- क़ुरआन करीम
- क़ुरआन में मननचिंतन, उसकी प्रतिष्ठा, उसका हिफ़्ज़ और तिलावत के शिष्टाचार
- तफ़सीर (क़ुरआन की व्याख्या)
- कुरआन के विज्ञान
- मसाहिफ़ (क़ुरआन की प्रतियाँ)
- क़ुरआन करीम के पाठ
- क़ुरआन करीम के अर्थों का अनुवाद
- पढ़े जाने योग्य उत्कृष्ट अनुवाद
- क़ुरआन के अर्थों के अनुवाद के साथ सस्वर पाठ
- विशिष्ट तिलावतें
- नोबल क़ुरआन और उसके वाहकों के शिष्टाचार
- हदीस
- अक़ीदा (आस्था)
- तौहीद (एकेश्वरवाद)
- इबादत (उपासना) और उसके प्रकार
- इस्लाम
- ईमान और उसके स्तंभ
- ईमान के मसायल
- एहसान
- कुफ्र (नास्तिकता)
- निफाक़ (पाखण्ड)
- शिर्क (अनेकेश्वरवाद) और उसका खतरा
- बिदअत (नवाचार) : उसके प्रकार एवं उदाहरण
- सहाबा और आले-बैत
- तवस्सुल
- वलायत और औलिया की करामतें
- जिन्न
- वफादारी और दुश्मनी तथा उसके प्रावधान
- अह्लुस्सुन्नह वल-जमाअह
- धर्म और पंथ
- संप्रदाय (पंथ)
- इस्लाम से संबद्ध संप्रदाय
- समकालीन वैचारिक सिद्धांत
- धर्मशास्त्र
- उपासनाएं
- लेनदेन के मसायल
- क़सम और मन्नत
- पारिवारिक मसायल का ज्ञान
- चिकित्सा, उपचार और शरई झाड़-फूँक
- खाद्य पदार्थ और पेय
- दंडनीय अपराध
- न्यायिक व्यवस्था
- जिहाद
- समसामयिक एवं उभरते हुए मुद्दों का न्यायशास्त्र
- अल्पसंख्यकों के मसाईल का ज्ञान
- इस्लामी राजनीति
- इस्लामी धर्मशास्त्र के मत
- फ़त्वे
- उसूल फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र के सिद्धांत)
- इस्लामी धर्मशास्त्र की किताबें
- विशेषताएं (खूबियाँ)
- अरबी भाषा
- इस्लाम का आह्वान
- Issues That Muslims Need to Know
- दिल को विनम्र करने वाली बातें और सदुपदेश
- भलाई का आदेश देना तथा बुराई से रोकना
- इस्लामी दावत की वस्तुस्थिति
- क़ुरआन करीम
अक़ीदा (आस्था)
आइटम्स की संख्या: 178
- हिन्दी Lecturer : माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी
अल्लाह के नामों एवं विशेषणों पर ईमान
- हिन्दी लेखक : माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी
कब्रों के पास नमाज़ न पढने की बीस दलीलें एवं कब्रों पे मस्जिद व भवन निर्माण का हुक्म
- हिन्दी Lecturer : माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी
सहाबा का सम्मान अहले सुन्नत वल जमात की अटूट धारणा
- हिन्दी
- हिन्दी
- हिन्दी
- हिन्दी लेखक : माजिद बिन सुलैमान अर्रस्सी
क़ब्रों के पास जाकर अल्लाह तआला से दुआ करना ननिंदनीय निदअत है
- हिन्दी
यह एक संक्षिप्त पुस्तिका है। इसमें तौह़ीद के उन मसायल एवं इस्लाम के मूल सिद्धान्तों का वर्णन है, जिनका सीखना तथा उन में विश्वास रखना हर मुसलमान पर अनिवार्य है। मालूम रहे कि इस पुस्तिका में वर्णित सारे मसायल (العقائد للأئمة الأربعة) "चारों इमामों के अक़़ीदे " की पुस्तकों से लिये गये हैं। अर्थात इमाम अबू ह़नीफ़ा, इमाम मालिक, इमाम शाफ़िई, इमाम अह़मद बिन ह़म्बल और उनके ऐसे अनुसरण करने वाले, जो हर प्रकार के मतभेद से बचते हुए अहले-सुन्नत वल-जमाअत के मार्ग पर चलते रहे।
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शिर्क की क़िस्में : प्रस्तुत वीडियो में शिर्क (अनेकेश्वरवाद) की किस्मों को वर्णन करते हुए शिर्क अक्बर (बड़े अनेकेश्वरवाद) के भेदों का उल्लेख किया गया है, जिनके कारण आदमी इस्लाम से बाहर निकल जाता है।और वे हैं अल्लाह की रुबूबियत ( प्रभुत्व), या उसकी उलूहियत (पूज्य होने) या उसके अस्मा व सिफात यानी के नामों और गुणों में किसी अन्य को अल्लाह का साझी या समकक्ष ठहराना।
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अनेकेश्वरवाद : प्रस्तुत वीडियो में अनेकेश्वरवाद का वर्णन किया गया है, जो मानव रचना की शुरुआत से लेकर वर्तमान समय तक अल्लाह की सबसे बड़ी अवज्ञा व अवहेलना है, यहाँतक कि अल्लाह सर्वशक्तमान ने उसे महापाप और महान अन्याय घोषित किया है और उसके करनेवाले को नरक में अमरत्व की धमकी दी है। अनेकेश्वरवाद या शिर्क का अभिप्राय : ’’अल्लाह सर्वशक्तमान के साथ उसकी रुबूबियत (स्वामित्व व प्रभुत्व) या इबादत (उपासना) या नामों और गुणों में किसी को साझीदार या समकक्ष बनाना’’ है।
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एकेश्वरवाद की किस्में : प्रस्तुत वीडियो में एकेश्वरवाद की तीनों क़िस्मों का वर्णन किया गया है, तौहीद रुबूबियत यानी अल्लाह के प्रभुत्व का एकेश्वरवाद, तौहीद उलूहियत यानी अल्लाह के देवत्व का एकेश्वरवाद, और तौहीद अस्मा व सिफात यानी अल्लाह के नामों और गुणों का एकेश्वरवाद।
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एकेश्वरवाद : प्रस्तुत वीडियो में उस एकेश्वरवाद का वर्णन किया गया है जो अल्लाह सर्वशक्तिमान का उसके दासों पर अधिकार है। अल्लाह ने उसी के कारणवश मानव रचना की, उसी के कारण संदेष्टाओं को भेजा और उनपर पुस्तकें अवतरित कीं। एकेश्वरवाद यह विश्वास रखना है कि अल्लाह तआला अपनी रुबूबियत (प्रभुत्व), उलूहियत (देवत्व) और नामों एवं गुणों में अकेला है, उसका कोई साझी नहीं।
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मुहम्मद रसूलुल्लाह की गवाही का अर्थः प्रस्तुत वीडियो में मुहम्मद रसूलुल्लाह की गवाही देने का अर्थ उल्लेख किया गया है और वह यह है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेशों का पालन किया जाए, आप ने जिन चीज़ों की सूचना दी है उसमें आपकी पुष्टि की जाए, जिससे आप ने रोका और मना किया है उससे बचा जाए, और अल्लाह की उपासना आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निर्धारित किए हुए तरीक़े पर किया जाए।
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ला इलाहा इल्लल्लाह की गवाही का अर्थः प्रस्तुत वीडियो में ’ला इलाहा इल्लल्लाह’ की गवाही देहे का अर्थ वर्णन करते हुए यह उल्लेख किया गया है इस कलिमा का उच्चारण करने का बाद उपासना को एकमात्र अल्लाह के लिए विशिष्ट करना और उसके अलावा सभी पूजा की जानेवाली चीज़ो का खण्डन करना, तथा इस कलिमा की अपेक्षा के अनुसार कार्य करना ज़रूरी हो जाता है।
- हिन्दी लेखक : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह
अल्लाह कौन हैः प्रस्तुत लेख में अल्लाह सर्वशक्तिमान के नाम का परिचय कराते हुए, अल्लाह के अस्तित्व और उसकी विशेषताओं के तथ्य तक पहुँचने के रास्ते का उल्लेख किया गया है।
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उसकी रचनाएँ उसका पता देती हैंः इस ब्रह्माण्ड में अल्लाह की अनगिनत रचनाएँ जो उसके अस्तित्व का सबसे महान प्रमाण हैं। प्रस्तुत लेख में पवित्र क़ुरआन में वर्णित कुछ चमत्कारों का उल्लेख किया गया है जिनसे अल्लाह के अस्तित्व का स्पष्ठ संकेत मिलता है।
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आखिरत के दिन पर ईमानः प्रस्तुत वीडियो में इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ ’आखिरत के दिन पर ईमान’ का उल्लेख किया गया है। आखि़रत के दिन से अभिप्रायः क़ियामत (महाप्रलय) का दिन है जिस में सारे लोग हिसाब और बदले के लिए उठाये जायेंगे। उस दिन को आखि़रत के दिन अर्थात अन्तिम दिन से इस लिए नामित किया गया है कि उसके पश्चात कोई अन्य दिन नहीं होगा, क्योंकि स्वर्गवासी स्वर्ग में अपना स्थान ग्रहण कर लेंगे और नरकवासी नरक में अपने ठिकाने लग जायेंगे। आखि़रत के दिन पर ईमान लाने में तीन चीज़ें सम्मिलित हैं : प्रथमः मृत्यु के बाद पुनः जीवित किए जाने पर ईमान लाना। द्वितीयः हिसाब और बदले पर ईमान लाना। तृतीयः स्वर्ग और नरक पर तथा उनके मख़्लूक़ का सदैव के लिए ठिकाना होने पर ईमान लाना।
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रसूलों पर ईमानः इस वीडियो में इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ ’रसूलों पर ईमान’ का उल्लेख किया गया है। और वह इस बात की दृढ़ता पूर्वक पुष्टि करना है कि अल्लाह तआला ने हर समुदाय में संदेष्टा भेजे हैं, जो उन्हें अकेले अल्लाह की उपासना करने, उसके साथ किसी को साझी न ठहराने और उसके अलावा की पूजा का इन्कार करने के लिए आमंत्रित करें। सब से पहले संदेष्टा नूह अलैहिस्सलाम और सब से अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। रसूलों पर ईमान लाने में चार चीज़ें सम्मिलित हैं : प्रथमः इस बात पर ईमान लाना कि उनकी रिसालत (ईश-दूतत्व) अल्लाह की ओर से सत्य है, अतः जिसने उनमें से किसी एक की रिसालत (पैग़म्बरी) को अस्वीकार किया उसने समस्त रसूलों के साथ कुफ्र किया। द्वितीयः जिन रसूलों का नाम हमें ज्ञात है उन पर उनके नामों के साथ ईमान लाना, जैसे मुहम्मद, इब्राहीम, मूसा, ईसा और नूह अलैहिमुस्सलातो वस्सलाम। यह पाँच ऊलुल अज़्म (सुदृढ़ निश्चय और संकल्प वाले) पैग़म्बर हैं। तृतीयः रसूलों की जो सूचनायें सहीह (शुद्ध) रूप से प्रमाणित हैं उनकी पुष्टि करना। चौथाः जो रसूल हमारी ओर भेजे गए हैं उनकी शरीअत पर अमल करना, और वह अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं जो समस्त मानव (तथा दानव) की ओर संदेशवाहक बनाकर भेजे गए हैं।
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फरिश्तों पर ईमानः प्रस्तुत वीडियो में इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ ’फरिश्तों पर ईमान’ का उल्लेख किया गया है। फरिश्ते एक अदृश्य मख्लूक़ हैं जो अल्लाह तआला की इबादत करते हैं, उन्हें रुबूबियत और उलूहियत की विशेषताओं में से किसी भी चीज़ का अधिकार नहीं, अल्लाह तआला ने उन्हें नूर (प्रकाश) से पैदा किया है और उन्हें अपने आदेश का सम्पूर्ण अनुपालन और उसे लागू करने की भर पूर शक्ति प्रदान की है। फरिश्तों पर ईमान लाने में चार चीज़ें सम्मिलित हैं : 1- उनके वजूद (अस्तित्व) पर ईमान लाना। 2- उन में से जिन के नाम हमें ज्ञात हैं (उदाहरणतः जिब्रील अलैहिस्सलाम) उन पर उनके नाम के साथ ईमान लाना, और जिनके नाम ज्ञात नहीं उन पर सार रूप से ईमान लाना। 3- उनकी जिन विशेषताओं को हम जानते हैं उन पर ईमान लाना, उदाहरण स्वरूप जिब्रील अलैहिस्सलाम की विशेषता के विषय में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह सूचना दी है कि आप ने उनको उन की उस आकृति (शक्ल) पर देखा है जिस पर उनकी पैदाईश हुई है, उस समय उनके छः सौ पर थे जो छितिज (उफुक़) पर छाए हुए थे। 4- अल्लाह तआला के आदेश से फरिश्ते जो कार्य करते हैं उन में से जिन कार्यों का हम को ज्ञान है उन पर ईमान लाना, उदाहरण स्वरूप अल्लाह तआला की तस्बीह (पवित्रता) बयान करना और किसी उदासीनता और आलस्य के बिना, रात-दिन उसकी उपासना में लगे रहना। इसी तरह फरिश्तों पर ईमान लाने के कुछ लाभों का उल्लेख किया गया है।
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किताबों पर ईमानः इस वीडियो में इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ ’किताबों पर ईमान’ का उल्लेख किया गया है। और वह इस बात की दृढ़ता पूर्वक पुष्टि करना है कि अल्लाह तआला ने मनुष्यों पर अनुकम्पा करते हुए उनके मार्गदर्शन के लिए अपने रसूलों पर पुस्तकें अवतरित की हैं ताकि इनके द्वारा वह लोक और परलोक में कल्याण और सौभाग्य प्राप्त करें। पुस्तकों पर ईमान लाने में चार चीज़ें सम्मिलित हैं 1- इस बात पर ईमान लाना कि वह पुस्तकें वास्तव में अल्लाह की ओर से अवतरित हुई हैं। 2- उन में से जिन पुस्तकों के नाम हमें मालूम हैं उन पर उनके नाम के साथ ईमान लाना, उदाहरण स्वरूप क़ुर्आन करीम जो हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अवतरित हुआ, तौरात जो मूसा पर अवतरित हुई, इन्जील जो ईसा पर अवतरित हुई और ज़बूर जो दाऊद पर अवतरित हुई, और जिन पुस्तकों के नाम हमें ज्ञात नहीं उन पर सार रूप से ईमान लाना। 3- उन पुस्तकों की सहीह सूचनाओं की पुष्ठि करना, जैसेकि क़ुर्आन की (सारी) सूचनायें तथा पिछली पुस्तकों की परिवर्तन और हेर फेर से सुरक्षित सूचनायें। 4- उन पुस्तकों में से जो आदेश निरस्त (मंसूख) नहीं किए गये हैं उन पर अमल करना और उन्हें प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर लेना, चाहे उनकी हिक्मत हमारी समझ में आये या न आये, पिछली समस्त आसमानी पुस्तकें क़ुर्आन करीम के द्वारा निरस्त हो चुकी हैं। इसी तरह पुस्तकों पर ईमान लाने के कुछ फायदों का उल्लेख किया गया है।