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शिर्क (अनेकेश्वरवाद) और उसका खतरा

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    अल्लाह के अतिरिक्त से प्रार्थना करना अवैध है पचास तर्कों के आलोक में।

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    यह पुस्तक उस तौहीद (एकेश्वरवाद) की वास्तविकता को स्पष्ट करती है जिसके साथ अल्लाह ने समस्त संदेष्टा को अवतरित किया, तथा इस एकेश्वरवाद के विषय में अनेकेश्वरवादियों की ओर से व्यक्त किए जाने वाले संदेहों का खंडन करती है। लेखक ने इसमें तौहीद एवं शिर्क का अर्थ और उनके भेद, धरती पर घटित सर्वप्रथम शिर्क की घटना, तथा संसार में प्रचलित शिर्क के विभिन्न रूपों और इस समुदाय में शिर्क की बाहुल्यता एवं उसके पनपने के कारणों वर्णन किया है। उन्हीं में से एक व्यापक कारण वे संदेह हैं जिनका अनेकेश्वरवादी आश्रय लेते हैं और इस घोर पाप के लिए उन्हें अपना आधार मानते हैं। लेखक ने ऐसे 12 संदेहों का उल्लेख कर उनका स्पष्ट सत्तर दिया है। अंत में इस घोर पाप को करने वाले के भयंकर और दुष्ट परिणामों का चर्चा करते हुए इस से सावधान किया है।

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    इस पुस्तिका में इस्लामी अक़ीदा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मसाइल को प्रश्न-उत्तर के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ये मसअले शैख मुहम्मद जीमल ज़ैनू की पुस्तक (अल-अक़ीदा अल-इस्लामिय्या मिनल किताबि वस्सुन्नतिस्सहीहा) से संकलित किए गए हैं। इसमें शिर्क, तौहीद, जादू, वसीला, दुआ, तसव्वुफ, क़ब्रों की जि़यारत और उस पर सज्दा करना और उसे छूना इत्यादि जैसे मसाइल पर चर्चा किया गया है।

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    तक़्वियतुल-ईमान : यह उर्दू भाषा में लिखित सुप्रसिद्ध पुस्तक है जिसे पढ़ कर लाखों लोग एकेश्वरवाद से परिचित हुए। इस पुस्तक मे तौहीद को प्रामाणित करने तथा शिर्क का खण्डन करने से संबंधित आयात एंव अहादीस

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    मुसलमान के अक़ीदा से संबंधित यह एक बात-चीत है जो एक शांतिपूर्ण वातानरण में अब्दुल्लाह और अब्दुन्नबी नामी दो व्यक्तियों के बीच हुई है। इस में सर्वश्रेष्ट सत्य कर्म तौहीद –एकेश्वरवाद- की वास्तविकता तथा महा पाप शिर्क –अनेकेश्वरवाद-और उन के विषय में मुसलमान जन साधारण के बीच पाए जाने वाले सन्देहों और ग़लतफहमियों का खण्डन किया गया है।

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    इस किताब में है । इस बात की ताईद में दस तरह की दलीलें कि एकमात्र प्रभु अल्लाह का आश्रय लेना आवश्यक है । दुआ इबादत है और वह सिर्फ अल्लाह ही का हक है । गैरुल्लाह से ऐसी चीजें माँगना जिन पर अल्लाह के अलावा कुदरत नहीं रखता शिर्क है । अम्बिया व रुसुल और नेक लोग यहाँ तक कि फ़रिश्ते भी अल्लाह के अलावा किसी को पुकारते थे और न ही उन से माँगते थे । उनकी इत्तिबा करना ज़रूरी है ।