं, और वे उसकी इबादत से थकते नहीं हैं।

(39) अल्लाह की महानता, उसके एकत्व और दोबारा जीवित करके उठाने की क्षमता की निशानियों में से यह भी है कि तुम धरती को पौधों से खाली और बंजर देखते हो, फ़िर जैसे ही हम उसमें बारिश का जल उतारते हैं, वह अपने गर्भ में छिपे बीजों के बढ़ने के कारण हरकत में आ जाती है और लहलहा उठती है। निश्चित रूप से जिसने इस मरी हुई धरती में पौधे उगाकर उसे जीवित कर दिया, वह मरे हुए लोगों को भी जीवित कर सकता है और उन्हें हिसाब-किताब और बदले के लिए उठा सकता है। निश्चय अल्लाह हर चीज़ की शक्ति रखता है। न उसके लिए मरी हुई धरती को जीवित करना कुछ मुश्किल है न मरे हुए लोगों को जीवित करके क़ब्रों से उठाना।

(40) जो लोग हमारी आयतों के बारे में ग़लत नीति अपनाते हैं; उनका इनकार करते हैं, उन्हें झुठलाते हैं और उनके अर्थ को बदल देते हैं, उनका हाल अल्लाह से छिपा नहीं है। हम उन्हें जानते हैं। क्या जो व्यक्ति जहन्नम में डाला जाएगा वह उत्तम है अथवा वह व्यक्ति जो क़ियामत के दिन यातना से निर्भय होकर आएगा? (ऐ लोगो!) अच्छा-बुरा जो चाहो, करो। हमने तुम्हारे सामने अच्छाई तथा बुराई को खोल-खोलकर बयान कर दिया है। तुम, दोनों में से जो भी करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है। उससे तुम्हारा कोई कर्म छिपता नहीं है।

(41) निश्चय जिन लोगों ने अल्लाह की जानिब से क़ुरआन आने के पश्चात, उसका इनकार कर दिया, उन्हें क़ियामत के दिन यातना का सामना करना पड़ेगा। निःसंदेह यह एक ज़बरदस्त और सुरक्षित पुस्तक है। न कोई परिवर्तन करने वाला उसमें परिवर्तन कर सकता है, न कोई बदलने वाला उसे बदल सकता है।

(42) असत्य न उसके आगे से आ सकता है और न उसके पीछे से। न कमी-बेशी के रूप में, न शाब्दिक या आर्थिक बदलाव के रूप में। यह उस अल्लाह की तरफ़ से उतरा है, जो रचना, निर्णय एवं शरीयत में हिकमत वाला है, हर हाल में प्रशंसित है।

(43) (ऐ रसूल) आपके संबंध में भी वही झुठलाने की बातें कही जा रही हैं, जो आपसे पहले के रसूलों के बारे में कही जा चुकी हैं। अतः, आप धैर्य रखें। क्योंकि आपका पालनहार अपने तौबा करने वाले बंदों को क्षमा करने वाला और तौबा न करने वालों तथा अपने गुनाह पर अड़े रहने वालों को कठोर सज़ा देने वाला है।

(44) यदि हम इस क़ुरआन को अरबों की भाषा के अलावा किसी दूसरी भाषा में उतारते, तो उनमें से काफ़िर लोग कहते : इसकी आयतों को स्पष्ट क्यों नहीं किया गया कि हम उन्हें समझते? क्या क़ुरआन ग़ैर अरबी भाषा में है और उसे लाने वाला अरबी भाषी है? (ऐ रसूल!) आप इनसे कह दें : क़ुरआन - अल्लाह पर ईमान रखने वालों तथा उसके रसूलों की पुष्टि करने वालों के लिए - गुमराही से मार्गदर्शन, तथा दिलों के भीतर जो अज्ञानता और उससे संबंधित बीमारियाँ हैं, उनसे आरोग्य है। और जो लोग अल्लाह पर ईमान नहीं रखते, उनके कानों में डाट (बहरापन) है। तथा यह उनके हक़ में अंधापन है, जिसकी वजह से वे इसे नहीं समझते हैं। इन विशेषताओं के वाहक लोग दूर से पुकारे जाने वालों की तरह हैं। तो भला वे पुकारने वाले की आवाज़ कैसे सुन सकते हैं?!

(45) और हमने मूसा को तौरात प्रदान की, तो उसमें विभेद किया गया। अतः कुछ लोग उसपर ईमान लाए और कुछ ने इनकार किया। और यदि अल्लाह ने पहले से ही बंदों के बीच विभेद वाली वस्तुओं के बारे में, क़ियामत के दिन निर्णय करने का वचन न दिया होता, तो तौरात में विभेद करने वालों के बीच निर्णय कर देता और बता देता कि सत्य पर कौन है और असत्य पर कौन। फिर सत्य वालों को सम्मानित और बातिल परस्तों को अपमानित करता। वास्तव में, काफ़िर क़ुरआन के बारे में संदेह और शंका में पड़े हुए हैं।

(46) जो सदाचार करेगा, उसके सदाचार का लाभ उसीको होगा। किसी का सुकर्म अल्लाह को लाभ नहीं देगा। और जो दुराचार करेगा, उसका खामियाज़ा उसे ही भुगतना होगा। अल्लाह को किसी बंदे के पाप से कुछ क्षति नहीं होने वाली। अल्लाह हर एक को उसके कर्म के अनुसार बदला देगा। (ऐ रसूल) आपका पालनहार अपने बंदो पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता। न किसी की एक नेकी घटाता है, न किसी का एक गुनाह बढ़ाता है।

(47) क़ियामत का ज्ञान केवल अल्लाह की ओर लौटाया जाता है; क्योंकि केवल वही जानता है कि क़ियामत कब घटित होगी, इसे कोई और नहीं जानता। तथा जो फल अपने गाभों से निकलते हैं और जो मादा गर्भ धारण करती है और बच्चा जनती है, सबका ज्ञान अल्लाह को है। इनमें से कोई भी चीज़ उससे नहीं छूटती। और जिस दिन अल्लाह उन बहुदेववादियों को, जो उसके साथ मूर्तियों की पूजा किया करते थे, पुकारकर ; उन्हें इन मूर्तियों की इबादत पर फटकार लगाते हुए कहेगा : कहाँ हैं मेरे वे साझी, जिन्हें तुमने साझेदार समझ रखा था? मुश्रिक कहेंगे : हम तेरे सामने स्वीकार करते हैं कि अब हममें से कोई भी इस बात की गवाही नहीं देता कि तेरा कोई साझी है।

(48) और वे मूर्तियाँ उनसे ग़ायब हो जाएँगी, जिन्हें वे पुकारा करते थे और उन्हें यह विश्वास हो जाएगा कि उनके लिए अल्लाह की यातना से भागने और शरण लेने का कोई स्थान नहीं है।

(49) मनुष्य स्वास्थ्य, धन एवं संतान आदि नेमतें माँगने से नहीं थकता है, लेकिन यदि वह ग़रीबी या बीमारी आदि चीज़ों से ग्रस्त होता है, तो अल्लाह की दया से बहुत निराश और हताश हो जाता है।

(50) और यदि हम उसे विपत्ति और बीमारी के बाद स्वास्थ्य, धन और सुख का स्वाद चखाएँ, तो निश्चय वह कहेगा : यह तो मेरे ही लिए है; क्योंकि मैं इसका योग्य और हक़दार हूँ। और मैं नहीं समझता कि क़ियामत आने वाली है। यदि मान भी लिया जाए कि क़ियामत आएगी, तो अल्लाह के पास भी मुझे संपन्नता और धन प्राप्त होगा। अतः जिस तरह उसने मेरे उसका हक़दार होने के कारण इस दुनिया में मुझ पर अनुग्रह किया है, उसी तरह आख़िरत में भी मुझ पर अनुग्रह करेगा। तो हम अल्लाह के साथ कुफ़्र करने वालों को ज़रूर उनके कुफ़्र और पापों से सूचित करेंगे और उन्हें ज़रूर कठोरतम यातना का स्वाद चखाएँगे।

(51) और जब हम मनुष्य को स्वास्थ्य और सुख आदि प्रदान करते हैं, तो वह अल्लाह को याद करने और उसका आज्ञापालन करने से लापरवाह हो जाता है और अहंकार में आकर मुँह मोड़ लेता है। परंतु जब वह बीमारी और ग़रीबा आदि से ग्रस्त होता है, तो अल्लाह से बहुत दुआएँ करता है; उससे अपनी विपत्ति की शिकायत करता है, ताकि वह उसे उससे दूर कर दे। इस तरह, वह न तो अनुग्रह प्राप्त होने पर अपने पालनहार का शुक्रिया अदा करता है और न ही किसी विपत्ति से पीड़ित होने पर धैर्य से काम लेता है।

(52) (ऐ रसूल!) आप इन झुठलाने वाले मुश्रिकों से कह दें : मुझे बताओ कि यदि यह क़ुरआन अल्लाह की ओर से है, फिर भी तुम इसका इनकार कर रहे हो और इसे झुठला रहे हो, तो (अल्लाह के पास) तुम्हारा क्या हाल होगा?! और उससे अधिक पथभ्रष्ट कौन है, जो सत्य से दुश्मनी रखे, जबकि वह प्रकट हो चुका है तथा उसका तर्क और उसकी प्रबलता स्पष्ट है?!

(53) हम शीघ्र ही मुसलमानों को विजय प्रदान करके क़ुरैश के काफ़िरों को धरती के कोने-कोने में अपनी निशानियाँ दिखाएँगे, तथा मक्का पर विजय देकर स्वयं उनके अपने भीतर भी अपनी निशानियाँ दिखाएँगे; यहाँ तक कि उनके लिए इस तरह स्पष्ट हो जाए जो शक को दूर कर दे कि यह क़ुरआन वह सत्य पुस्तक है जिसमें कोई संदेह नहीं है। क्या इन मुश्रिकों को यह जानने के लिए कि यह कुरआन सत्य है, अल्लाह की यह गवाही काफ़ी नहीं है कि यह उसी की ओर से उतरा है?! भला अल्लाह से बड़ी गवाही किसकी हो सकती है?! यदि उन्हें सत्य की तलाश होती, तो उनके लिए अपने पालनहार की गवाही पर्याप्त होती।

(54) सुन लो! ये मुश्रिक, मरणोपरांत पुनः जीवित किए जाने का इनकार करने के कारण, क़ियामत के दिन अपने पालनहार से मिलने के बारे में संदेह में हैं। अतः वे आख़िरत पर ईमान नहीं रखते हैं। यही कारण है कि वे अच्छे कार्यों के द्वारा उसके लिए तैयारी नहीं करते हैं। सुन लो, अल्लाह ने हर वस्तु को अपने ज्ञान और शक्ति के घेरे में ले रखा है।