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आशूरा का दिन

आइटम्स की संख्या: 10

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    मैं गर्ल्स कॉलेज में एक छात्रा हूँ। हमारे बीच शियाओं की बड़ी संख्या रहती है। वे लोग इस समय आशूरा के अवसर पर काले कपड़े पहनते हैं। तो क्या हमारे लिए इस बात की अनुमति है कि उसके विपरीत हम चमकीले रंगों वाले कपड़े पहनें और अधिक से अधिक श्रृंगार करें ? केवल इसलिए कि हम उन्हें चिढ़ायें और क्रोध दिलायें ! और क्या हमारे लिए उनकी गीबत करना और उन पर बद्-दुआ (शाप) करना जाइज़ है ? जबकि ज्ञात रहे कि वे हमारे लिए घृणा और द्वेष का प्रदर्शन करते हैं, तथा मैं ने उनमें से एक छात्रा को देखा कि वह ताबीज़ पहने हुए थी जिन पर मंत्र लिखे हुए थे और उसके हाथ में एक छड़ी थी जिस से वह एक छात्रा की ओर संकेत कर रही थी और मुझे उस से हानि पहुँचती थी और बराबर पहुँच रही है।

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    आशूरा के दिन लोगों के सुर्मा लगाने, स्नान करने, मेंहदी लगाने, हाथ मिलाने, अनाज पकाने, हर्ष व उल्लास का प्रदर्शन करने इत्यादि का क्या हुक्म है ... क्या इस बारे में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कोई सहीह हदीस आयी है ? या नहीं ? और यदि इन में से किसी चीज़ के बारे में कोई सहीह हदीस नहीं वर्णित है तो क्या इसका करना बिद्अत है या नहीं ? तथा दूसरा समूह जो कुछ मातम और शोक करता, प्यासा रहता, और इनके अलावा, रोना, चींखना, गरीबान फाड़ना आदि करता है, क्या उसका कोई आधार है ? या नहीं है ?

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    यह एक छोटा उपदेश है जिसमें इस्लामी कैलेंडर के अनुसार हिजरी वर्ष में मुहर्रम के महीने की विशेषताओं का वर्णन किया गया है, साथ ही मुहर्रम के दसवें दिन रखे जाने वाले आशूरा के उपवास का गुण भी बताया गया है।

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    मुहर्रम के महीने के प्रावधानः इअल्लाह का महीना मुहर्रमुल-हराम एक महान और हुर्मत वाला महीना है, जिसे अल्लाह तआला ने आकाश एवं धरती की रचना करने के समय ही से हुर्मत –सम्मान एवं प्रतिष्ठा- वाला घोषित किया है, तथा यह हिज्री-वर्ष का प्रथम महीना है। प्रस्तुत व्याख्यान में इस महीने की विशेषता तथा इस में धर्मसंगत रोज़े का उल्लेख किया गया है। मुहर्रम के महीने के प्रावधानः इअल्लाह का महीना मुहर्रमुल-हराम एक महान और हुर्मत वाला महीना है, जिसे अल्लाह तआला ने आकाश एवं धरती की रचना करने के समय ही से हुर्मत –सम्मान एवं प्रतिष्ठा- वाला घोषित किया है, तथा यह हिज्री-वर्ष का प्रथम महीना है। प्रस्तुत व्याख्यान में इस महीने की विशेषता तथा इस में धर्मसंगत रोज़े का उल्लेख किया गया है। इसी तरह आशूरा के बारे में वर्णित कमज़ोर व मनगढ़त हदीसों पर चेतावनी दी गई है।

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    मेरे ऊपर रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा अनिवार्य है और मैं आशूरा (दसवें मुहर्रम) का रोज़ा रखना चाहता हूँ। क्या मेरे लिए क़ज़ा करने से पहले आशूरा का रोज़ा रखना जाइज़ है ? तथा क्या मेरे लिए रमज़ान के रोज़े की क़ज़ा की नीयत से आशूरा (यानी दसवें मुहर्रम) और ग्यारहवें मुहर्रम का रोज़ा रखना जाइज़ है ? और क्या मुझे आशूरा के रोज़े की फज़ीलत प्राप्त होगी ?

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    मैं इस वर्ष आशूरा (दसवें) मुहर्रम का रोज़ा रखना चाहता हूँ। मुझे कुछ लोगों ने बताया है कि सुन्नत का तरीक़ा यह है कि मैं आशूरा के साथ उसके पहले वाले दिन (नवें मुहर्रम) का भी रोज़ा रखूँ। तो क्या यह बात वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसका मार्गदर्शन किया है ?

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    क्या यह जायज़ है कि मैं केवल आशूरा के दिन का रोज़ा रखूँ, उस से पहले एक दिन या उसके बाद एक दिन का रोज़ा न रखूँ ?

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    मैं ने सुना है कि आशूरा का रोज़ा पिछले साल के गुनाहों का कफ्फारा (प्रायश्चित) बन जाता है, तो क्या यह बात सही है ? और क्या हर गुनाह यहाँ तक कि बड़े गुनाहों का भी कफ्फारा बन जाता है ? फिर इस दिन के सम्मान का क्या कारण है ?

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    क्या मौसमों (मौसमों से मेरा मक़सद मीलाद और आशूरा इत्यादि जैसे अवसर हैं) और ईदों में परिवारजनों -भाईयों और चचेरे भाईयों- का एकत्रित होना और एक साथ भोजन करना जाइज़ है ? तथा क़ुर्आन को याद करने (उसे खत्म) करने के बाद ऐसा करने वाले के बारे में क्या हुक्म है ?

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    इस लेख में मुहर्रम के महीने और विशिष्ट रूप से उसकी दसवीं तारीख (आशूरा के दिन) की फज़ीलत, महत्व और उस दिन रोज़ा रखने के अज्र व सवाब और प्रतिफल का उल्लेख किया गया है। साथ ही साथ आत्म-निरीक्षण (नफ्स के मुहासबा) के महत्व को स्पष्ट किया गया है, विशेषकर नये वर्ष के प्रारम्भ पर।