(1) अल्लाह ने उन फ़रिश्तों की क़सम खाई है, जो बड़ी सख़्ती और अति क्रूरता से काफ़िरों की जान खींचकर निकालते हैं।
(2) और अल्लाह ने उन फ़रिश्तों की क़सम खाई है, जो मोमिनों के प्राण बड़ी आसानी और सरलता से निकालते हैं।
(3) और अल्लाह ने उन फ़रिश्तों की क़सम खाई है, जो अल्लाह के आदेश से आकाश से धरती की ओर तेज़ी से तैरते हुए आते हैं।
(4) और अल्लाह ने उन फ़रिश्तों की क़सम खाई है, जो उसके आदेश के पालन में एक-दूसरे से आगे बढ़ जाते हैं।
(5) अल्लाह ने उन फ़रिश्तों की क़सम खाई है, जो अल्लाह के उस फ़ैसले को क्रियान्वित करते हैं, जिसका उसने उन्हें आदेश दिया है, जैसे वे फ़रिश्ते जो बंदों के कार्यों को लिखने पर नियुक्त हैं। अल्लाह ने इन सब की क़सम खाई है कि वह निश्चय लोगों को हिसाब और बदले के लिए ज़रूर पुनर्जीवित करके उठाएगा।
(6) जिस दिन सूर में पहली फूँक के समय धरती हिलने लगेगी।
(7) इस फूँक के बाद एक और फूँक मारी जाएगी।
(8) उस दिन काफ़िरों और पापियों के दिल डरे हुए होंगे।
(9) उनकी आँखों में अपमान का प्रभाव दिखाई देगा।
(10) वे कहा करते थे : क्या हम मरने के बाद ज़िंदगी में लौटेंगे?
(11) क्या जब हम सड़ी-गली खोखली हड्डियाँ हो जाएँगे, उसके बाद फिर लौटेंगे?!
(12) उन्होंने कहा : यदि हम वापस लौटते हैं, तो वह वापसी बड़े घाटे वाली होगी।
(13) दोबारा जीवित करने का मामला बड़ा आसान है। वह तो केवल सूर फूँकने पर नियुक्त फ़रिश्ते की एक तेज़ आवाज़ होगी।
(14) फिर अचानक सभी लोग धरती के ऊपर जीवित होंगे। जबकि पहले वे धरती के भीतर मृत अवस्था में थे।
(15) (ऐ रसूल) क्या आपके पास मूसा की अपने पालनहार के साथ और अपने दुश्मन फ़िरऔन के साथ की ख़बर पहुँची है?!
(16) जब उनके पालनहार ने उन्हें 'तुवा' की पवित्र घाटी में पुकारा।
(17) अल्लाह ने उनसे जो कुछ कहा, उसमें यह भी था : फ़िरऔन के पास जाओ। उसने अत्याचार और अहंकार की हद पार कर दी है।
(18) फिर उससे कहो : (ऐ फ़िरऔन) क्या तू कुफ़्र और पापों से पवित्र होना चाहता है?
(19) और मैं तेरे उस पालनहार की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ, जिसने तुझे पैदा किया और तेरी देखभाल की, तो तू उससे डरने लगे। चुनाँचे तू ऐसे कार्य करने लगे, जो उसे प्रसन्न करते हैं और ऐसे कार्यों से बचे, जो उसे क्रोधित करते हैं?
(20) फिर मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे इस बात की बड़ी निशानी दिखाई कि वे अपने पालनहार के रसूल हैं। इस निशानी से अभिप्राय हाथ और छड़ी है।
(21) तो फ़िरऔन ने इस निशानी को झुठला दिया और मूसा अलैहिस्सलाम ने उसे जो आदेश दिया था, उसकी अवहेलना की।
(22) फिर वह मूसा अलैहिस्सलाम के लाए हुए धर्म पर ईमान लाने से मुँह फेर लिया अल्लाह की अवज्ञा करने और सत्य का विरोध करने में परिश्रम करते हुए।
(23) फिर वह मूसा अलैहिस्सलाम को पराजित करने के लिए अपनी जाति के लोगों और अपने अनुयायियों को इकट्ठा किया, चुनाँचे उसने पुकार कर कहा :
(24) मैं तुम्हारा सबसे ऊँचा पालनहार हूँ। इसलिए तुम पर मेरे अलावा किसी दूसरे की आज्ञाकारिता नहीं है।
(25) तो अल्लाह ने उसे पकड़ लिया, चुनाँचे उसे इस दुनिया में समुद्र में डूबने के सज़ा दी और आख़िरत में उसे सबसे गंभीर यातना में डालकर दंडित करेगा।
(26) हमने फ़िरऔन को दुनिया और आख़िरत में जिस रूप में दंडित किया, उसमें अल्लाह से डरने वाले के लिए एक उपदेश है; क्योंकि वही उपदेशों से लाभान्वित होता है।
(27) (ऐ मरणोपरांत पुनर्जीवन का इनकार करने वालो) क्या अल्लाह के लिए तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन है या आकाश को पैदा करना, जिसे उसने बनाया है?!
(28) उसने उसके रूप को ऊपर की ओर ऊँचा बनाया और उसे सपाट बना दिया, जिसमें कोई छेद, या दरार, या दोष नहीं है।
(29) और उसकी रात को सूरज के डूबने पर अंधकारमय कर दिया और सूरज के निकलने पर उसकी रोशनी को प्रकट कर दिया।
(30) और आकाश को पैदा करने के बाद धरती को बिछा दिया और उसमें उसके फ़ायदे की चीज़ें रख दीं।
(31) उससे बहते (जल) स्रोतों के रूप में उसका पानी निकाला और उसमें ऐसे पौधे उगाए, जो जानवर चरते हैं।
(32) और पर्वतों को धरती पर मज़बूती से स्थिर कर दिया।
(33) यह सब (ऐ लोगो) तुम्हारे लिए और तुम्हारे मवेशियों के लिए लाभदायक चीज़ें हैं। अतः जिसने यह सब पैदा किया, वह उन्हें नए सिरे से पैदा करने में अक्षम नहीं है।
(34) फिर जब सूर में दूसरी बार फूँक मारी जाएगी, जिसकी भयावहता हर चीज़ को घेर लेगी और क़ियामत शुरू हो जाएगी।
(35) जिस दिन क़ियामत आ जाएगी, इनसान अपने किए हुए काम को याद करेगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
(36) और जहन्नम को लाया जाएगा और उसे देखने वालों के लिए आँखों के सामने प्रकट कर दिया जाएगा।
(37) तो जो व्यक्ति गुमराही में हद को पार कर गया।
(38) तथा उसने दुनिया के नश्वर जीवन को आख़िरत के बाकी रहने वाले जीवन पर प्राथमिकता दी।
(39) तो जहन्नम ही उसका ठिकाना है, जहाँ वह शरण लेगा।
(40) 41- 42- परंतु जो व्यक्ति अपने पालनहार के सामने खड़ा होने से डर गया और अपने नफ़्स को अल्लाह की हराम की हुई चीज़ का पालन करने से रोक लिया, जिसकी उसका नफ़्स इच्छा करता है, तो जन्नत ही उसका ठिकाना है, जहाँ वह निवास ग्रहण करेगा।
(41) 41- 42- परंतु जो व्यक्ति अपने पालनहार के सामने खड़ा होने से डर गया और अपने नफ़्स को अल्लाह की हराम की हुई चीज़ का पालन करने से रोक लिया, जिसकी उसका नफ़्स इच्छा करता है, तो जन्नत ही उसका ठिकाना है, जहाँ वह निवास ग्रहण करेगा।
(42) (ऐ रसूल) ये मरणोपरांत पुनः जीवित होने को झुठलाने वाले लोग आपसे पूछते हैं कि क़ियामत कब आएगी?
(43) आपको इसकी जानकारी नहीं है कि उन्हें बता सकें, और यह आपका काम नहीं है। आपका काम तो उसके लिए तैयारी करना है।
(44) क़ियामत के ज्ञान की अंतिमता केवल तुम्हारे पालनहार की ओर है।
(45) आप तो केवल उस व्यक्ति को डराने वाले हैं, जो क़ियामत से डरता है; क्योंकि वही है जो आपके डराने से लाभान्वित होता है।
(46) जिस दिन वे क़ियामत को अपनी आँखों से देखेंगे, तो (ऐसा समझेंगे) मानो वे अपने सांसारिक जीवन में केवल एक दिन की संध्या या उसकी सुबह ही ठहरे हैं।