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आइटम्स की संख्या: 113

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    अल्लाह कौन हैः प्रस्तुत लेख में अल्लाह सर्वशक्तिमान के नाम का परिचय कराते हुए, अल्लाह के अस्तित्व और उसकी विशेषताओं के तथ्य तक पहुँचने के रास्ते का उल्लेख किया गया है।

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    उसकी रचनाएँ उसका पता देती हैंः इस ब्रह्माण्ड में अल्लाह की अनगिनत रचनाएँ जो उसके अस्तित्व का सबसे महान प्रमाण हैं। प्रस्तुत लेख में पवित्र क़ुरआन में वर्णित कुछ चमत्कारों का उल्लेख किया गया है जिनसे अल्लाह के अस्तित्व का स्पष्ठ संकेत मिलता है।

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    मानवाधिकार की आधारशिला: इस्लाम एक संपूर्ण व्यापक धर्म है जो मनुष्य के सभी धार्मिक और सांसारिक हितों की रक्षा करता है और उसके लिए मानक स्थापित करता है। चुनांचे उसने मानव जाति के सभी श्रेणियों के लिए अधिकार निर्धारित किए हैं, जिनसे अभी तक मानवता अपने इतिहास में अनभिज्ञ थी। जब अल्लाह सर्वशक्तिमान ने इस्लाम धर्म को पूरा कर देने, अपने अनुग्रह को संपन्न कर देने और मानवता के लिए इस्लाम को धर्म के रूप मे पसंद कर लेने की घोषणा कर दी, तो पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हज्ज के अवसर पर एक ऐतिहासिक भाषण दिया और उसमें लोगों के अधिकारों का उल्लेख किया, जो मानव अधिकारों के लिए नींव रखने के रूप में देखा जाता है। प्रस्तुत लेख में इसी का वर्णन है।

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    एकेश्वरवाद की वास्तविकता व अपेक्षाएं : एकेश्वरवाद ही सभी संदेष्टाओं के मिशन का आधार रहें है। अल्लाह सर्वशक्तिमान को उसके सर्वसंसार का एकमात्र सृष्टा, पालनहार और उपास्य व पूज्य होने, तथा उसके नामों और गुणों में उसे एकता मानने का नाम एकेश्वरवाद है। यह धारणा अगर विश्वास बन जाए तो मनुष्य और उसके जीवन पर बहुत गहरा, व्यापक और जीवंत व जीवन-पर्यंत सकारात्मक प्रभाव डालती है। लेकिन यह उसी समय संभव होता है जब एकेश्वरवाद की वास्तविकता भी भली-भांति मालूम हो तथा उसकी अपेक्षाएं (तक़ाज़े) अधिकाधिक पूरी की जाएं। वरना ऐसा हो सकता है और व्यावहारिक स्तर पर ऐसा होता भी है कि एक व्यक्ति ’एक ईश्वर’ को मानते हुए भी जानते-बूझते या अनजाने में अनेकेश्वरवादी (मुशरिक) बन जाता, तथा एकेश्वरवाद के फ़ायदों और सकारात्मक प्रभावों से वंचित रह जाता है। अनेकेश्वरवाद क्या है, इसे समझ लेना एकेश्वरवाद की वास्तविकता को समझने के लिए अनिवार्य है। प्रस्तुत लेख में इसका वर्णन किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख में इस्लामी कैलेंडर के प्रथम महीने मुहर्रम का चर्चा करते हुए इस महीने की दसवीं तारीख को रोज़ा रखने की फज़ीलत का उल्लेख किया गया है। इसी तरह इस रोज़े की एतिहासिक पृष्ठभूमि की ओर भी संकेत किया गया है कि किस तरह अल्लाह ने इसी दिन अपने एक महान पैगंबर मूसा अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम को फिरऔन जैसे कुख्यात अहंकारी से मुक्ति प्रदान किया, जिसका आभारी होकर मूसा अलैहिस्सलाम ने इस दिन रोज़ा रखा और अपनी कौम को भी रोज़ा रखने के लिए कहा। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भी इस दिन का रोज़ा रखा, सहाबा को इसका रोज़ा रखने का हुक्म दिया। दुर्भाग्य से इसी महीने में हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत की दुखद धटना पेश आई। जिसका इस लेख में खुलासा किया गया है।

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    तौहीद अर्थात एकेश्वरवाद, अल्लाह तआला को उसके सर्वसंसार का एकमात्र सृष्टा, पालनहार, उपास्य व पूज्य होने, तथा उसके नामों और गुणों में एकता मानने का नाम है। एकेश्वरवाद का मानव के जीवन और समाज पर महान प्रभाव पड़ता है। एकेश्वरवाद मनुष्य को अपने पालनहार के सिवाय सब की गुलामी से मुक्त कर देता है, उसके मन को मिथकों और कल्पनाओं से फ्री कर देता है, उसकी आत्मा को अपमान और किसी के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय उसके अंदर आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पैदा कर देता है और इच्छाओं की घेराबंदी से आज़ाद कर देता है। इसके अलावा एकेश्वरवाद के अन्य प्रभाव हैं जिनका प्रस्तुत लेख में उल्लेख किया गया है।

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    हमारे महान संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के व्यक्तित्व पर आक्रमण के बाद, पूरी दुनिया में मुसलमानों की भावनाएं उत्तेजित हो गईं और इस अत्याचारी व अन्यायिक आक्रामक व्यवहार के प्रति अपने आक्रोष, क्रोध और अस्वीकृति व्यक्त करने लगीं। यह एक क्रान्ति है जो मूलतः मुसलमानों के अपने सम्मानित पैगंबर से मोहब्बत रखने के परिणाम स्वरूप पैदा हुई है। यह एक सराहनीय चीज़ है, परंतु इस मोहब्बत की जाँच परख करने और इसकी वास्तविकता पर चिंतन करने से यह स्पष्ट होता है कि यह अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँचती है। इस पुस्तिका में इसी चीज़ का खुलासा करने का प्रयास किया गया है।

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    मनुष्य की रचना का मूल उद्देश्य अल्लाह सर्वशक्तिमान की उपासना व आराधना है। इस इबादत की कुछ शर्तें और नियम है जिनके बिना उपासना शुद्ध व मान्य नहीं होती। इस लेख में इस्लाम की दृष्टि में सही उपासना (इबादत) की शर्तों का उल्लेख किया गया है। चुनाँचे इबादत के शुद्ध व मान्य होने के लिए उसका उसके सबब (कारण), जाति (वर्ग, प्रकार), मात्रा, कैफियत (ढंग एवं तरीक़ा), समय और स्थान के अंदर शरीअत के अनुकूल होना अनिवार्य है।

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    इस लेख में शहादतैनः ला-इलाहा इल्लल्लाह और मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह की शहादत का वास्तविक अर्थ तथा उन शर्तों का उल्लेख किया गया है जिनका शहादतैन के पढ़ने वाले के अन्दर पाया जाना अनिवार्य है, ताकि यह शहादत उसके लिए आखिरत में लाभदायक सिद्ध हो।

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    इस्लाम यह हैः संछिप्त शब्दों एंव स्पष्ट शैली में इस्लाम धर्म, उसके सिद्धान्तों, स्तम्भों, विशेषताओं और उद्देशों का सम्पूर्ण परिचय। इस्लाम को समझने अथवा उस में प्रवेश करने के अभिलाषियों के लिए यह लेख एक कुंजी है।

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    सम्पूर्ण इस्लाम जिस के साथ अल्लाह ने अपने संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भेजा वह पाँच स्तम्भों पर आधारित है। कोई मनुष्य उस समय तक पक्का और सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता जब तक कि वह उन पर ईमान न ले आए और उन पर कार्य बद्ध न हो। यह लेख में उन्हीं स्तम्भों पर आधारित है।

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    इस्लाम के बारे में जानें

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    सुबह एवं शाम के अज़कार

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    मैं मुसलमान हूँ

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    सुखी जीवन के उपयोगी साधनः हिंदी भाषा की यह पुस्तक डॉक्टर हैस़म सरहान द्वारा रचित है। वास्तव में यह पुस्तक अल्लामा सादी रह़िमहुल्लाह द्वारा लिखित मूल पुस्तक “सुखी जीवन के लिए उपयोगी संदेश” का संक्षिप्तीकरण है, जिसमें उन्होंने उन उपयोगी माध्यमों का उल्लेख किया है जिन के द्वारा सौभाग्यशाली जीवन जीना सुगम हो जाता है, इसके अतिरिक्त उन साधनों एवं ढ़ंगों का उल्लेख करने के साथ-साथ उन्हें प्राप्त करने के उपाय भी सुझाए गए हैं, विशेष बात यह है कि ये सभी बातें क़ुरआन एवं ह़दीस़ से मय प्रमाण बयान की गई हैं। लेखक महोदय ने छोटे-छोटे बिंदुओं के रूप में व्यवस्थित कर इसे सुंदर ढ़ंग से प्रस्तुत किया है।

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    यह छोटी सी पुस्तक क़ुरआन व हदीस एवं मुसलमानों की सहमति पर आधारित साक्ष्यों को बयान करती है जो संगीत पर आधारित गानय व संगीत एवं बेकार खेलकूद के वाद्ययंत्र की अवैधता पर साक्षी है; इसके अतिरिक्त इन की अवैधता का कारण भी बयान करती है, वह यह कि गानय एवं संगीत हृदय में रोग उत्पन्न कर देता है और इस से क़ुरआन की प्रियता को दूर कर देता है, यही कारण है कि जिस मनुष्य को संगीत सुनने की लत लग जाती है वह (अन्य मनुष्य के विपरीत) सबसे कम क़ुरआन याद करने, उसका सस्वर पाठ करने, उसको अपने जीवन में लागू करने के अभ्यासी होते हैं, अल्लाह तआ़ला इस बात से भली-भांति अवगत है के मनुष्य का सुधार किन माध्यमों से हो सकता है एवं कौन सी चीजें उनमें बिगाड़ उत्पन्न कर सकती हैं इस कारणवश अल्लाह ने उन्हें क़ुरआन व हदीस सुनने का आदेश दिया है, अच्छी बातों को सुनना उनके लिए वैध किया है एवं संगीत व नकारात्मक बातों को सुनना उनके लिए अवैध कर दिया है, क्योंकि इससे हृदय रोगी हो जाता है और जब हृदय रोगी हो जाए तो शरीर के संपूर्ण अंग रोग से पीड़ित हो जाते हैं।

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    दुश्मनों के क्या अधिकार हैं? इसका परिचय सबसे पहले इस्लाम ने दिया है। युद्ध के शिष्टाचार की कल्पना से दुनिया बिल्कुल बेख़बर थी। पश्चिमी दुनिया इस कल्पना से पहली बार सत्रहवीं सदी के विचारक ग्रोशियूस (Grotius) के ज़रिये से परिचित हुई। मगर अमली तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध नियम उन्नीसवीं सदी के मध्य में बनाना शुरू हुए। इससे पहले युद्ध के शिष्टाचार का कोई ख़्याल पश्चिम वालों के यहां नहीं पाया जाता था। जंग में हर तरह के जु़ल्म व सितम किए जाते थे और किसी तरह के अधिकार जंग करने वाली क़ौम के नहीं माने जाते थे। उन्नीसवीं सदी में और उसके बाद से अब तक जो नियम भी बनाए गए हैं, उनकी अस्ल हैसियत क़ानून की नहीं, बल्कि संधि की सी है। उनको अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून कहना हक़ीक़त में ‘क़ानून’ शब्द का ग़लत इस्तेमाल है। क्योंकि कोई क़ौम भी जंग में उस पर अमल करना अपने लिए ज़रूरी नहीं समझती। सिवाए इसके कि दूसरा भी उसकी पाबन्दी करे। यही वजह है कि हर जंग में इन तथाकथित अन्तर्राष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं और हर बार उन पर पुनर्विचार किया जाता रहा, और उन में कमी व बेशी होती रही। इसके विपरीत, इस्लाम ने जंग के जो शिष्टाचार बताए हैं, उनकी सही हैसियत क़ानून की है, क्योंकि वे मुसलमानों के लिए अल्लाह और रसूल के दिए हुए आदेश हैं, जिनकी पाबन्दी हम हर हाल में करेंगे, चाहे हमारा दुश्मन कुछ भी करता रहे। अब यह देखना हर ज्ञान रखनेवाले का काम है कि जो जंगी-नियम चौदह सौ साल पहले तय किए गए थे, पश्चिम के लोगों ने उसकी नक़ल की है या नहीं, और नक़ल करके भी वह जंग की सभ्य मर्यादाओं के उस दर्जे तक पहुंच सका है या नहीं, जिस पर इस्लाम ने हमें पहुंचाया था।

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    जीवन का सीधा और सच्चा मार्ग पाने के लिए मनुष्य को सदैव ईश्वरीय मार्ग-प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। इससे हटकर वह सीधा मार्ग नहीं पा सकता। इसी उद्देश्य के लिए अल्लाह सर्वशक्तिमान ने किताबें उतारीं और अपने सन्देष्टा भेजे, जिन्हों ने लोगों के समक्ष अल्लाह के संदेश को प्रस्तुत किया, उसके अभिप्राय को स्पष्ट किया और उसके अनुसार चलकर दिखाया ; ताकि लोगों को अल्लाह के आदेशों के अनुसार जीवन व्यतीत करने का तरीक़ा पता चल जाए। इसकी अंतिम कड़ी हमारे सन्देष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, जिन पर नुबुव्वत व रिसालत का सिलसिला संपन्न हो जाता है और आपकी रिसालत को स्वीकार करना और उसका अनुपालन करना परलोक तक आनेवाली समस्त मानव जातियों के लिए कर्तव्य और दायित्व करार दिया जाता है, क्योंकि इसके बाद अल्लाह की ओर से कोई अन्य संदेष्टा, कोई और मार्ग-दर्शक अवतरित नहीं होगा। प्रस्तुत लेख में अंतिम सन्देष्टा के जीवन आदर्श का उल्लेख किया गया है।

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    प्रस्तुत लेख मदीना नबविया की ज़ियारत करनेवालों के लिए कुछ निर्देशों पर आधारित है जिसमें उन चीज़ों का उल्लेख किया गया है जिनका करना वैध और धर्मसंगत है, जैसे - मस्जिदे नबवी की ज़ियारत करना और उसमें नमाज़ पढ़ना, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र और आपके दोनों साथियों की क़ब्रों की ज़ियारत और उन पर सलाम, तथा मस्जिदे क़ुबा की ज़ियारत और उसमें नमाज़ पढ़ना, बक़ीउल गर्क़द और उहुद के शहीदों की उनपर सलाम पढ़ने और उनके लिए दुआ करने के लिए ज़ियारत करना। इसी तरह उन चीज़ों का भी उल्लेख किया गया है जिनका करना अवैघ और नाजायज़ है, जैसे - मस्जिदे नबवी के किसी भाग या नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कमरे की दीवारों या जालियों आदि को छूकर या चूकमकर बर्कत हासिल करना वग़ैरह।

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    प्रस्तुत लेख में मस्जिदे नबवी की ज़ियारत के शिष्टाचार और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा आपके दोनों साथियों अबू बक्र व उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा पर सलाम पढ़ने के तरीक़े का उल्लेख किया गया है।

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