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कुरआन के विज्ञान

आइटम्स की संख्या: 3

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    मैं क़ुरआन करीम की अच्छी तरह तिलावत करने और उसे याद (कंठस्थ) करने पर सक्षम नहीं हूँ, तो अच्छी तरह क़ुर्आन तिलावत करने तथा उसे याद करने का तरीक़ा क्या है ? जबकि ज्ञात रहे कि हमें शिक्षा देने वाला और हमें पढ़ाने वाला कोई उपलब्ध नहीं है और हम बड़े हो चुके हैं।

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    इस पुस्तक में लेखक ने क़ुरआन की उन आयतों का तुलनात्मक अध्ययन किया है जिनमें वैज्ञानिक आँकड़ों का उल्लेख किया गया है जिनकी खोज मात्र वर्तमान युग में हुई है। अपने इस अध्ययन में वह इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि क़ुरआन का कथन आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों पर पूर्णतः ठीक उतरता है, जबकि बाइबल का कथन वैज्ञानिक दृष्टि से स्वीकार करने योग्य नहीं है। तथा उन्हें यह विश्वास हो गया कि क़ुरआन वास्तव में पैगंबर पर अवतरित एक ग्रंथ है। क्योंकि यह सोचा ही नहीं जासकता कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग का कोई व्यक्ति उन दिनों में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान की स्थिति के आधार पर ऐसे वक्तव्यों का लेखक हो सकता है। तथा अंत में उन्हों ने इस बात का चर्चा किया है कि इस संपूर्ण विश्व की सृष्टि एक अप्रत्याशित घटना मात्र या प्राकृतिक वरदान का फल नहीं है, बल्कि इसका एक सृष्टा है। क्योंकि सृष्टा के बिना किसी चीज़ का होना संभव नहीं है। और वह एक सर्वशक्तिमान अल्लाह है, जिसने मनुष्य को बुद्धि से सम्मनित किया है जो उसे अन्य जीवों से अलग करती है। यही नहीं बल्कि उसके मार्गदर्शन के लिए संदेशवाहकों को भेजा और उन पर पुस्तके उतारीं। किंतु पिछले संदेशों को बाद की पीढ़ी ने विकृत कर दिया, उन्हें परिवर्तित कर दिया। इस अंधकारमय युग में बंदो पर अल्लाह की कृपा यह हुई कि उसने अपने अंतिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को स्थायी और अंतिम मार्गदर्शन के साथ भेजा और उन पर अंतिम ग्रंथ क़ुरआन अवतरित किया। इसमें सत्य को आंकने के सभी माप-दंड पूर्णतः पाये जाते हैं, जिससस स्पष्ट होता है कि क़ुरआन ईश्वरीय वाणी है। अब यह मनुष्य का काम है कि वह अपनी बुद्धि से काम लेते हुए स्वयं सत्य की खोज करे और स्वयं ही यह फैसला भी करे कि इस प्रकट सत्य के प्रति उसे क्या नीति अपनानी चाहिए।

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    आसान क़ुर्आनिक कोशः क़ुर्आन करीम मानवता के नाम अल्लाह का अंतिम संदेश है जिसमें परलोक तक के लिए आने वाली मानवजाति के लिए सांसिरक जीवह में कल्याण, सफलता और सौभाग्या तथा परलोक में मोक्ष का मार्गदर्शन है। इसलिए सर्व मनुष्य के लिए इसके संदेश को समझना अति आवश्यक है जिसे उसके सृष्टा व पालनकर्ता ने भेजा है। प्रस्तुत पुस्तक हिंदी भाषियों को उनके पालनहार के अंतिम संदेश और मार्गदर्शन से अवगत कराने का एक सराहनीय प्रयास है। यह पुस्तक या कोश तीह भागों में विभाजित है, प्रथम भाग मे प्रति दिन पढ़ी जाने वाली छोटी सूरतों, नमाज़ की दुआओं, सुबह शाम ... इत्यादि की दुआओं का अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। जबकि दूसरे भाग में बेसिक अरबी व्याकरण का उल्लेख किया गया है। तीसरे और अंतिम भाग में पूरे क़ुर्आन के कठिन शब्दों का अर्थ वर्णन किया गया है।