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आइटम्स की संख्या: 51

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    हिंदू और मुस्लिम के बीच एक शांत संवाद

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    इस किताब में है । इस बात की ताईद में दस तरह की दलीलें कि एकमात्र प्रभु अल्लाह का आश्रय लेना आवश्यक है । दुआ इबादत है और वह सिर्फ अल्लाह ही का हक है । गैरुल्लाह से ऐसी चीजें माँगना जिन पर अल्लाह के अलावा कुदरत नहीं रखता शिर्क है । अम्बिया व रुसुल और नेक लोग यहाँ तक कि फ़रिश्ते भी अल्लाह के अलावा किसी को पुकारते थे और न ही उन से माँगते थे । उनकी इत्तिबा करना ज़रूरी है ।

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    अल्लाह जल्ल जलालुहु (सर्वशक्तिमान व महामहिम) प्रेम करने वालों का मित्र हैः यह पुस्तक अल्लाह तआला के अस्मा -ए- ह़ुस्ना (सुंदर व प्यारे नामों) पर ईमान से परिपूर्ण एक अछूती शैली में प्रकाश डालती है, अल्लाह तआला के उन नामों के मध्य तुलनात्मक ढ़ंग अपनाते हुये जो एक ही यौगिक से निकले हैं, उदाहरणस्वरूपः अल्लाह एवं इलाह, रह़मान एवं रह़ीम तथा वाह़िद एवं अह़द ... इत्यादि।

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    मैल्कम एक्सः «मैल्कम एक्स» या «मालिक शाबाज़» एक प्रसिद्ध अमेरिकी इस्लामी धर्म उपदेशक हैं, जिन्हों ने अमेरिका में इस्लामी आंदोलन के आचरण को सही किया जो बुरी तरह सत्यमार्ग से भटक गया था। उन्हों ने शुद्ध अक़ीदा के लिए आमंत्रित किया और उस पर धैर्यपूर्वक सुदृढ़ रहे यहाँ तक कि उसका आमंत्रण देते और सत्य की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। प्रस्तुत पुस्तिका में उनकी जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    इस किताब में दुनियाभर के ग्यारह ईसाई पादरियों और धर्मप्रचारकों की दास्तानें हैं जिन्होंने इस्लाम अपनाया। गौर करने वाली बात यह है कि ईसाईयत में गहरी पकड़ रखने वाले ये ईसाई धर्मगुरू आखिर इस्लाम अपनाकर मुसलमान क्यों बन गए ? आज जहाँ इस्लाम को लेकर दुनियाभर में गलतफ़हमियां हैं और फैलाई जा रही हैं, ऐसे में यह किताब मैसेज देती है कि इस्लाम वैसा नहीं है जैसा उसका दुष्प्रचार किया जा रहा है।

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    इस पुस्तिका में यह उल्लेख किया गया है कि समस्त मानवीय धर्मों में मानवता और नैतिकता सम्बन्धी शिक्षाओं का वर्णन है, तथा विशेष रूप से इस्लाम धर्म के मूल ग्रंथ दिव्य कुरआन की अमृत वाणियों और मानवता उपकारक पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मधुर सन्देशों में इसका व्यापक और स्पष्ट वर्णन हुआ है, स्वयं पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इसके सर्वप्रथम और महान आदर्श नमूना थे, आपके बाद आपके उत्तराधिकारियों ने भी अपने व्यवहार से इसका प्रचार किया। अतः आज एक ऐसे समय में, जबकि मानव जाति, मानवता और नैतिकता खो देने के कारण, चारों ओर अशान्ति, अव्यवस्था, पारस्परिक घृणा, द्वेष, और अनैतिकता का शिकार है - इस बात की आवश्यकता बढ़ जाती है कि इस्लाम धर्म की मानवता, नैतिकता, उसके गुणों, सिद्धांतों, तर्कसिद्ध शिक्षाओं को प्रस्तुत व प्रदर्शित किया जाये ताकि उनका अनुसरण करके मानव अपना कल्याण कर सके और लोक परलोक में सौभाग्य से लाभान्वित हो। यह पुस्तिका इसी बात का आमंत्रण देती है।

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    ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के अंतिम संदेष्टा हैं जिन्हें अल्लाह सर्व मानव जाति की ओर अपना संदेश्वाहक बनाकर भेजा है। अतः आप केवल मुसलमानों के लिए आदर्श नहीं हैं बल्कि परलोक के दिन तक आने वाली सर्वमानव जाति के लिए मार्गदर्शक और सर्वश्रेष्ठ आदर्श हैं। इस पुस्तिका में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन और धर्म संदेश के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओ पर संछिप्त के साथ प्रकाश डाला गया है।

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    इस्लाम आपका जन्माधिकार हैः इस्लाम ही वह अंतिम धर्म है जिसे अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मानवता के लिए चयन किया है,जिसको स्वीकारना प्रत्येक मनुष्य पर अनिवार्य है और उसी के मार्न पर चलकर ही मनुष्य को मोक्ष, कल्याण, सफलता और वास्तविक सौभाग्य... प्राप्त हो सकता है। ऐसा क्यों है, इसके कारण क्या हैं ? और इस्लाम ही एकमात्र विकल्प क्यों ? इन सब तत्वों की जानकारी के लिए यह पुस्तिका सत्य के खोजी के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है।

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    प्रस्तुत पुस्तक एक संग्रह है 80 ऐसी औरतों की कहानियों का जो अधिकांश यूरोप और अमेरिका से संबंध रखती हैं। इन सौभाग्यशाली महिलाओं को वास्तव में सच्चाई की तलाश थी और उन्हों ने गहन अध्ययन, सोच-विचार और संतुष्टि के बाद इस्लाम ग्रहण किया। इस्लाम स्वीकारने के बाद आज़माइशों और संकटों ने इनका रास्ता रोकने की कोशिश की, मगर ये साहसी महिलायें पहाड़ के समान अपने फैसले पर जमी रहीं। यह किताब सत्य के खोजियों के लिये मील का पत्थर सिद्ध होगी।

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    इस्लाम एक परिपूर्ण व्यापक धर्म है जो जीवन के सभी छेत्रों को सम्मिलित है। इस्लाम के अनुयायी का अपने उत्पत्तिकर्ता के साथ किस तरह का संबंध होना चाहिए तथा जिस समाज में वह जीवन यापन कर रहा है उसके विभिन्न सदस्यों के साथ उसका संबंध कैसा होना चाहिए, दोनों पक्षों को इस्लाम ने स्पष्ट किया है। इस पुस्तिका में यह उल्लेख किया गया है कि सर्व जगत के पालनहार के प्रति निष्ट होने के छेत्र क्या हैं, उसकी आराधना और उपासना किस प्रकार तथा उसके नियम क्या हैं। जिन्हें ईमान और इस्लाम के अर्कान यानी मूल आधार और सिद्धांत के नाम से जाना जाता है।

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    अल्लाह की तौहीद-एकेश्वरवाद-और उस की उपासना के अभिप्राय के संबंध में मुशरिकीन के द्वारा जो सन्देह व्यक्त किये जाते हैं उन का उल्लेख कर के क़ुर्आन और हदीस का प्रमाणों द्वारा निराकरण किया गया है।