- क़ुरआन करीम
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- हिन्दी मुफ्ती : स्थायी समिति वैज्ञानिक अनुसंधान, इफ्ता, दावत एंव निर्देश अनुवाद : अताउर्रहमान ज़ियाउल्लाह प्रकाशक : इस्लामी आमन्त्रण एंव निर्देश कार्यालय रब्वा, रियाज़, सऊदी अरब
उस आदमी का क्या हुक्म है जो ला इलाहा इल्लल्लाह की गवाही देता है, नमाज़ क़ायम करता है, परंतु ज़कात नहीं देता है और वह इससे कभी सहमत नहीं होता है ? यदि वह मर जाता है तो उसका क्या हुक्म है, क्या उसकी नमाज़ जनाज़ा पढ़ी जायेगी या नहीं ?
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कुछ विद्वानों का कहना है कि जिन नक़दी धनों में ज़कात अनिवार्य है उन का निसाब (यानी ज़कात के अनिवार्य होने की न्यूनतम मात्रा) यह है कि वह 56 (छप्पन) सऊदी रियाल के बराबर हो जाए। किंतु कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि यह निसाब एक ऐसे समय में निर्धारित किया गया था जब लोगों के हाथों में मुद्रा कम थी, लेकिन आज सोने और चाँदी की क़ीमत बदल गर्इ है, जबकि ज्ञात रहे कि अतीत में 56 रियाल आजकल के दो हज़ार सऊदी रियाल (2000) के बराबर है, तो इस मुद्दे में निर्णायक हुक्म क्या है ?
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मुझे रजब के महीने में एक राशि प्राप्त हुर्इ, और मैं रमज़ान के महीने में उसकी ज़कात निकालना चाहता हूँ, तो क्या यह वैध है ? और इसका कारण यह है कि रमज़ान के महीने में ज़रूरतमंदों का पता चलता है।
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क्या ज़कात के माल से या क़ुर्बानी के दिन क़ुर्बानी के गोश्त से अनेकेश्वरवादी नास्तिक पड़ोसी को, जिसके और आपके बीच कोर्इ रिश्तेदारी नहीं है, देना जायज़ है ?
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क्या ज़कात को रूपये (नक़द), या गेहूँ, या चावल, या किसी भी अनाज की शक्ल में दिया जा सकता है ? क्या उसे नक़द मुद्रा के रूप में देना जायज़ है ? क्या उस धन में ज़कात अनिवार्य है जिसके द्वारा वह व्यापार करने की इच्छा रखता है, और अगर उस धन की ज़कात निकाली जायेगी तो वह उसकी कितनी ज़कात निकालेगा ? अल्लाह तआला आपकी उस चीज़ के लिए रक्षा करे जिसमें इस्लाम और मुसलमानों का कल्याण है।
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उस आदमी का क्या हुक्म है जिसके पास ज़कातुल फित्र निकालने का सामर्थ्य (ताक़त) है फिर भी वह ज़कात न निकाले ?
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मैं एक यात्रा में था और ज़कातुल फित्र देना भूल गया, यात्रा सत्ताईसवीं रमज़ान की रात को थी और हम ने अभी तक ज़कातुल फित्र नहीं निकाली है।
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क्या ज़कातुल फित्र निकालने का समय ईद की नमाज़ के बाद से उस दिन के अंत तक है ?
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ज़कातुल फित्र की मात्रा क्या है ? और वह कब निकाली जायेगी? तथा वह किस को दी जायेगी ? और क्या उसे मस्जिद के इमाम की तरफ से एकत्रित करना फिर उसे उसके हक़दारों पर वितरित करना चाहे कुछ समय के बाद ही क्यों न हो, जाइज़ है ? और क्या यह मुद्रा स्फीति (मुद्रा विस्तार) के अधीन है ? और क्या उसे उदाहरण के तौर पर अफगानिस्तान में जिहाद करने वालों को भेजना या उसे उदाहरण के तौर पर मस्जिद के निर्माण के कोष में देना जाइज़ है ?
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क्या यह हदीस सहीह है कि "रमज़ान का रोज़ा उठाया नहीं जाता यहाँ तक कि ज़कातुल फित्र अदा कर दिया जाये" ? और यदि मुसलमान रोज़ेदार ज़रूरतमंद है, ज़कात के निसाब का मालिक नहीं है तो क्या उक्त हदीस के सहीह होने के कारण या उसके अलावा अन्य सुन्नत से प्रमाणित सही शरई प्रमाण के कारण उस पर ज़कातुल फित्र का भुगतान करना अनिवार्य है ?
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मेरे पिता ने अपने जीवन में मुझे यह वसीयत की थी कि मैं अपनी यथा शक्ति प्रति वर्ष पंद्रह शाबान की रात को खैरात किया करूँ। और वास्तव में, अभी तक मैं ऐसा करता रहा हूँ। किन्तु कुछ लोगों ने इस पर मेरी निंदा करते हुए कहा कि ऐसा करना आप के लिए वैध नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या मेरे पिता की वसीयत के अनुसार पंद्रहवीं शाबान की रात को यह खैरात करना जाइज़ है, या जाइज़ नहीं है ? हमें शरीअत के हुक्म की जानकारी प्रदान करें, सर्वशक्तिमान अल्लाह आप को अच्छा बदला दे।