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आइटम्स की संख्या: 113

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) उम्मुल-मोमिनीन सैयिदा आयशा बिन्त अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हुमा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों में आपके निकट सबसे प्रिय और चहेती थीं, उम्महातुल मोमिनीन के बीच उनका महान स्थान था। वह क़ुरआन व हदीस और इस्लामी धर्मशास्त्र मे निपुण महिला थीं। इस लेख में सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु की संक्षेप जीवनी और तीन ऐसे पहलुओं का उल्लेख किया गया है जिनमें वह उत्कृष्ट थीं।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) उम्मुल-मोमिनीन सैयिदा हफ्सा बिन्त उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हुमा एक महान सहाबी खुनैस बिन हुज़ैफा अस-सहमी रज़ियल्लाहु अन्हु की पत्नी थीं, जो उहुद की लड़ाई में एक मार लगने के कारण अल्लाह को प्यारे हो गए थे। उसके बाद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे शादी की और वह उम्मुल मोमिनीन होगईं। वह जिबरील अलैहिस्सलाम की सच्ची गवाही के अनुसार बहुत रोज़ा रखनेवाली और बहुत नमाज़ पढ़नेवाली थीं, तथा स्वर्ग में भी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी हैं। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा ज़ैनब बिन्त खुज़ैमा अल-हारिस रज़ियल्लाहु अन्हा को गरीबों और मिस्कीनों के साथ हमदर्दी व मेहरबानी करने के कारण “उम्मुल-मसाकीन” (अर्थात ग़रीबों की माँ) के नाम से याद किया जाता था, बद्र की लड़ाई में उनके पति के शहीद होने के बाद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे शादी की, उसके आठ महीने के बाद ही उनका निधन होगया, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनका जनाज़ा पढ़ा बक़ीअ नामी क़ब्रिस्तान में दफन की गईं, और वह उसमे दफन होनेवाली सर्व प्रथम उम्मुल मोमिनीन थीं।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा रमलह बिन्त अबू सुफयान रज़ियल्लाहु अन्हा फसाहत (साफ सुथरी भाषा) वाली और शुद्ध विचार की मालिक महिला थीं। उनके पहले पति उबैदुल्लाह बिन जह्श की मौत के बाद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे शादी की। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा हिन्द बिन्त सुहैल उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा शिष्टाचार और समझबूझ (बुद्धि) में सबसे परिपूर्ण महिलाओं में से थीं, वह पहले पहल इस्लाम स्वीकार करनेवालों में से थीं, उनके पति अबू सलमा की मृत्यु के बाद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे शादी की, उन्हों ने बहुत लंबी जीवन पाई, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र पत्नियों में सब से आखिर में उनका निधन हुआ। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा ज़ैनब बिन्त जहश रज़ियल्लाहु अन्हा उन महिलाओं में से हैं जिन्हों ने इस्लाम में प्रवेश करने में शीघ्रता की, वह अपने धर्म में पक्की और सच्ची थीं, उन्हों ने कुरैश की यातना और उत्पीड़न को सहन किया यहाँ तक कि अपने हिज्रत करने वाले भाईयों के साथ मदीना की तरफ हिज्रत की। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा अपनी क़ौम के लिए सबसे अधिक बरकत वाली महिला थीं, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उनसे शादी कर लेने के कारण क़ौम - बनी मुस्तलिक़ - के सौ घर वाले आज़ाद कर दिए गए। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    क्या ईश्वर हैॽ: इस लेख में अल्लाह सर्वशक्तिमान के अस्तित्व पर बुद्धि के द्वारा तर्क स्थापित किया गया है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा सौदह बिन्त ज़मअह रज़ियल्लाहु अन्हा वह पहली महिला हैं जिनके साथ पैगंब रसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा के बाद विवाह किया, और उन्हीं के बारे में हिजाब (पर्दा) की आयत उतरी। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    उम्मुल-मोमिनीन (अर्थात् विश्वासियों की माँ) सैयिदा खदीजह रज़ियल्लाहु अन्हा वह पहली महिला हैं जिनसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शादी की, उस समय उनकी आयु चालीस वर्ष थी, जबकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पच्चीस वर्ष के थे। तथा वह आपके निकट सबसे प्रिय पत्नी थीं। इस लेख में उनकी संक्षेप जीवनी प्रस्तुत की गई है।

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    हज्ज और उम्रा के शिष्टाचारः प्रस्तुत लेख में कुछ ऐसे शिष्टाचार का उल्लेख किया गया है जिनसे हज्ज या उम्रा करने वाले को सुसज्जित होना चाहिए।

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    इस लेख में इस धरती पर जन्मित सबसे महान पुरुष मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अति संछिप्त परिचय तथा आप के कुछ महान गुणों और चमत्कारों का उल्लेख किया गया है। तथा इस बात को स्पष्ट किया गया है कि आप सर्व मानव जाति के लिए संदेष्टा बनाकर भेजे गए हैं। इसी प्रकार अन्य धार्मिक ग्रंथों में वर्णित आपके के कुछ गुण विशेषण का भी उल्लेख किया गया है।

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    इस लेख में धार्मिक ग्रंथों की रोशनी में सर्वशक्तिमान ईश्वर का सही ज्ञान प्रस्तुत किया गया है और इस ग़लत कल्पना का खंडन किया गया है कि ईश्वर, मानव के मार्गदर्शन के लिए अवतार लेता है। बल्कि वास्तविकता यह है कि ईश्वर मानव मार्गदर्शन के लिए उन्हीं में से एक व्यक्ति को चयन कर लेता है और उस पर अपने आदेश अवतरित करता है जिसे संदेष्टा और ईश्दूत कहा जाता है। तथा इस प्रचलित भ्रम का भी खंडन किया गया है कि इस्लाम के संस्थापक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।

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    इस लेख में सृष्टा के अस्तित्व, उसकी एकता तथा उसके प्रमाणों का उल्लेख करते हुए, इंसान की तबाही और मनुष्य के जीवन में अशांति का वास्तविक कारण स्पष्ट किया गया है, और वह मनुष्य का अपने वास्तविक शासक और पूज्य को भुला बैठना है। अतः जब तक मनुष्य एक ईश्वर पर विश्वास नहीं रखता और अपने सभी कार्यों के प्रति उसके समक्ष जवाबदेह होने का आस्था नहीं रखता है, उस समय तक शांति सेथापित नहीं हो सकती।

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    नमाज़े-वित्र उन नमाज़ों में से है जिन्हें पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पाबंदी के साथ पढ़ी है, बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इसे सफर में भी नहीं छोड़ा है। इसकी विभिन्न संख्याएं और उनके पढ़ने के विभिन्न तरीक़े हैं। उसकी कम से कम संख्या एक रक्अत है और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से तेरह रक्अतों तक वित्र पढ़ना साबित है। इस लेख में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित वित्र की विभिन्न संख्याओं और उनके पढ़ने के तरीक़े, दिन में वित्र की क़ज़ा और अन्य संबंधित बातों का उल्लेख किया गया है।

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    इस लेख मे इस्लामी जन्त्री के अन्तिम महीने ज़ुल-हिज्जा के प्राथमिक दस दिनों की फज़ीलत तथा उन नेक कामों का उल्लेख किया गया है जिन्हें इन दिनों में करना उचित है। साथ ही साथ इन दस दिनों में घटित होने वाली एक महत्वपूर्ण इबादत क़ुर्बानी और एक महान पर्व ईदुल अज़हा के अहकाम का उल्लेख किया गया है।

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    धन जीवन की रीढ़ की हड्डी और उसका आधार है, जिसके द्वारा इस्लामी शरीअत का उद्देश्य एक संतुलित समाज की स्थापना है जिस में सामाजिक न्याय का बोल बाला हो जो अपना तभी सदस्यों के लिए आदरणीय जीवन का प्रबंध करता है। और जब इस्लाम की दृष्टि में धन उन आवश्यकताओं में से एक है जिस से व्यक्ति या समूह बेनियाज़ नहीं हो सकते, तो अल्लाह तआला ने उसके कमाने और खर्च करने के तरीक़ों से संबंधित कुछ नियम बनाये हैं। इस लेख में संछिप्त रूप से उसी का उल्लेख किया गया है।

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    ज़कात इस्लाम के कर्तव्यों में से एक महान कर्तव्य और उसका तीसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिसे अल्लाह तआला अपनी किताब में अनिवार्य किया है और अल्लाह के पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वयं ज़कात वसूल किया है और जिस पर ज़कात अनिवार्य है उस से वसूल करने का आदेश दिया है। इस लेख में ज़कात का हुक्म, उसके अनिवार्य होने प्रमाण, उसको रोकने या उसमें कंजूसी करने वाले के हुक्म का उल्लेख किया गया है। तथा जिन धनों में ज़कात अनिवार्य उनके प्रकार, उनका निसाब, अनिवार्य मात्रा, ज़कात निकालने का तरीक़ा और उसके हक़दार लोगों का वर्णन किया गया है।

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    इस लेख में रमज़ान से लाभान्वित होने वाले कुछ पाठ का निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा उल्लेख किया गया है : 1- रमज़ान सब्र (धैर्य) का महीना है 2- रमज़ान दानशीलता, एहसान व भलाई और सिला-रहमी (रिश्तेदारी निभाने) का महीना है 3- रमज़ान जिहाद, विजय और फुतूहात का महीना है 4- रमज़ान क़ुरआन और क़ियामुल्लैल का महीना है 5- रमज़ान भाईचारा और प्रेम का महीना है 6- रमज़ान गुनाहों की माफ़ी और नरक से मुक्ति का महीना है 7- रमज़ान तौबा और तक्वा का महीना है 8- रमज़ान इख्लास और सच्चाई का महीना है

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    पवित्र क़ुर्आन मानवता के नाम अल्लाह का सर्व कालिक और अन्तिम संदेश है, जो मानवता की लौकिक और पारलौकिक हितों के मार्गदर्शन पर आधारित है, जो सत्य और असत्य, मार्गदर्शन और पथभ्रष्टता, सौभाग्य और दुर्भाग्य के बीच अन्तर स्पष्ट करता है। वह महीना जिस में मानवता को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ, वह रमज़ान का ही शुभ महीना है। इसलिये हमारे अति उचित है कि हम विशेष रूप इस मुबारक महीने में इस महान ग्रंथ का पाठ करने, उसे पढ़ने-पढ़ाने, सीखने-सिखाने, उसमें मननचिंतन करने और उसके अनुसार कार्य करने पर भरपूर ध्यान दें। इस पर हमें क्या लाभ मिलेगा ? पढ़िये इस लेख में।